मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Politics Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Rahul Gandhi Birthday: 2024 चुनाव से पहले क्या है राहुल गांधी की ताकत और कमजोरी?

Rahul Gandhi Birthday: 2024 चुनाव से पहले क्या है राहुल गांधी की ताकत और कमजोरी?

Rahul Gandhi Birthday: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी 2004 में पहली बार अमेठी से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे.

पल्लव मिश्रा
पॉलिटिक्स
Updated:
<div class="paragraphs"><p>Rahul Gandhi Birthday: 2024 चुनाव से पहले क्या है राहुल गांधी की ताकत और कमजोरी?</p></div>
i

Rahul Gandhi Birthday: 2024 चुनाव से पहले क्या है राहुल गांधी की ताकत और कमजोरी?

(फोटो: धनजय कुमार/क्विंट हिंदी)

advertisement

Rahul Gandhi Birthday: साल 2004 में, सोनिया गांधी पीएम क्यों नहीं बन पायी, ये किस्सा है, और इसी किस्से के बाद गांधी परिवार के 'युवराज' राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का उभार हुआ. भारतीय संस्कृति में सत्ता हंस्तातरण में स्वभाविक पसंद वारिश होते हैं और गांधी परिवार में भी ये रवायत पुरानी है.

राहुल गांधी का 53वां जन्मदिन

खुद पीएम न बन पाने के बाद सोनिया ने राहुल को आगे किया, जिससे ये संदेश गया कि कांग्रेस की अब अगली कमान राहुल के ही हाथों में होगी. हालांकि, अपने 34वें जन्मदिन से कुछ महीने पहले राहुल 2004 का आम चुनाव अपने पिता राजीव गांधी की पांरपरिक सीट अमेठी से जीतकर लोकसभा पहुंच चुके थे. तब से अब तक, राहुल गांधी सियासत में प्रासंगिक बने हुए हैं और अब 19 जून को अपना 53वां जन्मदिन मना रहे हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के गोद में बैठे राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका. साथ में मां सोनिया गांधी भी हैं. ये उनके बचपन की तस्वीर है.

क्रेडिट - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 

हालांकि, राहुल गांधी के लिए इस बार जन्मदिन मनाने का मौका बहुत शानदार है. हिमाचल और कर्नाटक में जीत से कांग्रेस कार्यकर्ता उत्साहित हैं और राहुल गांधी को जीत का क्रेडिट दिया गया है. ऐसे में आइये आपको कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की 'ताकत', 'कमजोरी', 'अवसर' और 'खतरे' के बारे में बताते हैं.

ताकत

  • भारत एक बहुधर्मी, बहुभाषायी, बहुसांस्कृतिक और बहुवर्गीय लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष देश है. ऐसे में लंबे समय तक शासन में रही देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के नेता के रूप में उनकी पहचान सभी धर्मों, भाषाओं, संस्कृतियों और वर्गों को साथ लेकर चलने की है.

  • राहुल गांधी एक युवा नेता हैं, जो उदार राष्ट्रवाद की उस धारा का नेतृत्व करते हैं, जो बीजेपी समेत अन्य दक्षिणपंथी समूहों की कथित रूप से कट्टर पुरातन सोच के विपरीत आधुनिक सामाजिक, वैज्ञानिक तकनीकी और आर्थिक नीतियों में भरोसा रखती है.

राहुल गांधी

(फोटो- इंस्टाग्राम/@rahulgandhi)

वरिष्ठ पत्रकार संजय दुबे ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा,"राहुल गांधी की देश के अंदर और देश के बाहर विदेशों में युवाओं के बीच काफी लोकप्रियता हैं और वह खुद को कट्टरवाद के खिलाफ संघर्ष करने वालों की अगुवाई करने वाले ऐसे नेता की छवि बनाये हुए हैं, जो काफी सहिष्णु है."

शोषण के खिलाफ लड़ाई छेड़ने के रूप में भारत जोड़ो यात्रा उसकी एक मिसाल है, जिसमें हजारों लोग उनके साथ सैकड़ों किमी तक पैदल चलने में कदम से कदम मिलाये.
संजय दुबे, वरिष्ठ पत्रकार

राजनीतिक जानकारों की मानें तो, राहुल गांधी की उच्च शिक्षा, अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ होना और आधुनिकपसंद व्यवहार से नई पीढ़ी के उन लोगों, खास तौर पर कॉलेज जाने वाले छात्र-छात्राओं और उन उच्च शिक्षित प्रोफेशनल्स में भी, जो दकियानूसी विचारधारा को प्रगति में बाधक मानते हैं, में काफी साख है.

(फोटो: कांग्रेस)

वरिष्ठ पत्रकार ललित राय ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "सियासत में ताकत, कमजोरी, अवसर और खतरा एक-दूसरे के सापेक्ष है. कोई भी राजनीतिक दल कमजोर या मजबूत खुद के दम पर तो है, लेकिन उसका आकलन दूसरे की तुलना में किया जाता है. राहुल गांधी ने 2014 के बाद, 2022 में जब कन्याकुमारी से भारत जोड़ो यात्रा के आगाज के साथ कश्मीर में अंजाम तक पहुंचाया तो उनका अलग रूप, रंग, तेवर, कलेवर नजर आया.

ऐसा माना जा रहा है कि राहुल गांधी के बारे में लोगों की राय बदली है. इस तरह से भारत जोड़ो यात्रा में उनकी ताकत उभर कर सामने आई.
ललित राय, वरिष्ठ पत्रकार

कमजोरी

  • राहुल गांधी उस परिवार से आते हैं, जिसकी राजनीतिक विरासत रही है और अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ संघर्ष करने में योगदान रहा है, लेकिन खुद राहुल गांधी जमीनी संघर्ष का सामना न करके पार्टी में सीधे पहली कतार के नेता के रूप में बैठा दिये गये. इससे उनकी छवि समाज से सीधे सामना न करने की रही है, जो उनकी कमजोरी बन गई है.

  • राहुल गांधी आधुनिक पढ़े-लिखे युवा नेता हैं, लेकिन देश के सदियों पुराने सांस्कृतिक वैभव, इतिहास, भूगोल और सामाजिक संरचना की जड़ से अपरिचित हैं. इसकी वजह से उनको देश के उस विशाल वर्ग का समर्थन नहीं मिल पाता है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी समाजवाद, राष्ट्रवाद, धर्मवाद की परंपरा में पला-बढ़ा है.

  • राहुल गांधी देश के किसान, मजदूर, गरीब और निम्न मध्यम वर्ग और शोषित महिलाओं के साथ उनके संघर्ष में एक कुशल राजनेता के तौर पर जमीनी संघर्ष करते नहीं दिखते हैं. आंदोलन, धरना, प्रदर्शन और उनके साथ खड़े होकर लड़ाई लड़ने से दूर ही रहते हैं. इससे उनकी छवि अभिजात्य, पुराने सामंती और रईस वर्ग की बन गई है.

वरिष्ठ पत्रकार संजय दुबे कहते हैं, "राहुल गांधी अपने संबोधन में अपनी अबोध समझ की वजह से कई बार गलतियां कर जाते हैं. इससे वे अक्सर ऐसी बातें बोल जाते हैं या ऐसी हरकतें कर जाते हैं, जो हास्यास्पद हो जाती हैं और उन्हें नॉन सीरियस नेती की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देती है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी सरकार के खिलाफ वो देश और विदेश में प्रखर राय रखते हैं. लेकिन कांग्रेस की कारगुजारी का इतिहास उनके हमलों की धार को कुंद कर देता है. आप कह सकते हैं कि कांग्रेस पार्टी की ऐतिहासिक नाकामियां ही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है.
ललित राय, वरिष्ठ पत्रकार

हालांकि, कुछ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राहुल गांधी के खिलाफ कई बार झूठे या फेक तरीके से सेट किये गये नैरेटिव से भी उनको नुकसान हुआ, जो काफी हद तक भारत जोड़ो यात्रा के बाद बदलता हुआ दिखाई दे रहा है.

राहुल ने पार्टी के भीतर पुराने कल्चर और नेचर को बदलने की कोशिश जरूर की. लेकिन बहुत सफल नहीं हुए. उनके सामने कई अच्छे और पुराने नेता पार्टी छोड़कर चले गये, जो उनकी कमजोर नेतृत्व क्षमता और सोच, दोनों पर सवाल उठाता है.

जानकारों की मानें तो, कांग्रेस छोड़कर गये नेताओं ने भी राहुल गांधी की नेगेटिव इमेज बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिसका नुकसान राहुल को हुआ. लेकिन अब वो बदलता दिख रहा है.

अवसर

  • राहुल गांधी को कांग्रेस नेता के रूप में व्यापक समर्थन प्राप्त है. यहां तक कि कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता भी उनको सीधे चुनौती देने की हिमाकत नहीं कर सकते हैं, भले ही वे अंदर से उनके राजनीतिक कौशल को न स्वीकारते हों. यह उनके लिए खुद को आगे बढ़ाने का एक बड़ा अवसर है.

संजय दुबे कहते हैं, "राहुल गांधी के पास बीजेपी की दक्षिणपंथी सोच के खिलाफ विपक्ष के नेता के तौर पर लड़ाई लड़ने का यह उचित समय है. मोदी सरकार के दो कार्यकाल पूरे होने जा रहे हैं और अगले साल (2024) लोकसभा के चुनावों में देश की एक बड़ी और बहुसंख्यक आबादी रोजगार की कमी, विफल आर्थिक नीतियों, कथित तौर पर विरोध की आवाज को दबाने और संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग पर उनके खिलाफ है. ऐसे में यह राहुल गांधी के लिए अच्छा अवसर है कि वह विपक्ष को एकजुट कर इसका सियासी फायदा उठाएं."

राहुल गांधी और पीएम नरेंद्र मोदी

(फोटो- क्विंट हिंदी) 

  • राहुल गांधी अपनी पार्टी के सर्वमान्य नेता हैं, लिहाजा उनके पास जनता के बीच जाकर उनकी समस्याओं को सुनने और उनसे सीधे जुड़ाव करने का अच्छा मौका है. इस समय भारत जोड़ो यात्रा जैसी छोटी-छोटी यात्राएं निकालकर जनता का समर्थन हासिल किया जा सकता है, जो उनको चुनाव में मदद करेगा.

  • राहुल गांधी को केंद्र सरकार के खिलाफ कई बार बेवजह बयान देने के बजाए जनता के मुद्दे उठाने और जनता से सीधे संवाद करके उनके नेता बनने का अच्छा अवसर है. भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा युवाओं का है, जो क्रांति करने के बजाए सामाजिक सौहार्द बनाकर रहने में भरोसा रखता है. खुद राहुल गांधी की छवि युवा नेता की है. ऐसे में यह बड़ा अवसर है कि वह उनके साथ खुद को जोड़ें.

महिला किसानों के साथ राहुल गांधी की ये तस्वीर भी काफी पंसंद की गई थी.

(फोटो- सोशल मीडिया) 

खतरा

  • राहुल गांधी पार्टी और पार्टी के बाहर दूसरे दलों के कई नेताओं के आगे अपनी बात प्रमुखता से नहीं रख पाते हैं. इससे वे कभी अपनी बहन प्रियंका गांधी को आगे करते हैं तो कभी दूसरे नेताओं को खड़ा कर देते हैं. संसद के अंदर भी वह कई बार कथित तौर पर प्रमुख मुद्दों पर गंभीरता से तैयारी करके नहीं बोला करते थे. इस वजह से वे अक्सर कथित तौर पर नॉन सीरियस लीडर मान लिये जाते हैं. अगर वह इससे मुक्त नहीं हुए तो यह उनके लिये एक नकारात्मक छवि बनाएगा.

राजनीतिक जानकारों की मानें तो, राहुल गांधी देश में जरूरत के समय अक्सर विदेश चले जाते हैं. जब देश में उनको आंदोलन करने चाहिए, लोगों की आवाजों को उठानी चाहिए, तब वह विदेश जाकर वहां पर मोदी विरोध में बयान देना शुरू कर देते हैं. यह उनके गैरजिम्मेदाराना रवैय को बताता है. इससे उनकी खुद की नेतृत्व क्षमता सवालों के घेरे में आती है.

राहुल गांधी अपनी पार्टी में अपनी मां सोनिया गांधी की तरह सर्वस्वीकार्य छवि नहीं बना पा रहे हैं. उन्हें जिस तरह संघर्ष करना चाहिए, वह अपने साथ रहने वाले कुछ चापलूस और दरबारी टाइप के नेताओं से दबे रहते हैं, जो उनके लिए बहुत बड़ा खतरा है.
संजय दुबे, वरिष्ठ पत्रकार

कांग्रेस से जुड़े एक नेता ने नाम न छपने की शर्त पर कहा, "राहुल गांधी के साथ सबसे बड़ी समस्या खुद की निर्णय क्षमता पर भरोसा नहीं करना है, जिससे वो हमेशा संशय में रहते हैं, और यही उनके राजनीतिक भविष्य के लिए बेहद घातक है."

हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी जीत गंवाने के बाद से राहुल गांधी के भीतर बहुत परिवर्तन देखा गया है. उनके अंदर सीखने की ललक और सुनने की क्षमता दिख रही है. वो राजनीति का अध्ययन भी कर रहे हैं. वो पहले से अधिक परिपकव और सुलझे हुए नेता नजर आ रहे हैं.

दौरान राहुल गांधी ने कर्नाटक के मैसूर में समर्थकों को बारिश में भीगते हुए संबोधित किया था.

(फोटो-भारत जोड़ो यात्रा) 

राजनीतिक जानकारों की मानें तो, वैसे भी भारतीय राजनीति में 53 साल की आयु कोई ज्यादा नहीं है. राहुल गाधी के पास पॉलिटिक्स में लंबा वक्त है, अगर वो अपने भीतर निर्णय लेने के क्षमता और विकसित कर लें, जमीनी हकीकत से परिचित होना शुरू कर दें, जनता और कार्यकर्ता से सीधे और सरलता से संवाद करें, चौबीसों घंटे और सातों दिन एक्टिव नेता बन जायें तो शायद वो कई नेताओं से और आगे निकल सकते हैं.

नुक्कड़ पर  चाय - पकोड़े का लुफ्त उठाते हुए लोंगो से बातचीत करते राहुल गांधी.

फोटो - राहुल गांधी 

अगले साल 2024 का लोकसभा चुनाव, राहुल गांधी अब राजनीति में करीब दो दशक बीता चुका है. ऐसे में ये आम चुनाव राहुल गांधी और कांग्रेस के भविष्य, दोनों के लिए काफी मायने रखता है. इसका नतीजा क्या होगा, इसके लिए अगले 2024 का इंतजार करना होगा.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 18 Jun 2023,03:58 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT