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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को बीजेपी "पप्पू" और बिना सोचे समझे बोलने वाला नेता बताती है. यह बोलकर उन्हें खारिज कर देती है कि उनके पास नेहरू-गांधी परिवार में पैदा होने के अलावा कोई उपलब्धि नहीं है. लेकिन आज उसी राहुल गांधी को चुप कराने और सत्ता से बेदखल करने के लिए पूरा प्रयास करती नजर आ रही है.
हालांकि, हकीकत तो यही है कि सजा के बाद उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई है. साथ ही यह फैसला बीजेपी के लिए काफी उपयुक्त है क्योंकि राहुल सदन में एक प्रभावशाली वक्ता साबित हुए हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उद्योगपति गौतम अडानी से कथित निकटता के बारे में लगातार सवाल उठाते रहे हैं.
सूरत अदालत के फैसले के गुण-दोष पर बहस करना वकीलों का काम है. राहुल ने 2019 में चुनावी भाषण के दौरान कहा था कि "ऐसा कैसे हो सकता है कि इन सभी चोरों (नीरव मोदी, ललित मोदी, आदि) का सरनेम मोदी है?" कुछ कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक सामान्य टिप्पणी थी और यह आपराधिक मानहानि कानून के तहत कार्रवाई योग्य नहीं हो सकती है, क्योंकि आपराधिक मानहानि कानून किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ की गई टिप्पणी से संबंधित है.
लेकिन, बीजेपी से जुड़े कई लोगों ने और 'मोदी' सरनेम वाले व्यक्तियों ने राहुल के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला दायर किया था. सूरत की अदालत ने अपने विवेक से न केवल उन्हें अपराध का दोषी ठहराने का फैसला किया, बल्कि कानून के तहत अधिकतम सजा भी दी. इसके बाद केरल के वायनाड से सांसद राहुल की सदस्यता रद्द कर दी गई.
लिली थॉमस बनाम भारत संघ, 2013 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि जैसे ही किसी भी सांसद को दोषी ठहराया जाता है और दो या दो से अधिक साल की जेल की सजा सुनाई जाती है, उसे अयोग्य घोषित किया जाएगा. विडंबना यह है कि जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने ऐसे सजायाफ्ता सांसदों को कुछ छूट देने के लिए अध्यादेश लाने की मांग की, तो राहुल गांधी ने ही एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह कहते हुए अध्यादेश को फाड़ दिया कि कांग्रेस भ्रष्टाचार के साथ कोई समझौता नहीं करेगी.
हाल के दिनों में देखा गया है कि राहुल गांधी कुछ भी कहते हैं, उसके लिए बीजेपी उनपर हमलावर हो जाती है. राहुल गांधी सत्ताधारी पार्टी के सामने महंगाई, बेरोजगारी और तमाम तरह के मुद्दे जोरशोर से उठाते रहे हैं. लेकिन मौजूदा वक्त में सत्ताधारी पार्टी के कार्यकाल में नागरिक स्वतंत्रता के लिए जगह कम होती नजर आ रही है.
7 फरवरी को संसद में राहुल के चुभने वाले भाषण को निकाल दिया गया था. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला किया गया था. सरकार पर क्रोनिज्म का आरोप लगाते हुए अडानी के व्यावसायिक हितों के असाधारण विस्तार में साथ देने का आरोप लगाया गया था. यानी कि भाषण के उन हिस्सों को स्थायी रूप से संसद के रिकॉर्ड से हटा दिया जाएगा और कोई भी मीडिया इस पर रिपोर्ट नहीं कर पाएगा. इतना ही नहीं राहुल के खिलाफ एक "भ्रामक, असंसदीय और अपमानजनक" बयान देने का आरोप लगाते हुआ एक विशेषाधिकार प्रस्ताव लाया गया था. आरोप लगाया गया कि उन्होंने प्रधानमंत्री को लेकर अपशब्द बोले हैं.
राहुल गांधी के खिलाफ हमलों की बौछार जारी है. इस महीने की शुरुआत में जब राहुल गांधी ने ब्रिटेन में भारत के लोकतांत्रिक संस्थानों के कमजोर होने के बारे में बयान दिया तो बीजेपी भड़क उठी. "भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप की मांग" का आरोप लगाकर उनकी चौतरफा आलोचना की गई. यह एक घोर झूठ था क्योंकि राहुल ने स्पष्ट रूप से कहा था कि समस्या भारत की अपनी है, लेकिन दुनिया को इसके बारे में पता होना चाहिए. फिर भी उनकी टिप्पणी पर ऐसा बवाल मचा कि सत्ता पक्ष के विरोध के साथ संसद को दो दिनों के लिए ठप कर दिया गया. साथ में मांग की गई कि राहुल यूके में दिए गए बयानों के लिए माफी जारी करें.
बीजेपी दावा करती है कि राहुल गांधी मोदी के सामने अप्रासंगिक और चुनौती न दे सकने वाले नेता हैं. इसके बावजूद राहुल गांधी को बदनाम करने का एक भी मौका पार्टी नहीं गंवाती है.
सच तो यह है कि राहुल को तेजी से देखा और सुना जा रहा है. यह प्रक्रिया 3500 किमी. से अधिक और चार महीने लंबी भारत जोड़ो यात्रा के साथ शुरू हुई. 2014 में मोदी और बीजेपी को वोट देने वाले कई लोग अब एक राजनीतिक नेता के रूप में उनकी परिपक्वता, उनकी ईमानदारी और प्रतिबद्धता को स्वीकार करते हैं.
हालांकि, इससे राहुल दूर नहीं होंगे. एक टीवी डिबेट में, एक बीजेपी नेता ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि अरविंद केजरीवाल जैसे विपक्ष के कुछ नेता राहुल गांधी के समर्थन में बोल रहे थे, इसका मतलब यह नहीं था कि लोकसभा चुनाव से पहले वे उनके साथ हाथ मिला लेंगे.
हां शायद न मिलाए. लेकिन सभी विपक्षी दलों को ध्यान देना चाहिए कि यह बीजेपी का सबसे बड़ा डर है और यही बीजेपी की संभावित दुखती रग है. एक संयुक्त विपक्ष चुनावी समीकरण को पलट सकता है और बीजेपी को हरा सकता है. कांग्रेस एक व्यावहारिक आधार हो सकती है जिसके चारों ओर विपक्ष 2024 से पहले एक साथ आ सकता है. बीजेपी इस तथ्य पर भरोसा कर रही है कि अलग-अलग विपक्षी दलों के बीच छोटी प्रतिद्वंद्विता और महत्वाकांक्षाएं उनको एकजुट होने से रोकेगी.
लेकिन, कभी-कभी असंभव मानी जाने वाली स्थिति भी संभव हो जाती है, और सबसे अप्रत्याशित राजनीतिक गठजोड़ हो जाते हैं. इसी संभावना में राहुल बीजेपी के लिए खतरा हैं और इसी में सत्ताधारी पार्टी की उन्हें बदनाम करने और उनके 'पर' कतरने की अथक कोशिशें निहित हैं.
(शुमा राहा एक पत्रकार और लेखक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @ShumaRaha है. यह एक ओपिनियन पीस है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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