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"भैया बिहारियों को मारा जा रहा है.. बिहार के नेता तमिलनाडु के नेता से फोनपर बात करके बिहारी मजदूरों को पिटवा रहे हैं.. वीडियो वायरल हो रहा है.. सोशल मीडिया पर है.." सोशल मीडिया पर कुछ कथित पत्रकार और राजनीतिक दल के नेता ऐसे ही चीख-चीखकर माहौल बना रहे थे. लेकिन इस कथित हमदर्दी के पीछे सबसे अहम सवाल है कि क्या बिहारियों के माथे पर 'बिहारी' लिखा होता है? या सबने क्रिकेटर की तरह कपड़े पर लिखवा लिया है बिहारी.. जो सिर्फ बिहारी पिट रहे हैं?
दरअसल, तमिलनाडु में कथित तौर पर बिहारी मजदूरों से मारपीट की खबर वायरल की गई. वायरल ऐसी कि जैसे तमिलनाडु के लोग बिहारियों के खून के प्यासे हों. खबर ऐसे बनाई गई जैसे किसी दूसरे देश में जंग हो रही हो और बिहार के लोग वहां फंस गए हों. इन वीडियो का असर ये हुआ कि प्रवासी मजदूर नौकरी छोड़ अपने घर लौटने लगे. एक के बाद एक फेक न्यूज सोशल मीडिया और वॉट्सएप पर ठेलना शुरू.
इसी बीच पटना से लेकर चेन्नई तक सियासत गर्म हो गई. सोशल मीडिया पर फैल रहे भ्रामक दावों की बात बिहार विधानसभा तक पहुंच गई. बिहार की सत्ता में करीब दो दशक रहने वाली बीजेपी अचानक नीतीश कुमार को बिहारियों की पिटाई से लेकर पलायन पर घेरने लगी.
ये सब तो बैकग्राउंड था, लेकिन आगे की कहानी भी जान लीजिए और समझिए कि कैसे अफवाह और फेक न्यूज देश की शांति खत्म कर रही है, कैसे ये आम लोगों के बीच नफरत फैला रही है.
आप खुद सोचिए.. क्यों तमिलनाडु में सिर्फ बिहारियों को ही निशाना बनाने की बात उठी, जबकि हिंदी बोलने वाले यूपी, एमपी, राजस्थान के लोग भी वहां काम करते हैं. एक और बात अगर प्रवासियों पर रोजगार छीनने को लेकर हमला हो रहा है तो फिर तमिलनाडु की कपड़ा फैक्ट्री से लेकर अलग-अलग कामों में बंगाल और असम के लोग भी मिल जाएंगे फिर उनपर हमला क्यों नहीं हुआ?
अब सवाल है कि किसने ये बात फैलाई कि तमिनलाडु में बिहारियों को पीट रहे हैं. सिर्फ बिहारी ही क्यों?
दरअसल, फरवरी 2022 में एक वीडियो सामने आया था, जिसमें तमिल बोलता दिख रहा शख्स ट्रेन में तीन प्रवासी मजदूरों से बदसुलूकी करता दिख रहा है. साथ ही उनपर ''स्थानीय लोगों के हिस्से की नौकरी लेने का'' आरोप लगा रहा है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक गवर्मेंट रेलवे पुलिस (GRP) ने आरोपी की पहचान करते हुए विल्लुपुरम से 38 साल के मगिमाईदास को गिरफ्तार कर लिया था.
एक और मामला देखिए. तमिलनाडु में बिहार के जमुई के रहने वाले पवन यादव की हत्या हुई थी. इसे भी बिहारियों पर हमले के रूप में फैला गया. दैनिक भास्कर ने अपने पटना संस्करण में 3 मार्च को फ्रंट पेज पर पवन यादव की हत्या की घटना को तमिलनाडू में बिहारी मजदूर पर हमला बताते हुए छापा. फिर तमिलनाडू पुलिस ने इस खबर में तमिल और प्रवासी के झगड़े की बात को झूठा बताया.
लेकिन ये मामला यहीं नहीं रुका. इसी दौरान बिहार के रहने वाले यूट्यूबर मनीष कश्यप ने 8 मार्च 2022 को एक ट्वीट किया. इस ट्वीट में उसने कुछ तस्वीरें शेयर कर तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों के साथ मारपीट का दावा किया था. हालांकि, क्विंट हिंदी की वेबकूफ टीम ने जब उन तस्वीरों की पड़ताल की तो वो फेक निकले.
9 मार्च 2023 को क्विंट हिंदी में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, वीडियो का जो स्क्रिनशॉट मनीष कश्यप ने शेयर किया था वह काल्पनिक था स्क्रिप्टेड था. उस वीडियो को 'मनोरंजन के लिए बनाया गया' था.
मनीष के खिलाफ बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई (ईओडब्ल्यू) ने FIR दर्ज किए. इसके अलावा तीन और लोगों पर बिहार पुलिस ने केस दर्ज किया है. उसमें अमन कुमार, राकेश तिवारी, युवराज सिंह राजपूत का नाम शामिल है. अमन कुमार और मनीष कश्यप फिलहाल पुलिस के गिरफ्त में है. मनीष कश्यप ने बेतिया पुलिस के सामने सरेंडर किया है. पुलिस ने मनीश के बैंक खाते सीज कर दिए हैं.
लेकिन इन सबके बीच एक अहम सवाल है कि क्यों ये झूठ फैलाया गया? इस झूठ से किसे फायदा हो रहा है? क्यों 2024 लोकसभा चुनाव से पहले हिंदी बनाम तमिल या कहें बिहार बनाम तमिलनाडु का खेल शुरू किया गया? इस झूठ की वजह से लोग बेरोजगार हो रहे हैं, लोगों में नफरत फैल रही है, देश में भाषाई बंटवारे को हवा दी जा रही है. इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?
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