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निकलना खुल्द (जन्नत) से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले...
साल 2020 में जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) को अपनी पार्टी से निकाला था, तब मिर्जा गालिब का ये शेर मेरे जहन में आया था. तब नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की पार्टी के नंबर दो कहे जाने वाले पीके को अपने गृह राज्य बिहार को छोड़ना पड़ा था. लेकिन आज जब खबर आ रही है कि प्रशांत किशोर एक बार फिर अपने नए अभियान के लिए बिहार लौट रहे हैं, तो मिर्जा गालिब के इसी शायरी का आगे का मिसरा याद आ गया-
मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं, जिस काफिर पे दम निकले..
प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर लिखा है कि समय आ गया है कि असली मालिकों के बीच जाएं. यानी लोगों के बीच. ऐसे में ये अटकलें लगाई जा रही हैं कि शायद पीके अपनी अलग पार्टी बनाएंगे या फिर नीतीश कुमार के साथ दोबारा राजनीतिक मैदान में उतरने वाले हैं. लेकिन सवाल है कि नीतीश कुमार की पार्टी के नंबर दो कहे जाने वाले पीके को नीतीश ने आखिर पार्टी से क्यों निकाला था? ऐसा क्या हुआ तो जो नीतीश और पीके आमने-सामने आ गए थे?
साल 2014 लोकसभा चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी और बीजेपी का चुनावी कैंपेन संभालने वाले प्रशांत किशोर ने 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू के लिए काम किया था. इस दौरान बिहार में आरजेडी और जेडीयू के बीच गठबंधन बना था और बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी थी.
नीतीश कुमार बिहार के सीएम बने तो प्रशांत किशोर को कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला.
एक जमाना था जब नीतीश कुमार पीके को बिहार का भविष्य बताते थे, दोनों ओर से एक दूसरे के लिए तारीफों के कसीदे पढ़े जा रहे थे. इसके बाद सितंबर 2018 में प्रशांत किशोर जेडीयू में शामिल हुए. फिर माना जाने लगा कि पीके जेडीयू में नंबर दो बन गए हैं, यानी नीतीश कुमार के बाद पीके का फैसला ही फैसला है. नीतीश कुमार ने पीके को जनता दल यूनाइटेड का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बना दिया था. पीके का जेडीयू में कद बढ़ने लगा, उधर जेडीयू के कई दिग्गज नेता साइडलाइन होने लगे.
लेकिन इसी बीच जेडीयू और लालू यादव की आरजेडी में तकरार बढ़ गई और गठबंधन टूट गया. नीतीश वापस बीजेपी के साथ आ गए.
2019 लोकसभा चुनाव में प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार ने मानो साइडलाइन कर दिया हो. जेडीयू के प्रचार की कमान प्रशांत किशोर के बजाय आरसीपी सिंह ने संभाली. यहां तक की बीजेपी के साथ सीट शेयरिंग के मुद्दे पर प्रशांत नहीं बल्कि आरसीपी सिंह ने मोर्चा संभाला.
इसके बाद प्रशांत ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी के प्रचार की कमान संभाली और बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. साथ ही अपने ही नेता नीतीश कुमार के फैसलों पर सवाल उठाने शुरू कर दिए.
जब नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में नीतीश कुमार की जेडीयू ने मोदी सरकार का साथ देते हुए इस बिल के पक्ष में वोटिंग की, तब इससे प्रशांत किशोर नाराज होकर पार्टी के खिलाफ बयान देने लगे.
पीके ने कहा था कि ये कानून देश के संविधान के खिलाफ था और नीतीश कुमार ने इसका समर्थन करके बड़ी गलती की है.
इसी दौरान दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर ने आम आदमी पार्टी के चुनावी कैंपेन के लिए काम शुरू किया और बीजेपी पर खुलकर हमला करने लगे. साथ ही नीतीश कुमार के फैसलों पर भी सवाल उठाने लगे.
जब मामला बढ़ा तो नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह के साथ मिलकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा,
नीतीश के इस बयान के बाद नीतीश और पीके के बीच मानों जंग छिड़ गई. साल 2020 में नीतीश कुमार ने पीके को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.
पीके ने ट्विटर पर नीतीश कुमार को झूठा तक बता दिया. पीके ने लिखा,
फिलहाल खबर है कि पीके पटना में हैं और वो नीतीश कुमार से मिलने वाले हैं. दोनों के बीच पिछले कुछ दिनों में कई बार मुलाकात भी हुई हैं. लेकिन सवाल है कि क्या पीके जिस कूचे से यानी जेडीयू से बेआबरू होकर निकले थे वहां दोबारा जाएंगे?
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