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कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) के पंजाब के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने के बमुश्किल एक घंटे बाद, कांग्रेस विधायक दल ने 18 सितंबर को चंडीगढ़ में बैठक की और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को ये निर्णय लेने के लिए अधिकृत किया कि अगला मुख्यमंत्री कौन होना चाहिए.
90 मिनट से भी कम समय तक चली इस बैठक में कांग्रेस के 80 में से 78 विधायकों ने भाग लिया, जिसमें कैप्टन अमरिंदर सिंह के वफादार और विरोधी दोनों शामिल थे.
क्योंकि नवजोत सिद्धू इस मामले के प्रमुख खिलाड़ी हैं - कांग्रेस के सामने ये समस्या आ सकती है कि उसे नाइट वॉचमैन चाहिए, या फिर वो अपने बेस्ट बैट्समैन को मैदान में उतारेगी.
इससे तीन हालात बनते हैं:
कैप्टन के जाने का बाद, राज्य के दूसरे कांग्रेसी नेताओं की राज्य में इतनी लोकप्रियता नहीं है. अगर खाली पद को कोई भी भरने के करीब है, तो वह पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ही हैं.
सिद्धू के होने के अपने फायदे हैं. बीजेपी हो या फिर कांग्रेस, दोनों ही पार्टी में सिद्धू हमेशा से एक विद्रोही बन कर रहे हैं, इसलिए उनकी अपेक्षाकृत छवि भी साफ सुथरी है. फिर करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोलने में भी उनकी अहम भूमिका रही, जो सिख समुदाय को साधने में मदद करेगी.
फिर, ये भी धारणा बनती है कि वह टीम के खिलाड़ी नहीं है.
लेकिन अगर पार्टी को अभी चुनाव के लिए सीएम का चेहरा चुनना हो, तो सिद्धू के अलावा और किसी चेहरे की संभावना कम दिखती है. क्योंकि अगर ऐसा होता है तो इसका यह मतलब होगा कि सिद्धू उस नेता को चुनाव के लिए मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करेंगे, जिसके आसार कम लगते हैं. ज्यादा से ज्यादा, पार्टी मुख्यमंत्री पद का चेहरा बाद के लिए छोड़ सकती है, जो हमें दूसरे और तीसरे सवाल पर लाता है.
दूसरी संभावना यह है कि कांग्रेस अगले कुछ महीनों के लिए एक वरिष्ठ नेता को अगले चुनाव तक मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करती है कि वह एक केयरटेकर सीएम होगा, और पार्टी का सीएम चेहरा नहीं होगा. यह भी हो सकता है कि सिद्धू खुद सिर्फ तीन महीने के लिए सीएम बनने के इच्छुक न हों.
ऐसे में सीएम सभी गुटों को स्वीकार्य कोई भी नेता हो सकता है. ऐसे में सुनील कुमार जाखड़ सबसे आगे रह सकते हैं.
इसलिए, सिद्धू को इसके लिए दोषी ठहराने के बजाय, पार्टी उन्हें चुनाव के चेहरे के रूप में बचा सकती है.
सिद्धू को पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष बनने और कैप्टन को सीएम पद से हटाने के बावजूद कुछ खास न कर पाने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ सकता है.
यह हालात तब पैदा हो सकते हैं जब कांग्रेस आलाकमान अपने विकल्प खुले रखना चाहती हो. यह सीएम चेहरे के सवाल पर पार्टी नेतृत्व को थोड़ा और समय देगा, और बाद में नए सीएम को मिलने वाली प्रतिक्रिया के आधार पर फैसला करेगा.
लेकिन यह मुश्किल भी है, क्योंकि अगर सीएम और उनके प्रतियोगियों की महत्वाकांक्षा बढ़ती है, तो इससे चुनाव से पहले बंटे हुए गुटों की एक और लड़ाई हो सकती है.
इस पूरे विवाद में सबसे संभावित नाम गुरदासपुर जिले के वर्तमान जेल मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा और राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा होंगे. अगर देखा जाए तो सुनील जाखड़ मुख्यमंत्री हो सकते हैं, बशर्तें पार्टी अगले चुनावों में एक हिंदू मुख्यमंत्री का चेहरा पेश करने के लिए तैयार हो.
जिसको भी पंजाब का नया मुख्यमंत्री बनाया जाता है, उसका काम मुश्किल से तीन महीने के बाद खत्म हो जाएगा. पंजाब में पिछला विधानसभा चुनाव 2017 के पहले हफ्ते में करवाया गया था, अगर 2022 में फिर यही दोहराया जाता है तो पंजाब में नए सीएम को लगभग 100 दिन का समय मिलेगा.
पत्र में उन्होंने राज्य सरकार को पहले प्रस्तुत किए गए 18 सूत्रीय एजेंडे के भीतर ध्यान केंद्रित करने के लिए पांच प्राथमिकता वाले क्षेत्र दिए:
1. बरगारी बेअदबी और बहबल कलां फायरिंग के मुख्य दोषियों को सजा देना
2. पंजाब में नशीले पदार्थों की तस्करी के पीछे बड़े चेहरे की गिरफ्तारी
3. विधानसभा में एक कानून पारित किया जाए कि केंद्र के कृषि कानूनों को राज्य में लागू नहीं किया जाएगा
4. दोषपूर्ण बिजली खरीद समझौते रद्द करने की मांग
5. शिक्षकों, सफाई कर्मचारियों, चिकित्सा पेशेवरों आदि के यूनियनों की मांग
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Published: 19 Sep 2021,02:45 PM IST