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सम्राट चौधरी को BJP ने बिहार अध्यक्ष क्यों बनाया? इस दांव के पीछे की वजह जानिए

Samrat Chowdhary को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बीजेपी ने बड़ा दांव खेला है, लेकिन इस दांव के पीछे की क्या कहानी है?

पल्लव मिश्रा
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>Bihar:बड़े-बड़े दिग्गजों को मात देकर सम्राट चौधरी कैसे BJP के प्रदेश अध्यक्ष बने</p></div>
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Bihar:बड़े-बड़े दिग्गजों को मात देकर सम्राट चौधरी कैसे BJP के प्रदेश अध्यक्ष बने

(फोटो-क्विंट हिंदी)

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बिहार (Bihar) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने सम्राट चौधरी (Samrat Choudhary) को नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है. वो अब संजय जायसवाल की जगह लेंगे. बीजेपी ने 2024 को लोकसभा चुनाव से पहले सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बड़ा दांव खेला है. लेकिन इस दांव के पीछे की क्या कहानी है? और आखिर बिहार में बड़े-बड़े दिग्गजों को मात देते हुए सम्राट चौधरी कैसे प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंच गये? आइये आपको इन सवालों का जवाब देते हैं.

कौन हैं सम्राट चौधरी?

बीजेपी नेता सम्राट चौधरी वर्तमान में बिहार विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष के पद पर हैं. वो नीतीश कुमार सरकार में बीजेपी कोटे से पंचायती राज मंत्री थे. इससे पहले वो आरजेडी और जेडीयू में भी रह चुके हैं. वो परबत्ता सीट से दो बार विधायक भी थे.  2018 में सम्राट चौधरी बीजेपी में आये थे और पार्टी ने पहले उन्हें MLC, फिर मंत्री बनाया था. वो सबसे कम उम्र के बिहार सरकार में मंत्री रह चुके हैं. इनके पिता शकुनी चौधरी और माता पार्वती देवी बिहार में विधायक और सांसद रह चुके हैं. ऐसे में चौधरी को सियासत विरासत में मिली है.

सम्राट चौधरी को क्यों बनाया गया अध्यक्ष?

54 वर्षीय सम्राट चौधरी की पहचान बिहार में एक मंझे हुए राजनेता के तौर पर होती है. वो कुशवाहा समाज से आते हैं. कुशवाहा की बिहार में करीब 7 से 8 फीसदी आबादी है. बीजेपी बिहार में जातीय समीकरण को साधने की कोशिश में है. ऐसे में बीजेपी सम्राट चौधरी को जिम्मेदारी देकर कुशवाहा और कुर्मी दोनों को अपने पाले में करने का दांव चला है.

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सम्राट चौधरी को क्यों हुआ फायदा?

सम्राट चौधरी RJD-JDU में रह चुके हैं, ऐसे में वो दोनों दलों की ताकत और कमजोरी से वाकिफ है. उनकी पहचान में बिहार में सड़क से सदन तक संघर्ष करने वाले नेता की रही है. युवाओं के बीच अच्छी पकड़ है और अपनी जाति में भी दबदबा है. बीजेपी को ऐसे नेता की ही तलाश थी जिसकी स्वीकार्यता हो और चौधरी इसमें फिट बैठते हैं.

चौधरी मुखर और आक्रामक

सम्राट चौधरी को काफी आक्रामक नेता माना जाता है. एनडीए सरकार में मंत्री रहने के दौरान एक बार पूरक प्रश्न पूछते हुए उन्होंने तत्कालीन स्पीकर विजय सिन्हा को कहा, "ज्यादा व्याकुल मत होइये". वहीं, मां के निधन के बाद चौधरी ने भगवा रंग की पगड़ी पहन ली थी और कहा कि "जब तक बिहार में बीजेपी की सरकार नहीं बनेगी, तब तक पगड़ी नहीं उतारूंगा." इसके अलावा, अब बीजेपी नये लीडरशिप को तैयार करने की कोशिश में लगी है. ये भी सम्राट चौधरी के पक्ष में गई.

सम्राट चौधरी नीतीश कुमार के खिलाफ काफी मुखर रहे हैं. पार्टी को लगता है कि ऐसा नेता ही जमीन पर बीजेपी को मजबूत कर सकता है.

नीतीश की काट निकालने में जुटी बीजेपी!

बिहार में नीतीश कुमार से अलग होने के बाद से बीजेपी उनकी काट निकालने में लगी है. इसी के तहत पहले तो छोटे दल (चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा, मुकेश सहनी, आरसीपी सिंह और जीतनराम मांझी)  पर निगाह लगाए हुए तो वहीं, पार्टी में नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी दी जा रही है.

विजय सिन्हा फॉर्वड जाति से आते हैं तो उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाया गया. पिछड़ी जाति से आने वाले सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई. बिहार में यादवों की संख्या 14 फीसदी से करीब है, ऐसे में पार्टी ने नित्यानंद राय को केंद्र में गृह राज्यमंत्री बनाया है. यानी पार्टी हर तरफ से नीतीश कुमार को घेरने में लगी है.

बिहार में किस जाति की कितनी संख्या?

(फोटो-क्विंट हिंदी)

उपचुनाव से मिली संजीवनी

बिहार में उपचुनाव में मिली सफलता ने बीजेपी का हौसला बढ़ा दिया है. पार्टी को विश्वास हो रहा है कि उसकी राज्य में धीरे-धीरे स्वीकार्यता बढ़ रही है. ऐसे में पार्टी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है.

संजय जायसवाल की क्यों गई कुर्सी

संजय जायसवाल का कार्यकाल पिछले साल नवंबर में ही समाप्त हो गया था. सूत्रों की मानें तो, वो अब केंद्र में जाना चाहते हैं, ऐसे में वो दोबारा प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनना चाहते हैं. दूसरा वो जिस समुदाय (बनिया) से आते हैं, वो पहले से बीजेपी के साथ रहा है. ऐसे में पार्टी ने नये चेहरे पर दांव लगाना मुनासिब समझा.

हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार शैलेंद्र सिंह की राय कुछ इतर है. उन्होंने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा कि बिहार में जब जेडीयू-बीजेपी का गठबंधन था तो संजय जायसवाल लगातार नीतीश कुमार के खिलाफ बोलते थे. इससे गठबंधन पर असर पड़ा और नीतीश अलग हो गये. पार्टी नहीं चाहती थी कि ऐसे नेता को दोबारा मौका दिया जाये.

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