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शिवसेना ने महाराष्ट्र के बाहर पहली लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की है. दादरा-नगर हवेली चुनाव क्षेत्र से सांसद मोहन डेलकर की आत्महत्या के बाद उनकी पत्नी कमलाबेन डेलकर ने शिवसेना के समर्थन से जीत हासिल की है. जिसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का विस्तार करने के लिए शिवसेना (Shiv Sena) के हौसले बुलंद है. इसी जीत के सूत्रधार सांसद संजय राउत (Sanjay Raut) ने शिवसेना के विस्तार के बारे में क्विंट हिंदी से बात की है.
शिवसेना 50 सालों से महाराष्ट्र और देश की राजनीति में है. लेकिन महाराष्ट्र के बाहर शिवसेना को जीत हासिल नहीं हुई थी. हम उस जीत की तलाश में थे. दादरा-नगर हवेली ने हमारे लिए वो जीत का दरवाजा खोल दिया है. ये हमारी पार्टी की जीत है.
हम तीस सालों तक तो मुंबई, ठाणे, पुणे के बाहर नहीं निकले. इसके बाद बालासाहब ने महाराष्ट्र में संगठन का जाल फैलाना शुरू किया. लेकिन बाबरी ढहने के बाद शिवसेना और बालासाहब की देश मे लहर उठी. उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली में लोग शिवसेना का झंडा उठाना चाहते थे. लेकिन देश में हम बीजेपी के साथ गठबंधन में थे. बालासाहब बड़े दिल के इंसान थे. वो कहते थे कि हिंदुओं के मतों का बंटवारा हो ऐसा कोई कदम हम नहीं उठाएंगे.
इसीलिए हम अपने पार्टी का विस्तार नहीं कर पाए और बीजेपी हमारी मदद से बढ़ती गई. लेकिन अब हमने काम फिर से शुरू किया है. हम महाराष्ट्र के बाहर पार्टी का विस्तार गंभीरता से करना चाहते हैं.
बीजेपी के कहने पर राजनीति नहीं चलेगी. अगर बीजेपी इतनी प्रखर हिंदुत्ववादी है तो हिमाचल, पश्चिम बंगाल और दादरा-नगर हवेली में चुनाव क्यों हार गई? हम भी प्रखर हिंदुत्ववादी हैं और रहेंगे.
ये चुनाव नतीजे बीजेपी की हार दर्शाते हैं. लोग बीजेपी से ऊब गए हैं. रोज बदलने वाली भूमिका और जनता के प्रति नफरत साफ नजर आ रही है. महंगाई के ऊपर कोई बात नहीं कर रहा. हारने के बाद हिमाचल के मुख्यमंत्री कहते हैं कि महंगाई की वजह से हारे.
गुजरात में भी काम चल रहा है. गुजरात के लोग भी चाहते हैं कि शिवसेना भगवा झंडा लेकर वहां आए. गुजरात का रास्ता भी दादरा-नगर हवेली, दमन-दीव से जाता है. हमने वो रास्ता खोल दिया है. वहां कितनी सीटे लड़नी हैं, इसपर चर्चा शुरू है. एनसीपी भी गुजरात मे चुनाव लड़ती है. शरद पवार से भी बात करेंगे. गठबंधन हुआ तो ठीक नहीं तो खुद के दम पर शिवसेना चुनाव लड़ेगी.
देश की विपक्षी पार्टियां बीजेपी की घोर विरोधी हैं. यूपी में प्रियंका गांधी की आंधी चल रही है. वहां कांग्रेस फिर से जिंदा हो रही है. वहां के प्रतिद्वंद्वी मायावती और अखिलेश को बीजेपी से नहीं बल्कि कांग्रेस से डर लग रहा है. इसीलिए सभी विरोधी पार्टियों को एक साथ बैठ कर निर्णय लेना चाहिए.
जिस तरह 1978 में कांग्रेस के खिलाफ सभी पॉलिटिकल पार्टियां को इकट्ठा कर जनता पार्टी या वी पी सिंह के नेतृत्व में जो जनता दल बना था. अगर ये नहीं करोगे तो देश मे तानाशाही और लोकतंत्र की हत्या देखनी पड़ेगी.
फिलहाल तो हम NDA का हिस्सा नहीं हैं और दूर-दूर तक वापस होने की संभावना भी नहीं है. महाराष्ट्र में हमारे मुख्यमंत्री के नेतृत्व में ठीक-ठाक सरकार चल रही है. इसे तोड़-मरोड़ के नई व्यवस्था बनाने का सवाल पैदा नही होता.
महाराष्ट्र में कभी ये परंपरा नहीं रही. एक-दूसरे के परिवार तक बदले की राजनीति कभी नहीं पहुंची. लेकिन पिछले 2-4 साल से ये हो रहा है. इसके लिए बीजेपी की घटिया सोच जिम्मेदार है.
महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार नहीं है. इसलिए केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर महा विकास अघाड़ी सरकार के मंत्री और नेताओं के बीवी-बच्चों के खिलाफ जो मुहिम शुरू है, इसमें नैतिकता का आधार नही हैं. इसीलिए उद्धव ठाकरे हमेशा से आह्वान करते आ रहे हैं कि इस तानाशाही से मुक्ति पानी है तो आपसी मतभेद भुलाकर हमें एक साथ आना होगा.
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Published: 04 Nov 2021,10:25 AM IST