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महाराष्ट्र (Maharashtra Political Crisis) की राजनीति में उथल पुथल के बाद से शिवसेना (Shivsena) के बागी नेता एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) खासा सुर्खियों में हैं जिन्होंने शिवसेना में विभाजन की संभावना खड़ी कर दी. लेकिन इसी के साथ उप विधानसभा अध्यक्ष नरहरि जिरवाल (Narhari Zirwal) भी अब एक बड़ा नाम हो गया है जिस पर सभी की नजर रहने वाली है. आने वाले समय में नरहरि संभवत महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार को गिरने से बचाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
जब 2019 में कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और शिवसेना की गठबंध वाली सरकार बनी, तो कांग्रेस के नाना पटोले महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष बने. हालांकि, कांग्रेस ने पटोले को 2020 में महाराष्ट्र कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जिसके बाद उन्होंने विधानसभा के अध्यक्ष का पद छोड़ दिया.
पटोले के पद छोड़ने के बाद, तब से कांग्रेस पार्टी ने किसी नए स्पीकर का चयन नहीं किया है, इसकी वजह से सरकार को अब बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है.
इस बीच, नरहरि जिरवाल विधानसभा अध्यक्ष के कर्तव्यों का निर्वहन कर सकते हैं, इस बीच, जिरवाल ने गुरुवार 23 जून को घोषणा की है कि - उन्होंने बागी विधायक एकनाथ शिंदे की जगह अजय चौधरी को सदन में शिवसेना के समूह के नेता के रूप में नियुक्त करने की मंजूरी दे दी है.
शिवसेना ने मंगलवार को शिंदे के बगावत के कुछ घंटों बाद ही विधानसभा में पार्टी के नेता पद से हटा दिया था.
बुधवार की सुबह, शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे ने 46 विधायकों के समर्थन का दावा किया, जो दलबदल विरोधी कानून को मात देने के लिए दो-तिहाई की आवश्यकता को पूरा करता है.
शिंदे बुधवार की सुबह असम के गुवाहाटी में महाराष्ट्र के विधायकों के साथ रैडिसन ब्लू होटल पहुंचे थे, संभवत यह पहली बार था कि पश्चिमी भारतीय राज्य के विधायकों को पार्टी नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह के बाद पूर्वोत्तर राज्य में ले जाया गया था.
अब, अगर ठाकरे शिंदे की मांग को स्वीकार करने से इनकार करते हैं, तो बागी नेता डिप्टी स्पीकर से संपर्क कर सकते हैं और अपने विद्रोही समूह को असली शिवसेना के रूप में मान्यता देने के लिए कह सकते हैं.
इस बीच, शिवसेना नेता संजय राउत ने बुधवार को राज्य में विधानसभा भंग करने की बात कही, जिससे फिर चुनाव की संभावना बढ़ गई है. हालांकि राज्य सरकार सदन को भंग करने की सिफारिश करती है तो भी राज्यपाल सरकार के संदिग्ध नंबरों का हवाला देते हुए इस मांग को चुनौती दे सकते हैं.
इस समय, जब तक बागी शिवसेना विधायक अपनी पार्टी से इस्तीफा नहीं देते या पार्टी व्हिप के खिलाफ वोट नहीं देते, उन्हें दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता है. यदि इनमें से कोई भी बात होती है, तो डिप्टी स्पीकर जिरवाल को स्थिति की जांच करनी होगी और तय करना होगा कि क्या उन्हें अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए.
सवाल यह बनता है कि- जिरवाल क्या करेंगे? क्या वे शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट का समर्थन करेंगे ताकि एमवीए बच जाए? या क्या वह विद्रोही गुट को असली शिवसेना के रूप में स्वीकार करेंगे?
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