advertisement
एक महीना पहले कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि पंजाब में सिद्धू Vs कैप्टन की लड़ाई में कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) को दो बार हार का सामना करना पड़ा. महीनों चली तनातनी के बाद अमरिंदर सिंह ने 19 सितंबर को आखिरकार मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. दो महीने पहले ही, नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) की नाराजगी को खत्म करने के लिए पार्टी हाईकमान ने उन्हें पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया था. अब दो महीने बाद, न केवल कैप्टन के हाथों से मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई है, बल्कि पंजाब कांग्रेस में सिद्धू का कद भी बढ़ गया है.
इसका इशारा मिलता है पंजाब कांग्रेस इनचार्ज हरिश रावत के बयान से. कैप्टन को हटाने के बाद कांग्रेस ने दलित चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री पद पर बिठाया, लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की बात सिद्धू के नेतृत्व में हो रही है. 20 सितंबर को, चन्नी के शपथ ग्रहण समारोह से पहले, हरीश रावत ने कहा,
सिद्धू का कद पंजाब कांग्रेस में अब इतना बढ़ गया है कि 10 साल बाद कांग्रेस को वापस पंजाब में लाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह को किनारे कर दिया गया है. जानिए सिद्धू ने कैसे लिखी अपनी जीत की स्क्रिप्ट?
पंजाब में बीजेपी-अकाली गठबंधन को लेकर विरोध कर चुके सिद्धू का यही बागी रूप कांग्रेस में भी देखने को मिला. 2017 में कांग्रेस में शामिल होने के बाद से ही उनके स्वर कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरोध में रहे हैं. कहा जाता है कि 2017 विधानसभा चुनावों में उन्होंने पंजाब में डिप्टी सीएम का पद मांगा था, लेकिन इसकी बजाय सिद्धू को मंत्री बनाया गया.
2018 में इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने पर पाकिस्तान जाने पर भी सिद्धू और कैप्टन में विवाद हुआ था. कैप्टन ने सिद्धू से इसमें नहीं जाने की अपील की थी, लेकिन सिद्धू ने इसे अनसुना कर दिया था.
'अमरिंदर सिंह मेरे कैप्टन नहीं'
अपनी पाकिस्तान यात्रा पर हुए विवाद पर सिद्धू ने साफ कर दिया था कि अमरिंदर सिंह उनके कैप्टन नहीं हैं. हैदराबाद में, सिद्धू ने कहा था, "अमरिंदर सिंह सेना में कैप्टन हैं. मेरे कैप्टन राहुल गांधी हैं. उनके (अमरिंदर सिंह) कैप्टन भी राहुल गांधी ही हैं." सिद्धू के इस फैसले ने दिखा दिया था कि भले वो पंजाब सरकार में मंत्री हैं, लेकिन वो रिपोर्टिंग मुख्यमंत्री को नहीं, बल्कि सीधा हाईकमान को करते हैं.
2019 में जब पंजाब मंत्रिमंडल में फेरबदल हुआ और सिद्धू का मंत्रालय बदल दिया गया, तो इसके विरोध में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. और इसके बाद से ही कैप्टन के खिलाफ सिद्धू का अभियान तेज हो गया है.
इसके बाद धार्मिक ग्रंथ बेअदबी मामले ने एक बार फिर सिद्धू को कैप्टन पर निशाना साधने का मौका दिया. सिद्धू ने खुलेआम आरोप लगाया कि मामले से निपटने और सच बोलने पर उनके सहयोगियों को राज्य सरकार धमका रही है.
कैप्टन पर हमला तेज करने के साथ-साथ सिद्धू ने उनके खिलाफ अपना खेमा तैयार कर लिया. मई 2020 में सिद्धू फिर कैप्टन के खिलाफ अपने विरोध को लेकर मुखर हो गए और विवाद इतना बढ़ गया कि दिल्ली में हाईकमान को इसे शांत करने के लिए एक कमेटी का गठन करना पड़ा.
सिद्धू स्वतंत्र रूप से फैसला लेना चाहते थे. अपने सलाहकारों की विवादित बयानबाजी पर कांग्रेस के अल्टीमेटम और इस्तीफे से परेशान सिद्धू ने 27 अगस्त को चेतावनी दी थी कि अगर उन्हें फैसले लेने की आजादी नहीं दी गई तो वो "ईंट से ईंट बजा" देंगे.
ऐसा नहीं है कि कैप्टन को पंजाब में पहली बार विरोध का सामना करना पड़ा है. काफी समय से ये बात सामने आ रही हैं कि प्रदेश नेताओं में कैप्टन को लेकर असंतोष बढ़ रहा है और उनकी लोकप्रियता भी घट रही है. इस लड़ाई में विरोधी कई थे, लेकिन लाइमलाइट में सिद्धू ही रहे. यही कारण है कि चुनावों से कुछ महीनों पहले ही कांग्रेस हाईकमान ने चुनावों जिताने वाले कैप्टन को हटाने जैसा बड़ा फैसला लिया.
अब देखना ये होगा कि क्या आगामी चुनाव में कांग्रेस खुले तौर पर सिद्धू को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाती है या नहीं?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 20 Sep 2021,08:31 PM IST