advertisement
राजस्थान का 'पॉलिटिकल ड्रामा' (Rajasthan Political Drama) अभी खत्म नहीं हुआ है. मुख्यमंत्री के नाम पर सियासी खींचतान जारी है. गहलोत गुट के विधायकों की बगावत से आलाकमान नाराज है. तो वहीं लोग सवाल पूछ रहे हैं कि कांग्रेस अब क्या करेगी? एक तरफ राजस्थान के मुख्यमंत्री का पेंच फंसा है तो दूसरी तरफ अध्यक्ष को लेकर सस्पेंस बरकरार है. चलिए हम आपको बताते हैं कि ये पूरा ड्राम कब और कैसे रचा गया? साथ ही मिलवाते हैं इस सियासी ड्रामे के सभी किरदारों से.
कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री गहलोत के इस्तीफे की मांग के साथ ही पूरे सियासी ड्रामे की स्क्रिप्ट लिखी गई थी. इसके मुख्य किरदार संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल और मुख्य सचेतक महेश जोशी थे. वहीं सपोर्टिंग रोल में मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास, उपसचेतक महेंद्र चौधरी, संयम लोढ़ा, आरटीडीसी चैयरमैन धमेंद्र राठौड़ थे. इस पूरे ड्र्रामे में एक किरदार ऐसा भी है जिसका रोल छोटा लेकिन असरदार था. वो हैं विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी. जिनका नाम गहलोत गुट की तरफ से मुख्यमंत्री पद के लिए भी आगे बढ़ाया गया. आइए जानते है कि किस किरदार ने किसी तरह से बगावत के सियासी ड्रामे में अपन रोल प्ले किया.
शांति धारीवाल संसदीय कार्यमंत्री हैं. गहलोत के राजनीतिक दुख-सुख के साथी हैं. जब भी गहलोत मुख्यमंत्री बने यह तय होता था कि धारीवाल को अहम विभाग मिलेगा. धारीवाल के घर पर ही यह पूरा सियासी ड्रामा खेला गया. यहां से ही विधायकों को पार्टी आलाकमान के संदेशवाहकों की बैठक से पहले मीटिंग का न्योता मिला. हालांकि, धारीवाल ने इस बात का खंडन किया है. लेकिन उनके घर पर विधायकों के लिए लगाए गए टेंट और भोजन की व्यवस्था से यह साफ है कि बैठक पूरी तैयारी के साथ बुलाई गई थी.
गहलोत सरकार में महेश जोशी दो-दो महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है. एक तरफ वह मंत्री हैं, दूसरी तरफ मुख्यसचेतक भी हैं. 2020 में पायटल गुट की गहलोत सरकार के खिलाफ बगावती चक्रव्यूह तोड़ने वाले जोशी ने इस बार भी अपना किरदार बेहद खुबसूरती के साथ अदा किया. वे विधायक जो गहलोत गुट के नहीं माने जाते थे, तटस्थ भूमिका में रहते थे, उन्हें भी जोशी ने समझा कर धारीवाल के बंगले पर बुलाया. पायलट की बगावत को याद दिलाकर विधायकों को अपने साथ किया. कहा जाता है कि जोशी के सभी विधायकों से मधुर संबंध हैं.
खाचरियावास बीजेपी पृष्ठभूमि के नेता रहे हैं. 2018 में पायलट कोटे से उन्हें मंत्री बनाया गया था. 2020 की बगावत के बाद गहलोत गुट में शामिल हो गए. इनाम के तौर पर उनका मंत्री पद कायम रहा. इस बार खाचरियावास फ्रंटफुट पर खेल रहे हैं.
महेंद्र चौधरी उपसचेतक हैं. उन चंद जाट विधायकों में शुमार हैं जो गहलोत के साथ हमेशा खड़े नजर आते हैं. 2008 में गहलोत को मुख्यमंत्री नहीं बनाने के खिलाफ खड़ी हुई जाट लॉबी से अलग रह कर चौधरी ने गहलोत का समर्थन किया था. इस पूरे मामले में समर्थक विधायकों को जमा करने से लेकर उनके इस्तीफे लेने तक का काम चौधरी की देखरेख में हुआ.
आरटीडीसी चैयरमैन धर्मेंद्र राठौड़ गहलोत के 'किचन कैबिनेट' के सदस्य हैं. विधायक भी नहीं है, लेकिन गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्रियों से भी ज्यादा पॉवरफुल माने जाते हैं. राठौड़ ने इस पूरे मामले में निर्दलीय को साथ लाने में भूमिका निभाई. राजपूत विधायकों को भी साधने का काम किया. इस पूरे प्रकरण में एक मात्र गैर विधायक जो सक्रिय थे.
तेज-तर्रार निर्दलयी विधायक सयंम लोढ़ा पुराने कांग्रेसी हैं. 2018 में पायलट ने टिकट काटा तो निर्दलीय जीत कर आ गए. गहलोत और विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के करीब हैं. लोढ़ा लगातार पायलट पर निशाना साधते रहे हैं.
इस पॉलिटिकल ड्रामे में सीपी जोशी का किरदार साइलेंट, लेकिन असरदार था. अब आगे का पूरा खेल जोशी के ईदगिर्द ही खेला जाएगा. 2020 में पायलट खेमे की बगावत के समय आधी रात को जोशी ने नोटिस जारी करके बागी विधायकों को तलब किया था. अब गहलोत में विश्वास जताने वाले विधायकों के इस्तीफे जोशी की तिजोरी में बंद हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 28 Sep 2022,02:23 PM IST