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शुक्रवार 6 मई को बीजेपी नेता तजिंदर पाल सिंह बग्गा (Tajindar Pal Singh Bagga) को गिरफ्तार करने की पंजाब पुलिस की कोशिश पर विवाद जारी है. बीजेपी का दावा है कि यह गिरफ्तारी बदले की राजनीति से प्रेरित है, जबकि आम आदमी पार्टी (जिसकी सरकार पंजाब में है) का कहना है कि यह गिरफ्तारी इसलिए की गई है क्योंकि बग्गा के खिलाफ क्रिमिनल केस है.
बग्गा ने याचिका दायर की है कि
वैसे बग्गा के खिलाफ जो एफआईआर दर्ज की गई थी, जिनके तहत उन्हें गिरफ्तार किया गया, उसे लेकर भी सवाल उठते हैं. 1 अप्रैल को यह एफआईआर धारा 153ए (विभिन्न समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 505 (लोक शांति को भंग करना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत दर्ज की गई थी.
बग्गा ने एफआईआर को खारिज करने के लिए जो याचिका दायर की है, उसमें एफआईआर की उपयुक्तता पर विचार किया जाएगा, लेकिन यहां गौर करने की बात यह है कि एफआईआर पर विचार करते समय कोर्ट अपने आप इस सवाल का जवाब नहीं मांगेगी कि क्या बग्गा को उनके जनकपुरी (दिल्ली) स्थित घर से गिरफ्तार करते समय पंजाब पुलिस ने सही प्रक्रिया का पालन किया.
इस सवाल का जवाब देने के लिए यह देखना होगा कि क्या पंजाब पुलिस ने गिरफ्तारियों और खास तौर से अंतरराज्यीय गिरफ्तारी पर सामान्य कानून का पालन किया.
बग्गा के खिलाफ एफआईआर में जिन अपराधों की जिक्र है, उनके लिए हद से हद तीन साल की कैद है.
चूंकि इन मामलों में सजा सात साल से कम है इसलिए आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी कहती है कि ऐसे में गिरफ्तारी सिर्फ तभी की जानी चाहिए जब वह बहुत जरूरी हो, जैसे जब आरोपी के फरार होने, या गवाहों को धमकाने या सबूतों से छेड़छाड़ करने की आशंका हो. सुप्रीम कोर्ट 2014 के अर्नेश कुमार फैसले में यह बात दोहरा चुका है.
इसके अलावा उन्हें जांच में सहयोग करने के लिए सीआरपीसी की धारा 41 ए के तहत नोटिस भेजा जाना चाहिए, और अगर आरोपी जांच में सहयोग न करे तो गिरफ्तारी की जानी चाहिए.
पंजाब पुलिस का दावा है कि इस प्रक्रिया का पालन किया गया था: उन्होंने बग्गा को कथित तौर पर जांच में सहयोग करने के लिए पांच नोटिस भेजे थे.
अगर बग्गा ने इन नोटिसों को अनदेखा किया तो पंजाब पुलिस को जांच में सहयोग करने के लिए बग्गा को गिरफ्तार करने का अधिकार था.
वैसे सीआरपीसी में अंतरराज्यीय गिरफ्तारी के संबंध में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं हैं, खासकर उन स्थितियों के लिए जहां किसी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा रहा है.
हां, सीआरपीसी की धारा 79 बताती है कि अगर वारंट किसी और जगह से जारी किया गया है, और गिरफ्तारी किसी दूसरी जगह से की जा रही हो तो किस प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए.
इसमें एग्जीक्यूटिव मेजिस्ट्रेट या जिस पुलिस स्टेशन के क्षेत्राधिकार से गिरफ्त्तारी की जा रही है, उस स्टेशन के प्रभारी पुलिस अधिकारी की पुष्टि की जरूरत होती है. यह प्रावधान अंतरराज्यीय गिरफ्तारी पर भी लागू होगा.
लेकिन बग्गा के मामले में गिरफ्तारी वारंट के बिना की गई, इसलिए सीआरपीसी में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है जो बताए कि अंतरराज्यीय गिरफ्तारी कैसे की जानी चाहिए. संसद ने ऐसा कोई कानून भी नहीं बनाया है जो अंतरराज्यीय गिरफ्तारियों पर लागू होता हो.
पंजाब पुलिस इस कानूनी प्रावधान की कमी की आड़ में यह दावा कर सकती है कि उसने बग्गा की गिरफ्तारी के बारे में दिल्ली पुलिस को सूचित किया था, और वह इसके लिए किसी खास प्रक्रिया को पालन करने को बाध्य नहीं है.
द ट्रिब्यून को दिए एक बयान में, मोहाली के डीएसपी (सिटी-1) सुखनाज सिंह ने कहा है:
हालांकि अगर पंजाब पुलिस को सिर्फ इसी प्रक्रिया का पालन करना होता तो वह खुद को कटघरे में पाती.
2019 में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐसे मामले की सुनवाई की थी जिसमें एक शख्स और उसकी बीवी को उत्तर प्रदेश पुलिस ने, महिला के परिवार की शिकायत पर गिरफ्तार किया था. यह मामला था, संदीप कुमार बनाम उप्र राज्य.
उस शख्स का नाम था संदीप कुमार और उसे गिरफ्तार करने के बाद मेजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया गया था. बीवी, निशा, को पुलिस जबरन उसके परिवार के पास ले गई थी, हालांकि वह 21 साल की थी और उसने जोर देकर कहा था कि वह अपनी मर्जी से अपने पति के साथ रह रही है.
हाई कोर्ट ने मामले से जुड़े पुलिस अधिकारियों की कार्रवाई का आकलन करने के लिए स्पेशल कमिटी की नियुक्ति की थी जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस एसपी गर्ग और आईपीएस अधिकारी कंवलजीत देयोल शामिल थे. कंवलजीत एनएचआरसी के साथ भी जुड़ी रही हैं.
कमिटी ने सीआरपीसी के तहत गिरफ्तारियों से जुड़े नियम खंगाले, अंतरराज्यीय गिरफ्तारियों पर गृह मंत्रालय के कार्यालय के 2012 के मेमोरेंडम और संबंधित पुलिस नियम और मैनुअल्स पलटे. उन्होंने पाया कि इस मामले में हर किस्म की प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ था.
पंजाब पुलिस यह तर्क देने की कोशिश कर सकती है कि ये दिशानिर्देश उन पर लागू नहीं होते हैं क्योंकि दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्हें पंजाब में लागू करने के संबंध में कोई निर्देश नहीं दिया था. लेकिन यह अपना बचाव करने का एक बेबुनियाद बहाना होगा क्योंकि कमिटी ने जो दिशानिर्देश तैयार किए थे, वे मौजूदा नियमों और कानून पर ही आधारित हैं.
सीनियर एडवोकेट सतीश टम्टा क्रिमिनल लॉ के एक्सपर्ट हैं. उनका तर्क है कि देश में किसी भी जगह जब पुलिस अंतरराज्यीय गिरफ्तारी करे, तो दिल्ली हाई कोर्ट के दिशानिर्देश लागू होंगे, खास तौर से जब गिरफ्तारी दिल्ली से की जा रही हो.
दिशानिर्देशों में यह अपेक्षित है कि किसी और राज्य से गिरफ्तारी करते समय पुलिस बल को निम्नलिखित चरणों का पालन करना चाहिए:
जो पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी कर रहा है, उसे अपने राज्य से बाहर जाने के लिए पहले अपने उच्च/वरिष्ठ अधिकारियों की लिखित अनुमति लेनी होगी.
पुलिस अधिकारी को उन तथ्यों का उल्लेख करना होगा और कारणों को लिखित रूप में दर्ज करना होगा कि गिरफ्तारी क्यों जरूरी है. जब तक यह जोखिम न हो कि आरोपी गायब हो सकता है या सबूत नष्ट कर सकता है, पुलिस को आरोपी की गिरफ्तारी के लिए वारंट हासिल करना होगा.
दूसरे राज्य में जाने से पहले, पुलिस अधिकारी को "उस स्थानीय पुलिस स्टेशन से संपर्क करने की कोशिश करनी चाहिए जिसके क्षेत्राधिकार में उसे जांच करनी है."
मंजिल पर पहुंचने के बाद सबसे पहले उसे संबंधित पुलिस स्टेशन को उसके आने के मकसद के बारे में बताना होगा, ताकि वह सहयोग और सहायता की मांग कर सके.
राज्य से बाहर ले जाने से पहले गिरफ्तार व्यक्ति को यह मौका दिया जाना चाहिए कि वह अपने वकील से सलाह कर ले.
लौटते समय पुलिस अधिकारी को स्थानीय पुलिस स्टेशन जाना चाहिए और राज्य से बाहर ले जाने वाले व्यक्ति (व्यक्तियों) का नाम और पता डेली डायरी में लिखना चाहिए. अगर बरामद होने वाले किसी सामान को साथ ले जा रहे हो तो डेली डायरी में उसका जिक्र भी होना चाहिए. पीड़ित का नाम भी लिखना चाहिए.
किसी और राज्य की पुलिस के लिए जरूरी नहीं है कि जिस जगह गिरफ्तारी की जा रही है, वहां के स्थानीय मेजिस्ट्रेट से ट्रांजिट रिमांड हासिल की जाए, अगर गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार व्यक्ति को मेजिस्ट्रेट के सामने पेश करना मुमकिन हो. दिल्ली और मोहाली के बीच की दूरी को देखते हुए ऐसा मुमकिन था और इसलिए पंजाब पुलिस के लिए ट्रांजिट रिमांड का आदेश लेना जरूरी नहीं था.
हालांकि पंजाब पुलिस ने खुद जो बताया, उससे साफ है कि उसने कई दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया, क्योंकि जब वे बग्गा को गिरफ्तार कर रहे थे, उस समय उन्होंने दिल्ली पुलिस को सिर्फ गिरफ्तारी की सूचना दी.
इसके अलावा उन्होंने बग्गा को दिल्ली से बाहर ले जाते समय, अपने वकील से सलाह करने का मौका नहीं दिया.
पंजाब पुलिस के सूत्रों ने द ट्रिब्यून से बात करते हुए यह स्वीकार किया है कि बग्गा की गिरफ्तारी करते समय पुलिस ने तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया.
चूंकि गिरफ्तारी तय प्रक्रिया के बिना की गई थी, इसलिए बग्गा को संदीप कुमार मामले की तरह हर्जाना मिल सकता है.
चूंकि दिल्ली पुलिस खुद भी कई बार सभी दिशानिर्देशों का पालन नहीं करती. किसान प्रदर्शनों पर टूलकिट मामले में जब बेंगलूर से क्लाइमेट एक्टिविस्ट दिशा रवि की गिरफ्तारी की गई थी, तब दिल्ली पुलिस ने इन दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया था.
यह देखना दिलचस्प होगा कि पंजाब पुलिस की तरफ से पंजाब सरकार ने जो हेबिस कॉरपस यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है, उस पर विचार करते समय क्या पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट इस पहलू पर विचार करेगा. चूंकि दिल्ली पुलिस की एफआईआर के बाद पंजाब पुलिस के अधिकारियों को हरियाणा पुलिस ने भी बंधक बनाया था.
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