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मोदी सरकार में आज डेवलपमेंट का मजबूत चेहरा कौन है ये पूछा जाये, तो बिना पक्षपात के ज्यादातर लोग एक बार में नितिन गडकरी का नाम लेगें. क्योंकि उन्होंने सड़क के जरिए देश में विकास के चेहरे की एक ऐसी लकीर खींच दी है, जिसके दूर-दूर तक कोई राजनेता नजर नहीं आ रहा है.
समर्थकों को छोड़िए, अब विरोधी उनके फैन बन चुके हैं. देश के बदलते सियासी मूड में कोई उन्हें मोदी के विकल्प के तौर पर देख रहा है तो किसी की नजरों में वो संघ के गोल्डेन क्वाइन हैं. खैर, विकास पुरुष की पहचान रखने वाले गडकरी अब हिंदुत्व के मुद्दे पर भी फ्रंटफुट पर खेलने लगे हैं, जिसे संघ की सियासत के तौर पर देखा जा रहा है.
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नितिन गडकरी का अयोध्या दौरा बहुत कुछ बयां कर रहा है. बीजेपी के चमकदार उदय के साथ ही अयोध्या की पहचान हिंदुत्व के सबसे बड़े केंद्र के तौर पर होती है. पिछले तीन दशकों से अयोध्या को लेकर सियासत चली आ रही है. और अब इस सियासत में मोदी के सबसे काबिल मंत्री नितिन गडकरी भी कूद पड़े हैं.
मतलब साफ है जिस अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साढ़े चार सालों तक कदम रखने से हिचकते रहे, वहां गडकरी ताबड़तोड़ बैटिंग कर रहे हैं. सिर्फ अयोध्या ही नहीं प्रयागराज कुंभ में भी गडकरी ने दस्तक दी. संगम में स्नान किया, संतों का आशीर्वाद लिया और बगैर बोले देश को एक संदेश देने की कोशिश की.
गडकरी ने चुनावी सीजन में अयोध्या में सौगातों की बौछार की है. उन्होंने अयोध्या में 72 सौ करोड़ रुपये की 5 अलग-अलग परियोजनाओं का तोहफा दिया. माना जा रहा है कि इन परियोजनाओं के धरातल पर आने के बाद अयोध्या की तस्वीर बदल जाएगी. चारों ओर सड़कों का जाल बिछ जाएगा. जानकार बताते हैं कि शहर के विकास में ये परियोजनाएं मील का पत्थर साबित होंगी. इनमें रामगमन मार्ग और कोयी परिक्रमा मार्ग भी शामिल है.
गडकरी की पहचान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दुलरुए के तौर पर भी होती है. केंद्र में मंत्री बनने के बाद भी वो सहज अंदाज में स्कूटर से नागपुर संघ कार्यालय पहुंच गये थे, उनकी यह फोटो खूब चली थी और बगैर हेलमेट के थे, इसलिए विवाद में भी फंसे थे. पर दुलरूआ तो दुलरूआ होता है. महाराष्ट्र के इस कद्दावर नेता को हमेशा ही नागपुर का आशीर्वाद मिलता रहा है. यही कारण है कि मोदी सरकार में वो अघोषित तौर पर नंबर दो की हैसियत रखते हैं.
गडकरी को जो टास्क सौंपा जाता है, उसे वो बखूबी अंजाम देते हैं. ऐसे में गडकरी की काबिलियत को देखते हुए संघ उन पर बड़ा दांव खेलने में चूकेगा नहीं. इस बार के आम चुनाव में 2014 के मुकाबले बीजेपी की चमक वो नहीं रही है. एक के बाद एक प्रदेशों में मोदी का मैजिक फेल होता जा रहा है. राम मंदिर को लेकर लोगों में निराशा छाई है. इससे न सिर्फ बीजेपी में बेचैनी है बल्कि संघ भी परेशान है. संघ को लगता है कि मुश्किल दौर में गडकरी एक विश्वसनीय चेहरा हैं.
बीजेपी के अंदर हिंदुत्व का सबसे बड़ा झंडाबरदार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को माना जाता है. गुजरात दंगों के बाद तो मोदी हिंदुत्व के नए पोस्टर ब्वॉय बनकर देश में उभरे. उनकी पहचान एक कट्टरपंथी हिंदू नेता के तौर पर होने लगी. मोदी ने अपनी इस छवि को खूब भुनाया. गुजरात में सीएम रहते उन्होंने इस छवि को तोड़ने के बजाय और गहरा किया. मोदी ने बड़ी चालाकी से हिंदुत्व के एजेंडे के साथ विकास के चेहरे के तौर पर ‘गुजरात मॉडल’ का डंका पूरे देश में पीटा.
खासतौर से जिस तरह से राम मंदिर निर्माण को लेकर उनका स्टैंड रहा, उससे हर हिंदू स्तब्ध है. संघ सहित हिंदू संगठनों में गुस्सा है. लोगों को लगने लगा है कि मोदी सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें ही करते हैं. इसके ठीक उलट गडकरी ने पिछले साढ़े चार सालों में अपनी अलग पहचान गढ़ी है. खामोशी के साथ उन्होंने विकास के नए कीर्तिमान बनाए. गडकरी अब बीजेपी ही नहीं बल्कि संघ के लिए भी उम्मीद का नया चेहरा बनकर उभरे हैं.
जानकार बताते है कि मोदी की तुलना में गडकरी कहीं अधिक संघ के विश्वासपात्र है. प्लान बी के तहत संघ ने अब गडकरी को प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया है. अयोध्या और प्रयागराज का दौरा इसकी एक कड़ी भी हो सकती है.
मोदी मंत्रिमंडल में गडकरी एकमात्र ऐसे नेता हैं जो खुलकर अपनी बात रखते हैं. पार्टी फोरम हो, कैबिनेट की बैठक हो या फिर सार्वजनिक मंच, गडकरी बेबाकी से बोलते हैं. हाल के दिनों में उन्होंने अपने बयानों से पार्टी को भी परेशानी में डाल दिया.
कहा तो यहां तक जाता है कि गडकरी को रोकने-टोकने की हिम्मत पार्टी आलाकमान भी नहीं कर पाता. गडकरी अपने विभाग से जुड़े फैसले खुद करते हैं. उनकी अगुवाई में सड़क परिवहन के मामले में देश ने बुलंदियों को छुआ है. दूसरे नेताओं के उलट गडकरी बगैर शोर-शराबे के हर रोज विकास का नया पैमाना बनाते जा रहे हैं.
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