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‘मोदी सरनेम’ से जुड़े मानहानि मामले में दोषी पाए जाने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता (Rahul Gandhi Disqualified) चली गयी है और देश की राजनीति उफान पर है. विपक्ष एकजुट होता दिख रहा और बीजेपी भी लगातार पलटवार कर रही है. इन सबके बीच मानहानि से शुरू हुआ मुद्दा ओबीसी की तरफ जाता दिख रहा है. इसे लेकर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का बयान आया, जिसमें ओबीसी समाज के अपमान का आरोप लगाया. कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे से बिना देर किए नड्डा के बयान का काउंटर किया. अखिलेश यादव और स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी ओबीसी (OBC) के सम्मान पर बयान दिए. ऐसे में समझना जरूरी हो जाता है कि पूरा मुद्दा ओबीसी की तरफ जाता क्यों दिख रहा है? क्या बीजेपी कुछ और साधने की कोशिश में है? लोकसभा चुनाव 2024 में ओबीसी वोट कितना अहम है?
इन सवालों पर विचार करने से पहले देखते हैं कि इन राजनेताओं के बयानों से कैसे ओबीसी एंगल सामने आया है?
बीजेपी प्रमुख जेपी नड्डा ने 24 मार्च को राहुल गांधी पर ओबीसी समुदाय के अपमान का आरोप लगाया और निशाना साधा. नड्डा ने ट्वीट करते हुए कहा, “राहुल गांधी का अहंकार बहुत बड़ा और समझ बहुत छोटी है. अपने राजनीतिक लाभ के लिए उन्होंने पूरे OBC समाज का अपमान किया. उन्हें चोर कहा. समाज और कोर्ट के द्वारा बार-बार समझाने और माफी मांगने के विकल्प को भी उन्होंने नजरअंदाज किया और लगातार OBC समाज की भावना को ठेस पहुंचाई… पूरा OBC समाज प्रजातांत्रिक ढंग से राहुल से इस अपमान का बदला लेगा.”
जेपी नड्डा के इस हमले के बाद बारी थी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की. खड़गे ने हिंदी में ट्वीट करते हुए लिखा कि मोदी सरकार JPC से भाग नहीं सकती ! PNB व जनता के पैसे लेकर नीरव मोदी, ललित मोदी, मेहुल चौकसी भागे ! OBC वर्ग तो नहीं भागा, फिर उनका अपमान कैसे हुआ ? SBI/LIC को नुकसान आपके “परम मित्र” ने पहुंचाया !
इसके अलावा अखिलेश यादव भी बीजेपी को इस मुद्दे पर जवाब देते दिखे. अखिलेश यादव ने बीजेपी को घेरने के लिए 6 साल पुराने मुद्दे को उठाया. अखिलेश यादव ने दावा किया कि यूपी में योगी सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री आवास को बीजेपी के लोगों ने गंगाजल से धुलवाया था, क्या तब ओबीसी का अपमान नहीं हुआ था?
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने ट्वीट करते हुए कहा कि “देश के तीनों कुख्यात भगोड़े नीरव मोदी, ललित मोदी और मेहुल चौकसी में से कोई भी पिछड़ी जाति का नहीं है. फिर भी बीजेपी द्वारा पिछड़े की दुहाई देकर इन्हें बचाने का कुत्सित प्रयास एवं पिछड़ों को बदनाम व अपमानित करने की साजिश का मैं घोर निंदा करता हूं”
यहां तक कि खुद राहुल गांधी ने बीजेपी के इन आरोपों पर जवाब दिया है. उन्होंने कहा, “यह ओबीसी का मामला नहीं है. यह नरेंद्र मोदी जी और अडानी के रिश्ते का मामला है… बीजेपी ध्यान भटकाने की बात करती है. कभी ओबीसी की बात करेगी, कभी विदेश की बात करेगी ..”
इसके बाद बारी थी बीजेपी सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद की. उन्होंने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा राहुल गांधी पर पिछड़े समाज के अपमान का आरोप लगाया है.
अगर बीजेपी के लिए ओबीसी वोट बैंक की अहमियत समझनी है तो पिछले चुनावी नतीजों पर नजर डालने की जरूरत है. 1990 के दशक में मंडल की राजनीति का मुकाबला करने के लिए भगवा पार्टी को बहुत कठिन संघर्ष करना पड़ा और इसका काट उसने कमंडल (हिंदुत्व) में खोजने की कोशिश की. भले ही बीजेपी ने लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में कड़ी मेहनत की और 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव जीते और गठबंधन सहयोगियों के साथ एनडीए सरकार का गठन किया, लेकिन क्षेत्रीय दल बहुत मजबूत बने रहे. 1998 और 1999 में क्षेत्रीय दलों को क्रमश: 35.5% और 33.9% वोट मिले. इन क्षेत्रीय दलों के वोट बैंक का एक बहुत बड़ा हिस्सा ओबीसी वोटों का है.
2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी ने ओबीसी मतदाताओं के बीच बड़े पैमाने पर घुसपैठ की और क्षेत्रीय दलों के वोट बैंक में सेंध लगाई. 2019 के चुनावों में क्षेत्रीय दलों का ओबीसी वोटों में शेयर घटकर 26.4% रह गया, जबकि बीजेपी ने बड़ी बढ़त हासिल करते हुए 44% ओबीसी वोट अपने पाले में किए.
ऐसा लगता है कि 2024 के आम चुनावों में बीजेपी इस मोर्चे पर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. वह भरपूर कोशिश में है कि आगामी चुनावों में न सिर्फ उसका ओबीसी वोट बैंक मजबूत रहे बल्कि उसमें इजाफा ही हो. ऐसे में शायद भगवा पार्टी को राहुल गांधी के बहाने कांग्रेस को ओबीसी विरोधी बताने का अच्छा मौका दिख रहा है.
बीजेपी के लिए एक परेशानी यह भी हो सकती है कि अगर तमाम क्षेत्रीय पार्टियां उससे मुकाबला करने के लिए साथ आती हैं (जिसके संभावना अभी भी कम है) तो उसके लिए अपने ओबीसी वोटों को बचाए रखना मुश्किल होगा. बहुत हद तक संभावना है कि बीजेपी आने वाले समय में ओबीसी समुदाय को साधने के लिए नई-नई रणनीति अपनाती रहे.
तीसरी वजह जाति जनगणना है.
बिहार और यूपी में तमाम क्षेत्रीय पार्टियां केंद्र सरकार पर जाति आधारित जनगणना का दबाव बना रही हैं लेकिन बीजेपी इस मांग पर स्पष्ट नहीं दिख रही. इसकी वजह से क्षेत्रीय पार्टियां बीजेपी को घेर रही हैं और बीजेपी बैकफुट पर दिखती नजर आ रही है. ऐसे में लगता है कि इस डेंट की भरपाई के लिए बीजेपी राहुल के बहाने ओबीसी का मुद्दा उछाल कर जाति जनगणना पर बढ़त लेने की कोशिश में दिख रही है.
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए मुश्किल से एक साल रह गए हैं. कुछ हद तक क्षेत्रीय पार्टियां लामबंद होती दिख रही हैं. ऐसे में राहुल गांधी के खिलाफ कोर्ट के इस फैसले और उनकी सदस्यता जाने ने बीजेपी को मौका दे दिया है. बीजेपी के पास मौका है कि वह न सिर्फ ओबीसी वोटों पर पकड़ मजबूत करें, बल्कि कांग्रेस को ओबीसी विरोधी करार देकर क्षेत्रीय पार्टियों को भी असमंजस में डाल सकती है. असमंजस इस बात का कि अगर बीजेपी ने कांग्रेस के खिलाफ 'ओबीसी विरोधी' का नैरेटिव कुछ हद तक भी सेट कर दिया तो क्षेत्रीय पार्टियों को भी कांग्रेस के साथ आने में असहज महसूस हो सकता है. ऐसे में बीजेपी को चुनौती देने के लिए वक्त रहते कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियों को इस मुद्दे का काट निकालना होगा.
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