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Patna Opposition Meet: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के लिए 23 जून को पटना में विपक्ष की बैठक किसी जीत से कम नहीं थी. वह 10 वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित 15 राजनीतिक दलों के 32 नेताओं को एक साथ लाने में कामयाब रहे.
सूत्रों का कहना है कि बैठक कुल मिलाकर सौहार्दपूर्ण रही और सभी दलों ने एक साथ आकर बीजेपी को हराने की जरूरत पर जोड़ दिया.
कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार ने यह सुनिश्चित करने के लिए व्यक्तिगत प्रयास किए हैं कि आने वाले सभी नेता पूरी तरफ कन्फर्टेबले हों और उन्हें उचित सम्मान दिया जाए.
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान भी, नीतीश कुमार ने मंच संभाला और दूसरों को बोलने दिया.
बैठक में एकमात्र चुभने वाली बात दिल्ली सरकार की शक्तियों में कटौती करने वाले केंद्र के अध्यादेश पर कांग्रेस के गैर-प्रतिबद्ध रुख को लेकर AAP का कांग्रेस पर हमला था. इसी संदर्भ में माना जा रहा है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने AAP को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर उसके समर्थन की याद दिलाई है.
हालांकि, यह अभी भी लगभग चार घंटे लंबी चर्चा का एक बहुत छोटा हिस्सा था.
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मौजूद सभी नेता एक सुर में बोले. यह घोषणा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है कि वे सभी जुलाई के दूसरे सप्ताह में फिर से मिलेंगे और सीट-बंटवारे और एक साझा कार्यक्रम जैसे मुद्दों पर चर्चा करेंगे.
विशेष रूप से महत्वपूर्ण उन पार्टियों की भागीदारी थी जो न तो कांग्रेस की चुनावी सहयोगी हैं और न ही किसी राज्य में उसके साथ सत्ता साझा करती हैं - जैसे तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी. इन तीनों का सीधा मुकाबला कांग्रेस से है. उन्हें साथ लाने का श्रेय काफी हद तक नीतीश कुमार को जाता है.
इस मुलाकात के जरिए कुमार ने खुद को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए एक गंभीर खिलाड़ी/ सीरियस प्लेयर के रूप में स्थापित किया है.
हालांकि, जब हम 'गंभीर खिलाड़ी' कहते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि नीतीश कुमार ऑटोमेटिक रूप से विपक्ष के पीएम उम्मीदवार या यहां तक कि फ्रंटरनर हैं.
अगर मई 2023 के एनडीटीवी-सीएसडीएस सर्वे पर गौर करें तो नीतीश कुमार को केवल 1 प्रतिशत लोगों ने अगले पीएम के लिए अपनी पसंद के रूप में चुना था. सर्वे के मुताबिक वह न केवल पीएम नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी से पीछे थे बल्कि अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी जैसे साथी मुख्यमंत्रियों से भी पीछे थे. दोनों को 4 प्रतिशत और पूर्व सीएम अखिलेश यादव को 3 प्रतिशत लोगों ने सर्वे में पसंद किया था.
इसलिए पटना की बैठक में भी देश भर में लोकप्रियता के मामले में नीतीश कुमार से चार नेता आगे थे.
फिर एनसीपी, डीएमके, शिवसेना-यूबीटी और जेएमएम जैसे अन्य कांग्रेस सहयोगियों के साथ उनका अच्छा समीकरण है. हालांकि विपक्ष के चेहरे के रूप में राहुल गांधी या मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे संभावित कांग्रेस उम्मीदवार की तुलना में खड़े नीतीश कुमार एक मोर्चे पर आगे हैं- उनकी कांग्रेस के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाली पार्टियों - टीएमसी, एसपी और आप के बीच स्वीकार्यता है.
नीतीश कुमार का ओडिशा के सीएम और बीजेडी प्रमुख नवीन पटनायक के साथ भी अच्छा समीकरण है, हालांकि नवीन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी बीजेपी विरोधी गठबंधन का हिस्सा नहीं होंगे.
नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने का एकमात्र रास्ता चुनाव के बाद का परिदृश्य ही है. यदि विपक्षी गठबंधन किसी तरह अच्छा प्रदर्शन करता है और सरकार बनाने का दावा पेश करने के करीब आता है, तो पटनायक या यहां तक कि चंद्रबाबू नायडू जैसे लोगों के बीच नीतीश कुमार की स्वीकार्यता उपयोगी साबित हो सकती है.
हालांकि, इसके लिए एनडीए को किसी भी तरह 250 से नीचे आना होगा.
वैसे भी लोकसभा चुनाव में अभी 10 महीने बाकी हैं. इस अवधि में नीतीश कुमार के सामने चार प्रमुख चुनौतियां हैं:
मौजूदा विपक्षी गठबंधन को एकजुट रखना, विशेष रूप से एक ओर कांग्रेस और दूसरी ओर एसपी, आप और टीएमसी जैसे उसके ज्ञात प्रतिद्वंद्वियों के बीच संतुलन बनाना
गठबंधन का विस्तार करना और भारत राष्ट्र समिति, बीजेडी, वाईएसआरसीपी, टीडीपी, बीएसपी और जेडी-एस तक पहुंचना.
बिहार में सीट-बंटवारे को सील करें और उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में इसे सुविधाजनक बनाएं.
विपक्ष में अपनी केंद्रीय भूमिका को देखते हुए, नीतीश कुमार बीजेपी के लिए एक चिह्नित व्यक्ति हैं. पार्टी यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश करेगी कि वह बिहार में शासन के मुद्दों से बंधे रहें। नीतीश कुमार संभावित सांप्रदायिक ध्रुवीकरण सहित इन मुद्दों को कैसे संभालते हैं, यह देखना बाकी है.
विपक्ष की अगली बैठक में देखने वाली बात यह है कि क्या नीतीश कुमार को गठबंधन के प्रबंधन की औपचारिक जिम्मेदारी दी जाती है.
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