महत्वपूर्ण आगामी विधानसभा चुनावों और 2024 के आम चुनावों (General Election 2024) से पहले बीजेपी (BJP) एक्टिव मोड में आ चुकी है. पार्टी ने अपने संगठनात्मक तंत्र को मजबूत करने के लिए बुधवार को चार राज्यों में नए प्रदेश अध्यक्षों के नामों की घोषणा की. ये राज्य राजस्थान, बिहार, दिल्ली और उड़ीसा हैं. नए नाम कौन-कौन से हैं और इनकी मदद से कैसे बीजेपी अपने समर्थन आधार को मजबूत करने की कोशिश कर रही है? यह समझने की कोशिश करते हैं.
राजस्थान
राजस्थान में अगले ही साल विधानसभा चुनाव होने हैं. और इससे पहले बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से सतीश पूनिया को हटाकर चित्तौड़गढ़ से सांसद सीपी जोशी को बैठा दिया है. सतीश पूनिया प्रदेश अध्यक्ष के पद को पिछले 3 साल से संभाल रहे थे. बीजेपी आलाकमान के इस फैसले ने कई राजनीतिक विश्लेषकों को चकित भी किया है, क्योंकि सीतीश पूनिया को संघ की लॉबी के बेहद करीबी और वसुंधरा विरोधी नेताओं में से एक माना जाता है. लेकिन बीजेपी के इस फैसले के पीछे की वजह समझनी है तो सीपी जोशी के अध्यक्ष बनने से होने वाले संभावित फायदों पर एक नजर डालनी होगी.
जोशी के सहारे बीजेपी ने मेवाड़ क्षेत्र को साधने की कोशिश की है जहां ब्राह्मण और वैश्य वोटरों की बड़ी संख्या है. यह बीजेपी का बहुत बड़ा वोट बैंक है. गुलाबचंद कटारिया को राज्यपाल बनाए जाने के बाद से ही मेवाड़ क्षेत्र में पार्टी के पास कोई दमदार चेहरा नहीं रह गया था. ऐसे में जाति से ब्राह्मण नेता सीपी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर एक तीर से दो निशाने किये हैं. उन्होंने बीते दिनों जयपुर में ब्राह्मण महापंचायत में शिरकत भी की थी.
दूसरी तरफ यह भी माना जा रहा है कि हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की केंद्रीय नेताओं के साथ नजदीकी के चलते भी पार्टी आलाकमान ने यह कदम उठाया है. पूनिया की अपेक्षा सीपी जोशी वसुंधरा राजे के नजदीक नजर आते हैं. गौरतलब है कि जोशी को लोकसभा का पहला टिकट वसुंधरा राजे ने ही दिया है. अब जोशी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पार्टी आलाकमान ने यह दिखाने की कोशिश की है कि वह नहीं चाहता कि चुनावी वर्ष में बीजेपी राजस्थान में किसी तरह की कोई गुटबाजी हो जिसका असर चुनाव परिणाम में देखने को मिले.
बिहार
बिहार में सम्राट चौधरी को संजय जायसवाल की जगह नया राज्य प्रमुख बनाया गया है. सम्राट चौधरी अभी बिहार विधान परिषद में विपक्ष के नेता हैं. सम्राट कुशवाहा जाति से आते हैं और माना जा रहा है कि बीजेपी उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाकर नीतीश कुमार के लव-कुश वोट बैंक (कुर्मी-कोइरी) को साधने की फिराक में है. खास बात है कि चौधरी मुश्किल से छह साल पहले बीजेपी में शामिल हुए हैं. इससे पहले लालू प्रसाद की आरजेडी और नीतीश कुमार की जद (यू) दोनों से जुड़े रहे हैं.
2000 और 2010 में परबत्ता सीट से वे आरजेडी की टिकट पर वे दो कार्यकाल तक विधायक रहे हैं और वह 2000 में राबड़ी देवी सरकार में मंत्री भी बनाए गए हैं.
इसके अलावा वे पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी के पुत्र हैं. शकुनी चौधरी समता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और उनका नाम कुशवाहा जाति के बड़े नेताओं में सुमार हैं.
दिल्ली
बीजेपी ने वीरेंद्र सचदेवा को ही दिल्ली इकाई का नया प्रमुख नियुक्त किया, जो दिल्ली बीजेपी के वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष थे. सचदेवा को पिछले साल दिसंबर में कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, जब तत्कालीन अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने MCD चुनावों में पार्टी की हार के बाद इस्तीफा दे दिया था.
माना जा रहा है कि सचदेवा पार्टी के दिल्ली कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में अपने छोटे से कार्यकाल में आलाकमान को प्रभावित किया है. उन्हें विवादों से दूर और पूरी तरह संगठनात्मक नेता माना जाता है जो राज्य इकाई में सामंजस्य बनाए रखने में सक्षम हैं.
ओडिशा
2024 के आम चुनाव से पहले ओडिशा में नए लीडर के नाम पर जारी अटकलों पर विराम लगाते हुए, वरिष्ठ बीजेपी नेता मनमोहन सामल को पार्टी ने ओडिशा इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया है. 64 वर्षीय सामल इससे पहले 1999-2004 के दौरान बीजेपी ओडिशा प्रमुख रह चुके हैं और वे अब समीर मोहंती की जगह लेंगे.
आरएसएस के स्टूडेंट विंग एबीवीपी के साथ अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले सामल ने आरएसएस कैडर के रूप में समय बिताया है और अपने संगठनात्मक कौशल और सभी को साथ लेकर चलने के लिए जाने जाते हैं.
भले ही जाति या धार्मिक फैक्टर ओडिशा की चुनावी राजनीति में बड़ी भूमिका नहीं निभाते हैं, लेकिन सामल के अध्यक्ष बनने से बीजेपी को ओबीसी वोट बैंक के समर्थन हासिल करने में मदद मिलेगी. हालांकि राज्य में ओबीसी का कोई औपचारिक सर्वे नहीं हुआ है, लेकिन अनुमान है कि राज्य की आबादी में ओबीसी का लगभग 54% शामिल है.
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