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राजस्थान की रण'भूमि' का विजेता कौन? बच गया बागियों का सरदार, नप गए प्यादे?

Rajasthan Congress Crisis: आलाकमान बैकफुट पर है और लगभग वो हो रहा है जो गहलोत चाहते थे.

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दिल्ली से जयपुर गए सोनिया गांधी के दूतों अजय माकन-खड़गे ने जयपुर में जो 'बगावत' हुई, उसपर आलाकमान को अपनी रिपोर्ट दे दी है. कहा जा रहा है कि इस रिपोर्ट में अशोक गहलोत पर एक्शन नहीं लेने की अनुशंसा की गई है. लेकिन गहलोत के तीन सिपाहियों शांति धारीवाल, धमेंद्र राठौड़ और चीफ व्हीप महेश जोशी पर एक्शन लेने की सिफारिश की गई है.

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शांति धारीवाल वो हैं जिनके घर गहलोत समर्थक विधायक बैठे रहे और उधर माकन-खड़गे विधायकों के आने का इंतजार करते रह गए. पार्टी ने इन तीनों को नोटिस भी भेजा है. इन्हें अनुशासनहीनता पर जवाब देने के लिए 10 दिन का समय दिया गया है. इन विधायकों ने माकन से अलग बैठक कर कहा था कि अगर सचिन पायलट को सीएम बनाया गया तो बड़ी तादाद में गहलोत समर्थक विधायक इस्तीफा दे देंगे. 92 विधायकों ने स्पीकर को इस्तीफा सौंप भी दिया था.

ये सब क्यों हुआ?

दरअसल पार्टी चाहती है कि अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ें और राजस्थान सीएम का पद छोड़ दें. पार्टी सचिन पायलट को सीएम बनाना चाहती है. लेकिन ये जगजाहिर है कि गहलोत ऐसा नहीं चाहते. गहलोत के समर्थक विधायकों ने साफ कहा कि गहलोत अध्यक्ष बन भी जाते हैं तो उन्हें ही राजस्थान का सीएम रहना चाहिए. अगर ये किसी तरह भी संभव नहीं है तो राजस्थान के विधायकों को ही सीएम चुनने का अधिकार होना चाहिए, न कि ये फैसला दिल्ली में होना चाहिए.

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अब सवाल उठता है कि जो हुआ है उसका मतलब क्या है?

ऐसा लग रहा है कि राजस्थान में किसी बड़े संकट को टालने और फेस सेविंग के लिए गहलोत को बख्श दिया गया है. सियासी गलियारों में ये भी चर्चा है कि भले ही गहलोत के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा है लेकिन आलाकमान उनसे काफी खफा है, लिहाजा अब वो अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर हो गए हैं. अगर ऐसा हुआ तो पहली बात ये है कि गहलोत जो चाहते थे वही हो रहा है.

गहलोत ने खुलेआम कहा था कि उन्होंने राहुल गांधी से अध्यक्ष बनने की गुजारिश की थी और वो राजस्थान में ही रहना चाहते हैं. अगर वो अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ते हैं और जयपुर से दिल्ली आते हैं तो हो सकता है उनके किसी खास को सीएम की कुर्सी देने की विधायकों की मांग पर सहमति बन जाए. दूसरी बात ये है कि सचिन से जंग में गहलोत एक बार फिर जीते हैं. आलाकमान के चाहने के बाद भी अगर सचिन सीएम बन पा रहे हैं तो अब उनके लिए शायद आगे का रास्ता बेहद कठिन हो गया है.

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