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राजस्थान कांग्रेस में पिछले 3 दिनों से आंतरिक कलह (Rajasthan Congress crisis) जारी है. इस वक्त सचिन पायलट (Sachin Pilot) किस कदर अलर्ट हैं और अपनी छवि को किसी भी डेंट से बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, इसका उदाहरण उनका एक ट्वीट है. न्यूज एजेंसी ANI ने सूत्रों के हवाले से सचिन पायलट से जुड़ी एक खबर रिपोर्ट की, जिसपर सचिन पायलट ने तुरन्त रिप्लाई किया कि खबर झूठी है. इतना ही नहीं, राजस्थान कांग्रेस संकट पर सचिन पायलट चुप्पी साधे रहे. ऐसे में समझते हैं कि आखिर पूरे विवाद के बाद सचिन पायलट का भविष्य कहां जाता दिख रहा है?
न्यूज एजेंसी ने खबर चलाई कि कांग्रेस विधायक सचिन पायलट ने कांग्रेस आलाकमान से कहा है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अगर पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने का फैसला करते हैं तो उन्हें सीएम की कुर्सी छोड़नी चाहिए और ऐसी स्थिति में विधायकों को एक साथ लाना सचिन पायलट की जिम्मेदारी है. इससे पहले लोग इस खबर से अंदाजा लगाते कि ‘सचिन पायलट के मन में क्या है’- पायलट ने ट्वीट करते हुए लिखा कि “मुझे डर है कि झूठी खबर रिपोर्ट की जा रही है”.
गांधी परिवार के बाहर कांग्रेस अध्यक्ष की रेस में जैसे ही अशोक गहलोत का नाम सामने आया, राजस्थान में गहलोत और पायलट- दोनों खेमे में बैठकों का दौर शुरू हो गया. वैज्ञानिक सिद्धांत कहता है कि रात चढ़ने पर राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके ठंडे हो जाते हैं. लेकिन जयपुर में रविवार, 25 सितंबर की रात ठीक उलट सियासी पारा चढ़ रहा था.
गहलोत खेमे के 90 से अधिक विधायकों ने उस रात आलाकमान का सन्देश लेकर पहुंचे पर्वेक्षकों- अजय माकन और खड़गे की बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया. उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफा सौंप साफ कर दिया कि हमें पायलट स्वीकार नहीं हैं. वैसे तो गहलोत ने सफाई दी कि यह विधायकों का अपना फैसला है लेकिन राजस्थान की राजनीति को करीबी से देखने वाले इसे ‘जादूगर की गुगली’ बता रहे हैं.
सचिन पायलट की चुप्पी और सूत्रों के हवाले से चली खबर को सामने से नकारना यह दिखाता है कि सचिन पायलट पूरी तरह से अलर्ट हैं और अपनी छवि को किसी भी डेंट से बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.
अशोक गहलोत की रजामंदी या खुद के निर्णय, कारण चाहे जो हो, राजस्थान के 90 से अधिक कांग्रेसी विधायकों ने आलाकमान के सामने सिर्फ दो ही विकल्प रखे हैं- या तो अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने रहें या उनके खेमे के ही किसी विधायक को मुख्यमंत्री बनाया जाए. सचिन पायलट लगभग 20 विधायकों के समर्थन के साथ आलाकमान के सामने शक्ति प्रदर्शन की स्थिति में नहीं दिख रहे हैं. क्विंट के पॉलिटिकल एडिटर आदित्य मेनन लिखते हैं कि ऐसी स्थिति में सचिन पायलट के लिए प्रदेश इकाई में मुश्किलें आनी जाहिर हैं.
सचिन पायलट को पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने 2018 में सीएम की कुर्सी का वादा किया गया था, लेकिन 2022 में भी वह अपने वादे को पूरा करने की स्थिति में नहीं है. ऐसी स्थिति में आलाकमान में पास एक विकल्प है कि वह उन्हें कोई और पद देकर संतुष्ट करे. कांग्रेस के लिए समस्या यह है कि शायद ही कोई पद ऐसा है जो दूर-दूर तक सीएम पद के रुतबे, उसकी शक्ति के करीब हो.
अगर कांग्रेस नेतृत्व राजस्थान के अंदर गहलोत के कद को थोड़ा छोटा करना चाहता है, तो वह गहलोत के वफादार गोविंद डोटासरा को हटाकर पायलट को वापस प्रदेश पार्टी प्रमुख बना सकता है. हालांकि यहां भी उसके सामने मुश्किल कम नहीं है. पंजाब में पार्टी ने जिस तरफ अमरिंदर सिंह के मुखर विरोध के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश पार्टी प्रमुख बनाया था, उसका नतीजा पार्टी ने अमरिंदर सिंह की बगावत पर राज्य चुनाव में मिली बुरी हार में देखा है. ऊपर से राजस्थान के कांग्रेसी नेताओं पर पायलट का दबदबा भी नहीं है.
यह देखना खास होगा कि पायलट सीएम पद की जगह इनमें से किसी भी विकल्प से सहमत होंगे या ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह पार्टी छोड़ देंगे.
1. कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रविवार को राजस्थान में जो कुछ भी हुआ उसने अशोक गहलोत की राजनीतिक छवि को नुकसान पहुंचाया है. अशोक गहलोत को अब तक गांधी परिवार के लिए वफादार और कांग्रेस का सच्चा सिपाही माना जाता था, गांधी परिवार को भी उम्मीद थी कि गहलोत कभी भी उनके फैसले के खिलाफ नहीं जाएंगे और कांग्रेस अध्यक्ष पद परिवार से बाहर उन्हें सौंपने की मंशा भी इसी उम्मीद से आई थी. लेकिन राजस्थान संकट ने गहलोत की इस छवि को नुकसान पहुंचाया है. पायलट गहलोत के इसी नुकसान में अपना फायदा देख सकते हैं. गहलोत पर भरोसा घटेगा तो आलाकमान के लिए राजस्थान में दूसरे विकल्प पायलट ही बचेंगे.
2. मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन ने राजस्थान की स्थिति पर अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. सूत्रों की माने तो शांति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है जबकि 3 अन्य को कारण बताओ नोटिस भेजा जा सकता है. ध्यान रहे कि ये सभी गहलोत के करीबी हैं. यानी अगर आलाकमान गहलोत के खिलाफ कोई एक्शन न भी ले तो भी इसे उनके लिए क्लीनचीट नहीं कहा जाएगा.
3. सवाल यह भी है कि क्या सचिन पायलट बिना किसी अतिरिक्त मेहनत के सीएम की कुर्सी के ज्यादा नजदीक पहुंच चुके हैं? 2020 में उन्हें सीएम की कुर्सी के लिए बगावत करनी पड़ी थी लेकिन इस बार गहलोत खेमे की बगावत ने उन्हें आलाकमान की नजर में वफादार बना दिया है.
4. सचिन पायलट के लिए राजस्थान कांग्रेस में संकट के इस एपिसोड ने एक और मौका बनाया है. आजतक गहलोत कैंप के विधायक सचिन पायलट के खिलाफ गद्दारी का इल्जाम लगाते थे. अब सचिन पायलट भी यह कह सकते हैं कि गहलोत भी कुछ अलग नहीं हैं और आलाकमान के लिए जितना बागी मैं था अब उतना आप भी हैं.
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