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पंजाब का CM कौन? कांग्रेस नाइट वॉचमैन चुनेगी या बेस्ट बैट्समैन? 3 विकल्प

क्या कांग्रेस मुख्यमंत्री विवाद को चुनाव तक टाल सकती है?

आदित्य मेनन
पॉलिटिक्स
Updated:
<div class="paragraphs"><p>कांग्रेस आलाकमान के सामने अब तीन चुनौतियां</p></div>
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कांग्रेस आलाकमान के सामने अब तीन चुनौतियां

फोटो: क्विंट

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कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) के पंजाब के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने के बमुश्किल एक घंटे बाद, कांग्रेस विधायक दल ने 18 सितंबर को चंडीगढ़ में बैठक की और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को ये निर्णय लेने के लिए अधिकृत किया कि अगला मुख्यमंत्री कौन होना चाहिए.

90 मिनट से भी कम समय तक चली इस बैठक में कांग्रेस के 80 में से 78 विधायकों ने भाग लिया, जिसमें कैप्टन अमरिंदर सिंह के वफादार और विरोधी दोनों शामिल थे.

कांग्रेस के सामने एक बड़ी समस्या ये है कि जो मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाएगा, क्या वही विधानसभा चुनावों के लिए भी पार्टी का चेहरा होगा? या अब से तीन महीने बाद होने वाले चुनावों तक ये 'कार्यवाहक मुख्यमंत्री' (Caretaker CM) की तरह की व्यवस्था होगी?

क्योंकि नवजोत सिद्धू इस मामले के प्रमुख खिलाड़ी हैं - कांग्रेस के सामने ये समस्या आ सकती है कि उसे नाइट वॉचमैन चाहिए, या फिर वो अपने बेस्ट बैट्समैन को मैदान में उतारेगी.

इससे तीन हालात बनते हैं:

1. नया मुख्यमंत्री आगामी चुनाव का चेहरा भी होगा

कैप्टन के जाने का बाद, राज्य के दूसरे कांग्रेसी नेताओं की राज्य में इतनी लोकप्रियता नहीं है. अगर खाली पद को कोई भी भरने के करीब है, तो वह पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ही हैं.

इसलिए अगर पार्टी यह स्पष्ट करना चाहती है कि नया मुख्यमंत्री आगामी चुनाव में कांग्रेस का चेहरा भी होगा, तो सिद्धू ही सबसे संभावित उम्मीदवार होंगे.

सिद्धू के होने के अपने फायदे हैं. बीजेपी हो या फिर कांग्रेस, दोनों ही पार्टी में सिद्धू हमेशा से एक विद्रोही बन कर रहे हैं, इसलिए उनकी अपेक्षाकृत छवि भी साफ सुथरी है. फिर करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोलने में भी उनकी अहम भूमिका रही, जो सिख समुदाय को साधने में मदद करेगी.

हालांकि, उनके प्रशासनिक अनुभव की कमी एक समस्या हो सकती है. खासकर जब चुनाव से ठीक पहले अगले कुछ महीनों में कांग्रेस को कुछ प्रमुख वादों को लागू करने की बात आती है.

फिर, ये भी धारणा बनती है कि वह टीम के खिलाड़ी नहीं है.

लेकिन अगर पार्टी को अभी चुनाव के लिए सीएम का चेहरा चुनना हो, तो सिद्धू के अलावा और किसी चेहरे की संभावना कम दिखती है. क्योंकि अगर ऐसा होता है तो इसका यह मतलब होगा कि सिद्धू उस नेता को चुनाव के लिए मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करेंगे, जिसके आसार कम लगते हैं. ज्यादा से ज्यादा, पार्टी मुख्यमंत्री पद का चेहरा बाद के लिए छोड़ सकती है, जो हमें दूसरे और तीसरे सवाल पर लाता है.

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2. कांग्रेस ऐसे 'केयरटेकर CM' को चुने, जो चुनावों में CM चेहरा न हो

दूसरी संभावना यह है कि कांग्रेस अगले कुछ महीनों के लिए एक वरिष्ठ नेता को अगले चुनाव तक मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करती है कि वह एक केयरटेकर सीएम होगा, और पार्टी का सीएम चेहरा नहीं होगा. यह भी हो सकता है कि सिद्धू खुद सिर्फ तीन महीने के लिए सीएम बनने के इच्छुक न हों.

ऐसे में सीएम सभी गुटों को स्वीकार्य कोई भी नेता हो सकता है. ऐसे में सुनील कुमार जाखड़ सबसे आगे रह सकते हैं.

इसके अपने फायदे हैं - यह सिद्धू को चुनाव प्रचार पर ध्यान केंद्रित करने के लिए फ्री करता है. अगर पार्टी अगले तीन महीनों में अपने प्रमुख वादों को पूरा करने में असमर्थ होती है तो यह उन्हें आलोचना से कुछ हद तक बचा सकता है. इस बात की काफी संभावना है कि बेअदबी मामलों में बादल की गिरफ्तारी या नशीले पदार्थों की तस्करी की जांच में बिक्रम मजीठिया जैसे बड़े कदम नहीं होंगे. सरकार इतने कम समय में कितनी नौकरियां पैदा कर सकती है, इसकी भी सीमाएं हैं.

इसलिए, सिद्धू को इसके लिए दोषी ठहराने के बजाय, पार्टी उन्हें चुनाव के चेहरे के रूप में बचा सकती है.

सिद्धू को पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष बनने और कैप्टन को सीएम पद से हटाने के बावजूद कुछ खास न कर पाने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ सकता है.

3. कांग्रेस मुख्यमंत्री विवाद को चुनाव तक टाल सकती है

यह हालात तब पैदा हो सकते हैं जब कांग्रेस आलाकमान अपने विकल्प खुले रखना चाहती हो. यह सीएम चेहरे के सवाल पर पार्टी नेतृत्व को थोड़ा और समय देगा, और बाद में नए सीएम को मिलने वाली प्रतिक्रिया के आधार पर फैसला करेगा.

लेकिन यह मुश्किल भी है, क्योंकि अगर सीएम और उनके प्रतियोगियों की महत्वाकांक्षा बढ़ती है, तो इससे चुनाव से पहले बंटे हुए गुटों की एक और लड़ाई हो सकती है.

इसमें सिद्धू एक कम पसंदीदा विकल्प हैं, क्योंकि अब उन्हें सीएम बनाने से कमोबेश यह निश्चित हो जाएगा कि वह सीएम का चेहरा भी होंगे.

इस पूरे विवाद में सबसे संभावित नाम गुरदासपुर जिले के वर्तमान जेल मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा और राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा होंगे. अगर देखा जाए तो सुनील जाखड़ मुख्यमंत्री हो सकते हैं, बशर्तें पार्टी अगले चुनावों में एक हिंदू मुख्यमंत्री का चेहरा पेश करने के लिए तैयार हो.

नए सीएम के सामने चुनौतियां

जिसको भी पंजाब का नया मुख्यमंत्री बनाया जाता है, उसका काम मुश्किल से तीन महीने के बाद खत्म हो जाएगा. पंजाब में पिछला विधानसभा चुनाव 2017 के पहले हफ्ते में करवाया गया था, अगर 2022 में फिर यही दोहराया जाता है तो पंजाब में नए सीएम को लगभग 100 दिन का समय मिलेगा.

इन 100 दिनों में पार्टी के लिए कई कार्यों को पूरा करने की आवश्यकता होगी. पंजाब कांग्रेस नवजोत सिंह सिद्धू, कार्याकारी अध्यक्ष संगत सिंह गिलजियान, कुलजीत नागरा, सुखविंदर सिंह डैनी बंडाला और पवन गोयल के द्वारा 27 जुलाई को लिखे जा चुके एक पत्र के द्वारा हमें एक आइडिया मिल सकता है कि कौन सी अहम प्राथमिकताएं होंगी.

पत्र में उन्होंने राज्य सरकार को पहले प्रस्तुत किए गए 18 सूत्रीय एजेंडे के भीतर ध्यान केंद्रित करने के लिए पांच प्राथमिकता वाले क्षेत्र दिए:

1. बरगारी बेअदबी और बहबल कलां फायरिंग के मुख्य दोषियों को सजा देना

2. पंजाब में नशीले पदार्थों की तस्करी के पीछे बड़े चेहरे की गिरफ्तारी

3. विधानसभा में एक कानून पारित किया जाए कि केंद्र के कृषि कानूनों को राज्य में लागू नहीं किया जाएगा

4. दोषपूर्ण बिजली खरीद समझौते रद्द करने की मांग

5. शिक्षकों, सफाई कर्मचारियों, चिकित्सा पेशेवरों आदि के यूनियनों की मांग

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Published: 19 Sep 2021,02:45 PM IST

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