"मनीष सिसोदिया 2 से 3 दिन में गिरफ्तार हो सकते हैं”.ये बातें 23 अगस्त को आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने गुजरात में अपने समर्थकों से एक सभा में कही थीं.
दिल्ली के कथित शराब घोटाले में सिसोदिया पर लटक रही गिरफ्तारी की तलवार को लेकर पार्टी अपनी तैयारी में जुटी हुई है. लेकिन इसी बहाने आम आदमी पार्टी अपनी राष्ट्रीय महत्वकांक्षाओं को लेकर राष्ट्रीय अपील तैयार करने लगी है.
सिसोदिया के खिलाफ जारी सीबीआई जांच के बीच केजरीवाल ने मेक इंडिया नंबर वन कैंपेन लॉन्च करते हुए एक पांच सूत्रीय फॉर्मूला दिया. इस पर हम आगे और बात करेंगे.
लेकिन घोटाले और सीबीआई जांच की तपिश के बाद भी सिसोदिया नरम नहीं पड़े और आक्रामक ही रहे. उन्होंने गुजरात की जनसभा को संबोधित किया. पार्टी के राजनीतिक मामलों की कमिटी के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि
पार्टी इस मुद्दे पर बिल्कुल ही बचाव की मुद्रा में नहीं दिखना चाहती है. इसलिए हम मनीष सिसोदिया के खिलाफ लगाए गए केस पर विरोध प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं. केजरीवाल जी का रुख इस मामले में साफ है कि “वो परेशान करते हैं और हम काम करते हैं
पार्टी के भीतर यह समझ है कि मनीष सिसोदिया के ऊपर केस लगाकर बीजेपी आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय महत्वकांक्षाओं के पर कतरना चाहती है. इस लेख में हम नीचे के कुछ पहलुओं पर विचार कर रहे हैं.
आखिर AAP की राष्ट्रीय राजनीति क्या है
2024 चुनाव को लेकर ‘आप’ की क्या संभावनाएं हैं और क्या चुनौतियां हैं ?
AAP की राष्ट्रीय राजनीति के संदर्भ क्या हैं और मनीष सिसोदिया के खिलाफ लगे केस को कैसे देखें ?
AAP की राष्ट्रीय राजनीति क्या है ?
इसके दो पहलू हैं: AAP की वैचारिक धार और नीतिगत फैसले
वैचारिक तौर पर अगर AAP को देखें तो इसकी टैगलाइन है, कट्टर देशभक्ति और ईमानदारी, इंसानियत .मतदाताओं को पार्टी अपनी बात कहने के लिए ये तरीके अपनाती है.
राष्ट्रवाद पर कोई समझौता नहीं, कम से कम राष्ट्रवाद के इर्द गिर्द जो नैरेटिव है उससे कोई समझौता नहीं.
वो बीजेपी और कांग्रेस की तुलना में ज्यादा साफ सुथरी सरकार मुहैया कराएगी. केजरीवाल ने हाल फिलहाल में इन दोनों ही पार्टियों पर सिर्फ सगे संबंधियों और दोस्तों की मदद करने का आरोप मढ़ा है.
गरीबों के लिए मौजूदा सरकार की तुलना में ज्यादा मानवीय नजरिया रखने का वादा किया है.
नीतियों के हिसाब से अगर AAP की राष्ट्रीय राजनीति को देखें तो अरविंद केजरीवाल ने मेक इंडिया नंबर वन प्रोग्राम का जो एलान किया है उसमें पांच सूत्रीय एजेंडा प्रमुख है.
सभी बच्चों को अच्छी और मुफ्त शिक्षा
मुफ्त इलाज, जांच और दवाएं
सभी युवाओं को नौकरी
सभी महिलाओं को सम्मान, सुरक्षा और बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए
किसानों का सम्मान और खेती की वाजिब कीमत
राजनीतिक तौर पर देखें तो AAP दरअसल बीजेपी से नाराज मतदाताओं के दिल जीतना चाहती है. इसके साथ ही बीजेपी विरोधी जो वोट है उसे भी अपने पास लाना चाहती है. वो खुद को कांग्रेस की तुलना में ज्यादा बेहतर विकल्प बताने और बनाने में लगी हुई है.
फिलहाल सबसे पहले AAP अपना पहला लक्ष्य यानि नाखुश बीजेपी मतदाताओं को अपने साथ जोड़ना चाहती है. वो यह जानती है कि बीजेपी को मतदाताओं को अपने साथ जोड़ना बहुत मुश्किल काम है इसलिए वो उन्हें ये समझाने की पुरजोर कोशिश कर रही है. कि वो भी "हिंदूत्व" और "राष्ट्रवाद" से समझौता नहीं कर रहे हैं.
अब इसकी भी एक कीमत है. सांप्रदायिकता के मुद्दे पर बीजेपी को सांप्रदायिक नहीं बताने का अपना नुकसान है. अभी सबसे ज्यादा निशाना AAP को इसलिए बनाया जा रहा है क्योंकि वो बिलिकस गैंग रेप के सजायाफ्ता दोषियों की रिहाई पर चुप रही. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में AAP प्रवक्ता दुर्गेश पाठक को अगर छोड़ दें तो पार्टी के किसी भी और नेता ने कुछ भी इस मुद्दे पर नहीं बोला.
‘AAP’ के भीतर इस पर दो नजरिये हैं. एक खेमा मानता है कि इन मुद्दों पर चुप रहना अभी जरूरी है ताकि बीजेपी को एजेंडा सेट करने से रोका जाए. वहीं दूसरी तरफ कुछ नेताओं का यह भी मानना है कि हिंदू समर्थक कार्ड का ज्यादा चलना बीजेपी की पिच पर खेलने जैसा है. पार्टी के एक नेता ने द क्विंट से कहा कि
अगर मुकाबला हिंदुत्व पर है, तो मतदाता अच्छी तरह जानते हैं कि किस पार्टी को चुनना है. मतदाता मूर्ख नहीं हैं. वे बहुत खास चीजों के लिए AAP में आते हैं- स्वास्थ्य, शिक्षा, मुफ्त बिजली और सस्ता पानी. वे हिंदुत्व के लिए हमारे पास नहीं आते हैं. इसलिए हमें अपनी ताकत से खेलना चाहिए न कि बीजेपी की मजबूत पहलू से.
2024 के लिए आप की संभावना और चुनौती
AAP के सूत्रों ने खुलासा किया है कि अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम 2024 का चुनाव लड़ने की संभावना पर गंभीरता से विचार कर रही है और उनके लिए एक निर्वाचन क्षेत्र के संदर्भ में विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रही है.
असली दुविधा यह है कि क्या उन्हें दिल्ली या पंजाब की किसी सीट से चुनाव लड़ना चाहिए या फिर वाराणसी में एक बार फिर पीएम मोदी से भिड़ना चाहिए.
सीवोटर और इंडिया टुडे के नवीनतम मूड ऑफ द नेशन सर्वे के अनुसार, 27.2 प्रतिशत लोगों ने कहा कि मोदी विरोधी गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए केजरीवाल सबसे सही विपक्षी नेता हैं. इस सर्वे में ममता बनर्जी को 19.6 %, राहुल गांधी को 12 %, नवीन पटनायक को 4.7 % और शरद पवार को 3.9 % पर रखा गया.
हालांकि, पीएम की पसंद के रूप में सिर्फ 7 प्रतिशत लोगों ने केजरीवाल को चुना जो कि राहुल गांधी से 9 प्रतिशत पीछे और पीएम मोदी से 53 प्रतिशत पीछे है.
यह दिलचस्प है. यदि 7 प्रतिशत ने केजरीवाल को अपनी पीएम पसंद के रूप में चुना और 27 प्रतिशत ने "विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए सबसे अच्छा " माना, तो आप अनुमान लगा सकते हैं कि इस 27 प्रतिशत में से लगभग दो तिहाई वैसे लोग हो सकते हैं, जिन्होंने या तो मोदी को अपनी पीएम पसंद के रूप में चुना या फिर कुछ भी निर्णय करने में असमर्थ थे.
सीधे शब्दों में कहें तो वर्तमान में मोदी का समर्थन करने वाले मतदाता केजरीवाल को राहुल गांधी या ममता बनर्जी की तुलना में अधिक मौजूं मान सकते हैं लेकिन मोदी से जुड़े किसी भी मुकाबले में केजरीवाल उनके आसपास भी नहीं टिकते.
यह पंजाब को छोड़कर अधिकांश जगहों पर आप की चुनावी दिक्कतों का सबसे बड़ा मूल सकंट है. दिल्ली ने भले ही विधानसभा चुनावों में दो बार केजरीवाल को भारी बहुमत दिया हो, लेकिन इसी अवधि में उसने लोकसभा चुनावों में मोदी की बीजेपी को सभी सातों सीटें दी हैं. साफ है कि राष्ट्रीय राजनीति के मामले में दिल्ली की पहली पसंद केजरीवाल नहीं हैं...मोदी ही जनता के मन में हैं.
यह मानने का कोई कारण नहीं है कि इस संबंध में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन अभी हो गया है. दिल्ली में, अधिक से अधिक AAP इस मामले में दूसरा स्थान हासिल करने की उम्मीद कर सकती है. निश्चित रूप से 2024 तक पीएम मोदी के बारे में राष्ट्रीय भावना में कुछ बड़ा बदलाव नहीं होगा.
सीटों के मामले में आप की सबसे बड़ी उम्मीद पंजाब बनी हुई है. पंजाब चुनावों के दौरान किए गए कई सर्वे के मुताबिक PM पद के लिए पंजाब राज्य में केजरीवाल सबसे ज्यादा पसंद किए गए थे, इसलिए AAP को उम्मीद है कि उनके लिए एक स्पष्ट राष्ट्रीय पिच पंजाब से ज्यादा सीटें जीतने में मदद करेगी.
पार्टी को 2024 में एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय खिलाड़ी बनने के लिए राज्य की 13 में से कम से कम 10 सीटें जीतने की उम्मीद है. हालांकि, संगरूर उपचुनाव हार को पंजाब सरकार के प्रति असंतोष के सबूत के तौर पर देखा गया था. इसलिए यह देखा जाना बाकी है कि क्या आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनावों में भी क्लीन स्वीप कर सकती है.
गोवा में, इसकी दो विधानसभा सीटें हैं. दोनों ही दक्षिण गोवा संसदीय सीट में आती हैं. लेकिन यह संसदीय चुनाव में AAP का एक गंभीर खिलाड़ी बनने के लिए काफी नहीं है.
AAP गुजरात या हिमाचल प्रदेश में एक प्रमुख विकल्प के रूप में उभर सकती है या नहीं यह इस साल के अंत में स्पष्ट हो जाएगा. आप के लिए दो चुनाव महत्वपूर्ण हैं. इसे राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता हासिल करने के लिए इन दो राज्यों में से किसी एक में पार्टी को ‘राज्य की पार्टी’ बनना जरूरी है और इसके लिए पर्याप्त वोट या सीट हासिल करना होगा. अभी यह पहले से ही दिल्ली, पंजाब और गोवा में ‘राज्य पार्टी’ के तौर पर है.
आप की सबसे बड़ी समस्या यह है कि अपनी हिंदू समर्थक छवि दिखाने की कोशिश के बावजूद भी दिल्ली के बाहर विधानसभा चुनावों में उसकी चुनावी सफलता सिख बहुल पंजाब और कैथोलिक बहुल गोवा में (दो सीट) रही है. निश्चित तौर पर इसका असर लोकसभा चुनाव में भी पार्टी पर पड़ेगा.
हकीकत में, AAP या कोई अन्य क्षेत्रीय दल मुख्य बीजेपी विरोधी विकल्प नहीं बन सकता, जब तक कि कांग्रेस पूरी तरह से ध्वस्त नहीं हो जाती. अभी तक कई झटके खाने के बाद भी कांग्रेस खत्म नहीं हुई है.
जैसा कि अभी लग रहा है और खासकर बिहार में सरकार बदलने के बाद 2024 में मुकाबला बीजेपी बनाम एक राष्ट्रीय स्तर के महागठबंधन में होगा जिसमें कांग्रेस प्रमुख किरदार होगी.
AAP की राष्ट्रीय संभावनाएं और सिसोदिया पर केस
जब से AAP ने 2020 में दिल्ली में सत्ता में वापसी की है तब से सिसोदिया और सत्येंद्र जैन व्यावहारिक रूप से दिल्ली की सरकार चला रहे थे क्योंकि केजरीवाल AAP के चुनावी विस्तार पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे, विशेष रूप से इसके प्रमुख राज्यों पंजाब, गोवा और उत्तराखंड पर.
मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन उन अधिकांश प्रमुख मंत्रालयों को लीड करते हैं जिनको AAP खूब भुनाती है जैसे शिक्षा वो सिसोदिया के पास है और स्वास्थ्य , जिसे सत्येंद्र जैन लीड कर रहे थे.
जैन को मई 2022 में गिरफ्तार किया गया था. अगर सिसोदिया को भी गिरफ्तार किया जाता है, तो इसका मतलब यह होगा कि दिल्ली में आप सरकार के दो स्तंभ सलाखों के पीछे होंगे.
आप आरोप लगाती है और इसमें कुछ दम हो भी सकता है कि यह सभी कोशिशें AAP की राष्ट्रीय राजनीति को खत्म करने के लिए बीजेपी की साजिश का नतीजा है.
AAP के राजनीतिक मामलों की कमिटी के एक सदस्य कहते हैं, "यह शतरंज के खेल की तरह है. वे अरविंद केजरीवाल के वजीर (सिसोदिया) के पीछे पड़कर केजरीवाल को दिल्ली तक समेटने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन यह काम नहीं करेगा. यह उन्हें और भी आक्रामक बना देगा "
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