मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Politics Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019गुजरात में ठीक ठाक और MCD में धाक के बाद क्या केजरीवाल BJP को टक्कर दे सकते हैं?

गुजरात में ठीक ठाक और MCD में धाक के बाद क्या केजरीवाल BJP को टक्कर दे सकते हैं?

MCD Chunav Result: अब एमसीडी भी हाथ में- क्या केजरीवाल दिल्लीवालों की लोकल समस्याएं दूर कर पाएंगे?

अमिताभ तिवारी
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>दिल्लीवाले अब मेयर के चुनावों पर नजर रखे हैं, जो AAP के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा.</p></div>
i

दिल्लीवाले अब मेयर के चुनावों पर नजर रखे हैं, जो AAP के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा.

(फोटो: क्विंट)

advertisement

आम आदमी पार्टी (AAP) ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को एक बार फिर दिल्ली में पटखनी दे दी है. उसने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के चुनावों में जीत हासिल करके, बीजेपी के 15 साल के शासन को खत्म कर दिया है. AAP ने 134 सीटों पर कब्जा जमाया है, जबकि बीजेपी के खाते में 104 सीटें आई हैं और कांग्रेस को सिर्फ नौ सीटों से तसल्ली करनी पड़ी है.

मेयर के चुनाव AAP के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा?

यूं एग्जिट पोल में AAP को 151 सीटों के साथ एक सुखद जीत की भविष्यवाणी की गई थी, लेकिन शुरुआती दौर में नतीजे काफी रोचक थे- कभी AAP तो कभी बीजेपी का पलड़ा भारी नजर आ रहा था. AAP को जीत तो हाथ लगी लेकिन बहुमत से सिर्फ 11 सीटें ज्यादा मिलीं. एग्जिट पोल में बीजेपी (BJP) की दुर्गत का अंदाजा लगाया गया था लेकिन फिर भी उसने काफी बेहतर किया, और वैसे ही कांग्रेस का भी हाल रहा. अब बीजेपी उम्मीद से ज्यादा मजबूत है और कुछ अधिकार लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी) के पास भी हैं- वह एमसीडी में 12 सदस्यों को नामांकित करते हैं. इसके मद्देनजर AAP के लिए मेयर का चुनाव टेढ़ी खीर साबित होने वाला है. विधानसभा 2020 के नतीजों के रुझान को देखते हुए AAP को 200 के करीब सीटें मिलनी चाहिए थीं.

  • AAP ने बीजेपी को एक बार फिर दिल्ली में पटखनी दे दी है. उसने एमसीडी के चुनावों में जीत हासिल करके, बीजेपी के 15 साल के शासन को खत्म कर दिया है.

  • बीजेपी उम्मीद से ज्यादा मजबूत है और कुछ अधिकार एलजी के पास भी हैं- वह एमसीडी में 12 सदस्यों को नामांकित करते हैं. इसके मद्देनजर AAP के लिए मेयर का चुनाव टेढ़ी खीर साबित होने वाला है.

  • दीगर है कि स्थानीय निकायों के चुनाव भी राष्ट्रपति शैली के चुनावों की तरह लड़े जाते हैं, और इस प्रक्रिया में स्वतंत्र और छोटे राजनैतिक दल हाशिए पर धकेल दिए गए हैं.

  • हालांकि चुनावी नतीजे बताते हैं कि केजरीवाल दिल्ली में सबसे पसंदीदा राजनेता हैं. यह भी पता चलता है कि बीजेपी की दिल्ली इकाई केजरीवाल (Kejriwal) को पछाड़ने में नाकाबिल साबित हुई है.

  • AAP राष्ट्रीय राजधानी में गरीबों के चैंपियन के रूप में उभरी है- जैसा कि देश के बहुत से हिस्सों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए माना जाता है.

AAP की भारी जीत बनाम बीजेपी का बेहतर प्रदर्शन

एक तरह से दिल्ली ने नगर निगम और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार को चुनकर, 'डबल इंजन की सरकार' को वोट दिया है. जैसा कि पार्टी समर्थकों ने आरोप लगाया था, गुजरात में AAP के बढ़ते प्रभाव को देखकर जल्दबाजी में दिल्ली में नगर निगम चुनावों की घोषणा की गई थी. दीगर है कि स्थानीय निकायों के चुनाव भी राष्ट्रपति शैली के चुनावों की तरह लड़े जाते हैं, और इस प्रक्रिया में स्वतंत्र और छोटे राजनैतिक दल हाशिए पर धकेल दिए गए हैं. कभी यही चुनाव हाइपर लोकल हुआ करते थे. शायद इसीलिए AAP को उम्मीद से कम सीटें मिलीं, क्योंकि ऐसे चुनावों में ध्यान मुद्दों की बजाय चेहरों पर केंद्रित हो जाता है- यानी मोदी बनाम केजरीवाल (Kejriwal) और ये भी सच है कि AAP दिल्ली में आठ सालों से सत्ता में है तो उसके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी उठी होगी. AAP ने केजरीवाल (Kejriwal) के इर्दगिर्द जो चमक-दमक पैदा की है, उसमें भी फीकापन आने लगा होगा, चूंकि मंत्रियो के खिलाफ भ्रष्टाचार और टिकट बेचने के आरोप लगे हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

AAP ने दिल्ली की जनता का विश्वास कैसे हासिल किया

हालांकि चुनावी नतीजे बताते हैं कि केजरीवाल (Kejriwal) दिल्ली में सबसे पसंदीदा राजनेता हैं. यह भी पता चलता है कि बीजेपी की दिल्ली इकाई केजरीवाल (Kejriwal) को पछाड़ने में नाकाबिल साबित हुई है. बुजुर्गवार बीजेपी की राज्य इकाई एक नौनिहाल पार्टी का मुकाबला नहीं कर पा रही है, जबकि इस नौनिहाल ने राजनैतिक पैंतरेबाजी के सारे गुर बीजेपी के ककहरे से ही सीखे हैं. अब दिल्लीवसियों को उम्मीद है कि AAP का मेयर और मुख्यमंत्री होगा तो राज्य सरकार और नगर निगम के बीच की कलह शांत होगी और शहरी मसलों का उचित तरीके से ध्यान रखा जाएगा.

  • AAP ने मुफ्त बिजली, पानी, स्कूल और मुहल्ला क्लीनिक के साथ समाज के गरीब वर्गों, पिरामिड के निचले हिस्से के लोगों जैसे मजदूरों और ऑटो/टैक्सी चालकों के बीच एक मजबूत आधार बनाया है. मध्यम और उच्च वर्ग के वोटर्स के मुकाबले इस वर्ग में AAP को वोट देने की प्रवृत्ति अधिक है.

  • एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल का कहना था कि झुग्गी-झोपड़ियों में बीजेपी की तुलना में AAP को 21%, जबकि कॉलोनियों में सिर्फ 6% बढ़त हासिल थी. दूसरी तरफ बीजेपी बंगलों में रहने वाले वोटरों में AAP से 5% आगे रही.

  • AAP पूर्वांचलियों (बीजेपी में मनोज तिवारी के बावजूद), पंजाबियों (राज्य में जीत के बाद अपनी स्थिति मजबूत करती हुई) और दिल्लीवालों के बीच आगे रही, जबकि बीजेपी पहाड़ी लोगों के बीच आगे थी. हालांकि क्षेत्रों के लिहाज से देखा जाए तो पूर्वी दिल्ली में बीजेपी को बढ़त हासिल थी.

  • साथी पार्टियों की तुलना में AAP ने सोशल मीडिया पर धुआंधार अभियान चलाया और उसका डिजिटल आउटरीच भी जबरदस्त था. इस तरह AAP युवाओं को ज्यादा आकर्षित करती है. यह 18-25 वर्ष के आयु वर्ग में बीजेपी से 13% आगे है, जबकि बीजेपी केवल सीनियर सिटिजन्स के बीच AAP से 12% आगे है.

AAP की सफलता के पीछे वंचितों में उत्साह और 'मुफ्त की मलाई'

AAP राष्ट्रीय राजधानी में गरीबों के चैंपियन के रूप में उभरी है- जैसा कि देश के बहुत से हिस्सों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi)  के लिए माना जाता है. गरीबों के लिए AAP की सामाजिक कल्याण की नीतियों, जिन्हें आम तौर पर ‘मुफ्त की मलाई’ कहा जाता है, ने राष्ट्रीय राजधानी में जाति और वर्ग की राजनीति की एक जटिल इंटरप्ले किया है. और इसके परिणामस्वरूप बाकी पार्टियों को राजनीति की परंपरागत रवायत को बदलना पड़ा है. जबरदस्त महंगाई, कोविड-19 के बाद आर्थिक तबाही और बेरोजगारी के चलते समाज के गरीब और निचले तबके के बीच AAP का वोट मजबूती से कायम है क्योंकि यही वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है.

आम आदमी पार्टी (AAP) की सामाजिक कल्याण नीतियों ने 'अमीर बनाम गरीब' की राजनीति का दांव खेला. इससे समाज में विभाजन या ध्रुवीकरण हुआ जोकि किसी भी पार्टी के लिए अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए जरूरी है.

मुफ्त पानी और बिजली, अच्छे स्कूलों और अस्पतालों के साथ, AAP सीधे गरीब वर्ग को फायदा पहुंचाने में कामयाब रही है, चूंकि इन नीतियों के नतीजतन होने वाली बचत हर महीने साफ नजर आती है.

क्या केजरीवाल के नेतृत्व में AAP, बीजेपी का राष्ट्रीय स्तर पर मुकाबला करेगी?

उम्मीद से कम सीटें कांग्रेस के उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन के कारण है. नतीजों से इशारा मिलता है कि कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के बीच अपना समर्थन कुछ हद तक वापस पा लिया है. बेशक, एमसीडी के नतीजों के बाद कांग्रेस नहीं, AAP राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी को कड़ा मुकाबला देने की राह पर होगी. गुजरात के बहुप्रतीक्षित परिणामों के साथ-साथ, जहां AAP के दाखिला लेने की उम्मीद है, केजरीवाल (Kejriwal) की इस उम्मीद को पंख लग गए हैं कि वह बीजेपी का राष्ट्रीय विकल्प बन सकते हैं.

हां, पार्टी को ज्यादा संजीदगी से सोचने की जरूरत है. राज्य चुनावों में 5% बनाम 12%-13% के वोट शेयर के साथ कांग्रेस ने केजरीवाल (Kejriwal) को एमसीडी चुनावों में झाडू फेरने से रोक दिया है.

अब दो राज्य सरकारों और एक नगर निगम के साथ AAP के पास काफी संसाधन हैं जिसकी मदद से वह पूरे देश में अपने पैर पसारने की कोशिश कर सकती है. केजरीवाल (Kejriwal) दिल्ली की कमान मनीष सिसोदिया के हाथों में थमाकर, देश का भ्रमण कर सकते हैं ताकि संगठन को तैयार किया जा सके. हालांकि जीत के साथ बड़ी जिम्मेदारियां भी आती हैं. चूंकि दिल्ली को परेशान करने वाले मुद्दों के लिए अब वह बीजेपी को दोष नहीं दे पाएंगे. अब मेयर चुनाव की बारी!

(लेखक एक स्वतंत्र राजनीतिक टिप्पणीकार हैं और उनका ट्विटर हैंडिल @politicalbaaba है. यह एक ओपिनियन पीस है. यह लेखक के अपने विचार हैं. क्विंट न तो समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT