दिल्ली MCD चुनाव की घोषणा हो चुकी है. यह पहला मौका है, जब MCD के चुनावों ने इतने बड़े स्तर पर देशभर का ध्यान अपनी ओर खींचा है. वजह है, इसमें शामिल तीन प्रमुख दलों की भूमिका और तीनों पर राष्ट्रीय वोटर्स की निगाहें. तीन टुकड़ों में बंटी MCD का विलय हो गया है और अब उसे एक कर दिया गया है. लेकिन, समझने की जरूरत ये है कि गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनावों के साथ ही MCD का चुनाव क्या संदेश दे रहे हैं?
चुनाव आयोग ने दिल्ली में 4 दिसंबर को एमसीडी चुनाव कराने का फैसला किया है. 7 दिसंबर को वोटों की गिनती होगी, उसी दिन नतीजों की घोषणा होगी. नामांकन की आखिरी तारीख 14 नवंबर है और नामांकन वापस 19 नवंबर तक लिए जा सकते हैं.
दिल्ली MCD चुनाव के तारीखों के मायने क्या हैं?
दरअसल, दिल्ली MCD के चुनावों की घोषणा ऐसे समय में हो रही है, जब गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं. MCD में पिछले 15 साल से बीजेपी का कब्जा है. इस कब्जे को AAP से चुनौती मिल रही है.
द क्विंट के राजनीतिक संपादक आदित्य मेनन बताते हैं कि चुनाव कराने का निर्णय तो चुनाव आयोग का है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि ये ऐसे समय में चुनाव कराया जा रहा है, जिसमें बीजेपी को ज्यादा फायदा होने की उम्मीद है और AAP की मुश्किलें ज्यादा बढ़ेंगी. क्योंकि, AAP ने गुजरात और हिमाचल के चुनाव में अपने मेन पावर को झोंक दिया है. AAP हमेशा से चाहती रही है कि MCD में उसकी सरकार हो. क्योंकि, इसकी वजह से बहुत सारे काम हैं, जो वो नहीं कर पाती है.
मेनन बताते हैं कि AAP एक नई पार्टी है. ऐसे में काडर और संसाधनों के हिसाब से भी बीजेपी के सामने कहीं नहीं टिकती है. ऐसे समय में उसे तीन मोर्चों पर चुनाव लड़ना पड़ रहा. इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगर पंजाब चुनाव के 2 महीने बाद चुनाव होते तो AAP को ज्यादा फायदा होता. लेकिन, तीनों एमसीडी के विलय की वजह बताते हुए चुनाव को टाल दिया गया.
मेनन बताते हैं कि साल 2017 में भी AAP के साथ ऐसा ही हुआ था. 2017 में पंजाब और गोवा के चुनावों में हार के बाद ही MCD चुनावों की घोषणा हो गई थी. ऐसे में AAP के नेताओं और कार्यकर्ताओं के पास ना आत्मविश्वास था और ना ही ऊर्जा जिससे वो MCD का चुनाव हार गए.
MCD में बदलाव के बाद चुनाव का मतलब
दिल्ली नगर निगम पहले तीन हिस्सों (पूर्वी नगर निगम, उत्तरी नगर निगम और दक्षिणी नगर निगम) में बंटी होती थी. लेकिन, इस साल के शुरुआत में तीनों नगर निगमों का विलय कर एक निगम कर दिया गया था. जिसकी वजह से अप्रैल में चुनाव स्थगित करने पड़े थे. मतलब अब दिल्ली में तीन की जगह केवल एक मेयर होगा. पहले के मुकाबले इनकी शक्तियां ज्यादा होंगी. अब एक ही मेयर पूरे दिल्ली की जिम्मेदारी संभालेगा. यही नहीं, परिसीमन के साथ-साथ वार्डों की संख्या भी कम कर दी गई. पहले उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली में 104-104 पार्षद की सीटें थीं, जबकि पूर्वी दिल्ली में 64 सीटें हुआ करती थीं. इस तरह से पहले नगर निगम की कुल 272 सीटें थीं, जो अब घटकर 250 रह गईं हैं.
नए परिसीमन के चलते कई वार्ड के दायरों में बदलाव हुए हैं. कई वार्डों का क्षेत्र बढ़ गया है, जबकि कई के घट गए हैं. इसी तरह मतदाताओं की संख्या में भी बदलाव हुआ है. कई वार्ड में मतदाताओं की संख्या घटी है, जबकि कई में बढ़ गई है. वार्ड के संख्या में भी बदलाव किया गया है.
2017 के चुनावों में, बीजेपी ने उत्तरी दिल्ली में 104 सीटों में से 64, दक्षिण दिल्ली में 104 में से 70 और पूर्व में 64 में से 47 सीटें जीतीं थीं. वहीं, AAP के पास 21, 16 और 12 सीटें थीं. कांग्रेस के पास 16, 12 और 3 सीटें थीं. कुल मिलाकर, बीजेपी ने 181, AAP ने 49 और कांग्रेस ने 31 सीटों पर कब्जा किया था.
MCD को एक करने के पीछे की राजनीति
MCD को तीन भागों में बांटने की पीछे दलील दी गई थी कि इतनी बड़ी दिल्ली को एक निगम से चलाना मुश्किल है. हर इलाके की अलग जरूरतें हैं इसलिए वहां अलग हिसाब से योजना बनानी पड़ेगी. ताज्जुब की बात ये है कि जब निगमों को एक किया गया तो दलील दी गई कि अलग-अलग निगमों के होने से दिल्ली के विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है. दलील दी गई ईस्ट दिल्ली नगर पालिक गरीब है जबकि साउथ दिल्ली नगर पालिका अमीर है. ऐसे में पहले से विकसित साउथ दिल्ली में और विकास की गुंजाइश बनती है लेकिन पिछड़े पूर्वी दिल्ली में विकास की राह में वित्तीय संकट आ रहा है.
लेकिन जानकार एमसीडी को तोड़ने और जोड़ने के पीछे वोट की राजनीति देखते हैं. कांग्रेस ने इसे तोड़ा बीजेपी ने इसे जोड़ा. दोनों की मंशा एमसीडी पर काबिज होना ही बताया जाता है.
क्यों अहम हैं MCD चुनाव?
दिल्ली MCD का चुनाव पार्टियों के बीच सेमीफाइनल का मुकाबला माना जाता है. क्योंकि, इसके बाद पार्टियां लोकसभा के चुनाव में जाती हैं फिर विधानसभा का चुनाव होता.
एमसीडी के पास कई तरह के अधिकार होते हैं. इसके जरिए राज्य में अस्पताल, डिस्पेंसरीज, पानी की सप्लाई, ड्रेनेज सिस्टम की देखभाल, बाजारों की देखरेख करना, पार्कों का निर्माण करना और उसकी देखभाल का प्रबंध करना. सड़क और ओवर ब्रिज का निर्माण और मेंटेनेंस करना. कचरे के निस्तारण का प्रबंध करना. स्ट्रीट लाइट, प्राइमरी स्कूल, प्रॉपर्टी और प्रोफेशनल टैक्स कलेक्शन, टोल टैक्स कलेक्शन सिस्टम, शमशान और जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र जैसे बेहद अहम काम एमसीडी के जरिए किए जाते हैं.
एमसीडी के जरिए ऐसे कई काम किए जाते हैं जो लंबे समय में सभी पार्टियों के वोट बैंक के लिए बेहद अहम होते हैं. सड़क निर्माण से लेकर स्कूल और टैक्स कलेक्शन आय का बड़ा स्रोत होता है. तो एमसीडी पर कब्जा फंड के लिहाज से भी अहम माना जाता है.
दिल्ली एमसीडी का बजट 15 हजार करोड़ से ज्यादा का होता है. इस बड़े बजट के जरिए कई सारे विकास कार्यों को अंजाम दिया जाता है. ऐसे में इतने बड़े बजट वाले एमसीडी पर कब्जा करने की हसरत सभी दलों की रहती है. एमसीडी को दिल्ली सरकार से भी खर्चे के लिए बजट मिलता है.
MCD चुनाव में मुद्दे क्या हैं?
बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व के काम और नाम के भरोसे है. उसके नेता केंद्र सरकार द्वारा दी गई सुविधाओं का बखान कर रहे हैं. वहीं, आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने साफ कर दिया है कि MCD चुनाव कचरे के मुद्दे पर लड़ा जाएगा.
उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि “पिछले 15 साल में BJP ने पूरी दिल्ली में कूड़ा फैला दिया है, कूड़े के पहाड़ बना दिए हैं. 4 दिसम्बर को इस बार दिल्ली की जनता दिल्ली की साफ-सफाई के लिए वोट देगी. दिल्ली को स्वच्छ और सुंदर बनाने के लिए वोट देगी. इस बार दिल्लीवासी नगर निगम में भी AAP को चुनेंगे.”
कहां खड़ी नजर आ रही कांग्रेस?
साल 2017 के दिल्ली नगर निगम चुनाव में पीएम मोदी और सीएम अरविंद केजरीवाल की प्रचंड लोकप्रियता के दौर में भी कांग्रेस निगम की 31 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी और दर्जनों सीटों पर उसके उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे. ऐसे में कांग्रेस भी इस चुनाव में अपने लिए वापसी करने का एक अवसर तलाशने की कोशिश करेगी,लेकिन मुख्य मुकाबला बीजेपी और AAP में ही माना जा रहा है.
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