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सुनील जाखड़: 8 महीने पहले मुख्यमंत्री बनते रह गए, अब कांग्रेस से दिया इस्तीफा

Sunil Jakhar के पिता बलराम जाखड़ धाकड़ कांग्रेसी नेता रहे हैं. जानें पंजाब के इस बड़े नेता का सियासी सफरनामा

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<div class="paragraphs"><p>राहुल गांधी के साथ सुनील जाखड़</p></div>
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राहुल गांधी के साथ सुनील जाखड़

(फोटो: File/PTI)

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पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) के वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ (Sunil Jakhar) ने शनिवार दोपहर को फेसबुक पर पार्टी से इस्तीफे की घोषणा कर दी. उदयपुर में जारी चिंतन शिविर के बीच यह कांग्रेस (INC) के लिए झटका देने वाली खबर रही.

दरअसल जाखड़ पिछले कुछ समय से पार्टी से लगातार नाराज चल रहे थे. यह नाराजगी इतनी ज्यादा थी कि उनकी तीन पीढ़ियां कांग्रेसी होने के बावजूद, वे पार्टी से इस्तीफे के लिए मजबूर हो गए.

राजनीतिक परिवार से आते हैं सुनील जाखड़, पंजाब में कांग्रेस के बड़े हिंदू नेता

सुनील जाखड़ का जन्म वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और मध्यप्रदेश के गवर्नर (2004-09) रहे बलराम जाखड़ के यहां 9 फरवरी 1954 में हुआ था. राजनीतिक परिवार से आने के चलते सुनील जाखड़ को संपर्क बनाने में बहुत कठिनाई नहीं झेलनी पड़ी.

2002 में वे फजिल्का जिले की अबोहर सीट से चुनाव लड़े और विधायक बने. इसके बाद वे लगातार तीन चुनाव (2002, 2007 और 2012) में इस सीट से विधायक चुने जाते रहे. लेकिन 2017 में बीजेपी उम्मीदवार अरुण नारंज से महज 3279 वोटों के अंतर से हार गए.

2017 में उन्होंने गुरुदासपुर लोकसभा उपचुनाव लड़ा और जीता. इस तरह वे पहली बार सांसद बने. 2017 में ही तब उनका करियर चरम पर पहुंच गया, जब उन्हें कांग्रेस प्रदेश कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया.

सिख बहुत और प्रभुत्व वाले पंजाब में सुनील जाखड़ कांग्रेस के बड़े गैर-सिख नेता माने जाते रहे हैं. जाखड़ पंजाबी हिंदू जाट समुदाय से आते हैं. ऐसे में उनके जरिए कांग्रेस को पंजाब में गैर-सिखों को साधने में थोड़ी बहुत मदद भी मिलती रही.

बेहद करीब पहुंच जाने के बावजूद भी नहीं बन पाए मुख्यमंत्री

2021 में अमरिंदर सिंह को लंबी जद्दोजहद के बाद कांग्रेस ने सीएम पद से हटा दिया. इसके बाद सीएम पद को लेकर रस्साकसी शुरू हुई. बतौर जाखड़, उस समय 79 में 42 विधायकों कांग्रेस आलाकमान के प्रतिनिधि के सामने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए वोटिंग की थी. जबकि चरणजीत सिंह चन्नी के साथ सिर्फ दो विधायक थे. 16 विधायक सुखजिंदर सिंह रंधावा और 12 विधायकों ने अमरिंदर सिंह की पत्नी परनीत कौर के नाम की सिफारिश की थी. लेकिन इसके बावजूद चन्नी को आलाकमान की पसंद होने के चलते मुख्यमंत्री बना दिया गया.

यहीं से जाखड़ और अंबिका सोनी के बीच खटपट शुरू हुई थी. दरअसल अंबिका सोनी ने वोटिंग के बाद सिख सीएम की वकालत करते हुए कहा कि सिख राज्य में सिख ही सीएम होना चाहिए. बतौर जाखड़, चरम उग्रवाद के दौर में भी ऐसी बातें कांग्रेस में कभी नहीं कहीं गईं, यह बातें बांटने वाली थीं. इसका जाखड़ ने जमकर विरोध भी किया.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर शुरू हुई थी नाराजगी

इससे पहले नवजोत सिंह सिद्ध के चलते सुनील जाखड़ को अचानक ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से भी हटा दिया गया था. इस समय जाखड़ के पंजाब प्रभारी हरीश रावत के साथ भी अच्छे रिश्ते नहीं चल रहे थे. यह पहली घटना थी, जिससे जाखड़ की नाराजगी शुरू हुई थी. इसके बाद सीएम पद को लेकर वोटिंग में भी जाखड़ को ज्यादा विधायकों का समर्थन हासिल था, लेकिन पार्टी ने उन्हें सीएम नहीं बनाया.

विधानसभा चुनाव में हार के बाद जाखड़ ने बयानबाजी तेज कर दी और चन्नी को पार्टी पर बोझ तक बता दिया. इसके बाद कांग्रेस ने उन्हें नोटिस भी जारी किया, जिसका उन्होंने जवाब देने से इंकार कर दिया और साफ संकेत दे दिए कि वे आगे झुकने वाले नहीं हैं.

यही टकराव अब जाखड़ के इस्तीफे के तौर पर सामने आया है.

पढ़ें ये भी: कांग्रेस चिंतन शिविर: पहले दिन सोनिया गांधी-CM गहलोत के निशाने पर रही मोदी सरकार

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