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राजस्थान सरकार के सबसे ऊंचे ओहदे के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) और सचिन पायलट (Sachin Pilot) के बीच फिर से सिर-फुटौव्वल मची है और कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए यह इम्तिहान की घड़ी है. अक्टूबर में खड़गे के अध्यक्ष पद संभालने के बाद यह पहली दफा है, जब पार्टी के दो दिग्गज आपस में सार्वजनिक तौर पर भिड़ रहे हैं.
हालांकि यह मामला सितंबर से लटका हुआ था, जिस पर नए अध्यक्ष को फैसला करना था, लेकिन पायलट के बयान के बाद यह बात साफ हो गई कि यह मामला अनसुलझा है. इसीलिए इस पर जल्द से जल्द कार्रवाई की जानी चाहिए.
इसके अलावा खड़गे उन दो एआईसीसी पर्यवेक्षकों में से एक थे जिन्हें सितंबर में राजस्थान में हुई कथित अनुशासनहीनता पर कार्रवाई करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. उस वक्त गहलोत खेमे के नेताओं ने कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) की बैठक में आने से इनकार कर दिया था. इसी से उम्मीद की जा रही है कि खड़गे अब तक कोई फैसला करेंगे.
लेकिन इस मुद्दे पर खड़गे ने हाथ खींच लिए जिससे साफ है कि राजस्थान में हालात जटिल हैं और यह भी कि गहलोत पर गुजरात चुनाव की अहम जिम्मेदारी है.
मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांसवाड़ा में 'मानगढ़ धाम की गौरव गाथा' कार्यक्रम में शिरकत की. इस कार्यक्रम में तीन मौजूदा मुख्यमंत्री शामिल थे: गुजरात के भूपेंद्र पटेल, मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान और खुद गहलोत. लेकिन मोदी ने गहलोत का अलग से जिक्र किया और उनकी तारीफ की.
गहलोत ने भी तारीफ के बदले तारीफ की लेकिन बड़ी चतुराई से. उन्होंने भारत और दुनिया में भारत के कद का उल्लेख किया. उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी को मुख्य रूप से महात्मा गांधी के कारण दुनिया में बहुत सम्मान मिलता है. आज आजादी के 70 साल बाद भी गांधीजी के भारत में लोकतंत्र कायम है. यही कारण है कि नरेंद्र मोदी जब भारत के प्रधानमंत्री के रूप में विदेश जाते हैं तो उन्हें सम्मान मिलता है."
चूंकि यह एक सरकारी कार्यक्रम था, इसलिए तारीफ के पुल बांधने की आलोचना नहीं हुई. हालांकि कांग्रेसी सूत्रों ने क्विंट को बताया कि कार्यक्रम के बाद गहलोत और प्रधानमंत्री ने पंद्रह मिनट तक अलग से मुलाकात और बात की. पायलट ने मौका देख, गहलोत पर निशाना साधा.
यानी पायलट इशारा कर रहे थे कि यह कांग्रेस को धोखा देने और बीजेपी में छलांग लगाने की कोशिश है. दरअसल 2020 में जब पायलट ने कथित बगावत का बिगुल बजाया था, तब गहलोत खेमे ने उन पर यही आरोप लगाया था. इसके बाद पायलट को उपमुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था. कांग्रेसी सूत्रों का कहना है कि यह पायलट का 'पलटवार' है. वह गहलोत पर वही संदेह जता रहे हैं.
यह ध्यान देने की बात है कि पायलट ने खास तौर से स्थानीय पत्रकारों को इस मामले के बारे में बात करने के लिए बुलाया था. यानी यह सोची समझी रणनीति थी. उन्होंने न सिर्फ इस बात की आलोचना की कि गहलोत ने प्रधानमंत्री की तारीफ की, बल्कि कांग्रेस नेतृत्व को यह भी याद दिलाया कि उसे अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी चाहिए.
पायलट ने कहा, "नियम सभी के लिए समान हैं. इसलिए अगर अनुशासनहीनता हुई है और जवाब दिया गया है, तो कार्रवाई की जानी चाहिए. सितंबर में गहलोत खेमे के नेताओं और राज्य के मंत्रियों शांति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौर के खिलाफ "गंभीर अनुशासनहीनता" के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था. यह भी कहा गया था कि एआईसीसी के पर्यवेक्षक और लीडरशिप जल्द ही राजस्थान में नेतृत्व पर फैसला लेगा. लेकिन यह 25 सितंबर की बात है, ठीक एक महीने पहले.''
कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि जब तक भारत जोड़ो यात्रा राज्य से होकर नहीं गुजरती, तब तक पार्टी राजस्थान में कुछ भी "अस्थिर" नहीं करना चाहती. पार्टी के कार्यक्रम के अनुसार, राहुल गांधी की अगुवाई वाली यात्रा दिसंबर के पहले सप्ताह में राजस्थान पहुंचने वाली है. राजस्थान में यह यात्रा 15-20 दिन तक चलेगी, और इसके बाद दूसरे राज्य में कदम रखेगी. इसलिए भले ही गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाए और उसकी कुर्सी पायलट को दी जाए, इसके बावजूद पायलट के पास खुद को लीडर इन कमांड के रूप में जमने के लिए बहुत कम वक्त मिलेगा. चूंकि दिसंबर 2023 में राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.
इसीलिए पायलट थोड़े 'अधीर' हैं- वह पंजाब में चन्नी जैसे घटनाक्रम से बचना चाहते हैं. पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को चुनाव से कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री बनाया गया था. उनके पास खुद को साबित करने या अच्छा प्रदर्शन करके पार्टी को जीत दिलाने का समय नहीं था. यह चिंता का सबब भी है जिससे कांग्रेस आलाकमान जूझ रहा है: क्या चुनाव से ऐन पहले राजस्थान राज्य नेतृत्व को डांवाडोल करना मुनासिब होगा?
खड़गे का कोई भी फैसला, अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकाल के लिए नजीर साबित होगा. हां, यह भी जरूरी है कि राजस्थान में चिंगारी को आग बनने से रोका जाए.
राजस्थान कांग्रेस के भीतर गहलोत और पायलट के बीच की तनातनी बेचैनी में बदल रही है. 2020 में पायलट के विद्रोह की कोशिशों के बाद से बीजेपी आरोप लगा रही है कि राज्य सरकार अस्थिर है और इस तरह शासन को उचित तरीके से नहीं चला पा रही.
इस नए घटनाक्रम के बाद बीजेपी ने फिर से वही तोहमत लगाई है.
केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा है, 'राजस्थान कांग्रेस अशोक गहलोत और सचिन पायलट के दो धड़ों में बंट गई है, जिससे राज्य में शासन प्रभावित हो रहा है.
इसी तरह गजेंद्र सिंह शेखावत ने एएनआई को बताया कि “इस तकरार में गहलोत का ध्यान राज्य के शासन में नहीं लग रहा. राजस्थान की सभी विकास योजनाएं ठप पड़ी हैं. कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब है."
लेकिन सूत्रों का कहना है कि इस मामले को लेकर राजस्थान कांग्रेस के नेता और पार्टी कार्यकर्ता लगातार चिंतित हैं. “राज्य में पार्टी के दो वरिष्ठ नेता इस तरह लड़ रहे हैं, पहले अप्रत्यक्ष रूप से और अब स्पष्ट रूप से- यह अच्छा नहीं लग रहा है. यह तय है कि आने वाले चुनावों में बीजेपी इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करेगी.
इससे यह भी जाहिर होता है कि केंद्रीय नेतृत्व में अथॉरिटी और ताकत की कमी है, तभी वह इस पर कार्रवाई नहीं कर रहा. जो भी हो, कुछ तो किया जाना चाहिए नहीं तो ऐसा लगेगा कि नेतृत्व राजस्थान कांग्रेस की समस्याओं को अनदेखा कर रहा है, ” पार्टी के एक सदस्य ने कहा.
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