advertisement
पाकिस्तान (Pakistan) के वजीर-ए-आजम इमरान खान (Imran Khan) को उनके अपने वजीरों ने ही बड़ी मुश्किल में डाल दिया है. इमरान खान के सहयोगी दल उनसे बागी हो गए हैं. पाकिस्तान की संसद में पीएम इमरान खान की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है.
अगर यह प्रस्ताव पास हो जाता है तो इमरान खान पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम यानी प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे. पाकिस्तान में एकाएक यह हालात कैसे हो गए, इमरान पर ये आफत कैसे आई, आइए आपको समझाते हैं.
हुआ यूं के पाकिस्तान के करिश्माई क्रिकेटर इमरान खान अगस्त 2018 में प्रधानमंत्री बनने के बाद देश को प्रभावी ढंग से चलाने में नाकाम रहे हैं. इस महीने इमरान खान के 20 सांसदों ने दल बदलकर इमरान खान की सरकार से अपना सहयोग वापस ले लिया और पीएम इमरान खान से इस्तीफे की मांग करने लगे.
फिर विपक्ष ने दावा किया कि इन सांसदों के जाने के बाद इमरान खान ने संसद में अपना बहुमत गंवा दिया है. बहुमत साबित करने के लिए पाकिस्तान में किसी भी सरकार को नेशनल असेंबली के सामने 172 सांसदों का समर्थन साबित करना होता है.
जियो न्यूज के मुताबिक, इस अविश्वास प्रस्ताव से पहले इन बीस सांसदों के साथ मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पाकिस्तान , पाकिस्तान मुस्लिम लीग-कायद और बलूचिस्तान अवामी पार्टी इमरान खान की सरकार से अपना समर्थन वापस ले सकती हैं. अगर ऐसा होता है तो पीएम इमरान खान के सामने बहुमत साबित करना बड़ी चुनौती होगी.
संयुक्त विपक्ष ने तो आपस में पोर्टफोलियो भी बांट लिए हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक अगर अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है तो पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ पाकिस्तान के अगले पीएम होंगे.
अगर इमरान अपनी सरकार नहीं बचा पाते हैं तो 1957 के बाद पहले बार ऐसे नेता होंगे, जिन्हें अविश्वास प्रस्ताव की वजह से पद छोड़ना पड़ेगा. साल 1957 में पाकिस्तान के छठे प्रधानमंत्री इब्राहिम इस्माइल चुंदरीगर को उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के बाद पद से हटा दिया गया था.
पीएम इमरान खान अपनी सरकार बचाने के लिए हर पैंतरा अपना रहे है. वो दलबदलू सांसदों पर कार्यवाही की मांग उठा रहे हैं. पाकिस्तान की सेना को अपनी ओर लाने की कोशिश कर रहे हैं.वैसे तो पाकिस्तान आर्मी का कहना कि वह खुद को इस मामले से दूर रखना चाहते हैं.
जानकारों का मानना है कि इमरान खान की अकुशलता और नाजुक समय में उनके अटपटे सार्वजनिक बयानों आर्मी के जनरल परेशान हैं. ताजा उदाहरण है हाल में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद इमरान का मास्को दौरा और उनके बयान.
अव्वल तो इस हमले के बाद उन्हें अपना दौरा रद्द करना चाहिए था, ऊपर से उन्होने पुतिन से मुलाकात को शिष्टाचार वाली मुलाकात बता दिया. इससे रूस के दुश्मन पश्चिमी देश नाराज हो गए. मतलब आप समझिए हमारे दुश्मनों से शिष्टाचार कर रहे हो आप.
इसके बाद एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए यूरोपियन यूनियन के राजदूतों के समूह और करीब 20 देशों ने जिनमें फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देश शामिल हैं, उन्होंने एक संयुक्त बयान के जरिए पाकिस्तान से कहा कि वो यूक्रेन पर रखी गई यूएन जनरल असेंबली डिबेट के दौरान रूस की आलोचना करे, लेकिन पाकिस्तान ने तय किया कि वो न तो इस डिबेट में हिस्सा लेगा और न किसी का पक्ष लेगा.
आलोचना हुई तो इमरान ने कह दिया हम किसी के गुलाम नहीं. जाहिर है ये बयान उनकी पद की गरिमा और देशहित के खिलाफ था. उसपर ये भी याद कर लेना चाहिए कि पाकिस्तान की सेना नाटो और पश्चिमी देशों पर पैसे से लेकर हथियारों तक के लिए निर्भर है. तो ऐसे में जिस इमरान को कभी आर्मी की पसंदीदा आदमी कहा जाता था, वही अब आर्मी को खटकने लगें तो कोई ताज्जुब नहीं.
खैर अगले कुछ दिनों में इसकी तस्वीर साफ हो जाएगी की पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन होगा या क्रिकेट के मैदान में अपना लोहा मनवा चुके इमरान खान इस सियासी संकट वाले स्पेल को भी जीत जाएंगे?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined