advertisement
यूपी चुनाव के नतीजे आ चुके हैं. बीजेपी ने बहुमत के साथ वापसी की. एसपी ने पिछली बार की तुलना में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन सरकार नहीं बनी. बीएसपी के साथ ऐसा कुछ हुआ जो यूपी में आजतक नहीं हुआ था. वहीं कांग्रेस में जान फूंकने की कोशिश में प्रियंका गांधी नाकाम हुईं. ऐसे में कुछ बड़े मैसेज और सवाल निकलते हैं?
बीजेपी ने कितनी बड़ी जीत हासिल की?
अखिलेश ने सबसे बड़ी गलती क्या की?
जयंत चौधरी की यारी ने झूठा सपना दिखाया!
मायावती ने किसे फायदा पहुंचाया?
ध्रुवीकरण हुआ, बस दिखा नहीं?
हम इन प्वाइंट्स के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे लेकिन जो हुआ है पहले उसे विस्तार से समझ लीजिए-
साल 2017 में मोदी लहर थी. बीजेपी 40% के साथ सत्ता पर काबिज हुई. लेकिन अबकी बार 41% से ज्यादा वोट मिले हैं. यानी बीजेपी ने मोदी लहर से भी अच्छा प्रदर्शन किया है. 1980 से लेकर 2017 तक बीजेपी को 40% से ज्यादा वोट नहीं मिले, लेकिन अबकी बार के विधानसभा में नया रिकॉर्ड बना.
अबकी बार यूपी चुनाव में ऐसा कुछ हुआ, जिसकी उम्मीद तो थी, लेकिन किसी को भरोसा नहीं हो रहा था. मायावती का वोट प्रतिशत पहली बार घटकर 12% पर पहुंचा है. अब तक बीएसपी का रिकॉर्ड रहा है कि चाहे अखिलेश यादव की सरकार बने या फिर मोदी की लहर हो. उसका वोट बेस कम नहीं हुआ. 2007 में बीएसपी को 30.4%, 2012 में 25%,2017 में 22% और 2019 में 19% वोट मिले. अबकी बार बीएसपी का वोट 12% रह गया.
पूरे चुनाव में कभी भी नहीं लगा कि मायावती जीतने के लिए लड़ रही हैं. आगरा में पहली रैली की तो कहा कि 2007 वाले रिजल्ट आएंगे. लेकिन उनकी इन बातों पर किसी को भरोसा नहीं हुआ. उनके कोर जाटव वोटर को भी नहीं. यही बात नतीजों में रिफलेक्ट हुईं.
यूपी चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की थी कि बीजेपी को सबसे ज्यादा घाटा पश्चिम यूपी में हो सकता है. अखिलेश की जयंत से दोस्ती हुई तो इस बात को और तवज्जो मिली. जाट-मुस्लिम एकता के नाम पर कई कार्यक्रम किए गए. रैलियों में भीड़ दिखी. ये सब देखने से लगा कि सच में पश्चिम यूपी का जाट बीजेपी से नाराज है. लेकिन ये जयंत चौधरी की दिखाई गई पिक्चर साबित हुई, जिस पर अखिलेश ने भरोसा किया. लगा कि अबकी बार तो जाट-मुस्लिम भाईचारा काम आ जाएगा. एसपी को भारी फायदा हो सकता है. लेकिन नतीजे आए तो सच्चाई कुछ और ही निकली.
पूरे चुनाव में अखिलेश यादव परसेप्शन की लड़ाई में लीड बनाए हुए थे, लेकिन इसे वह वोटों में तब्दील नहीं कर पाए. यहीं पर उन्होंने सबसे बड़ी गलती की. स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं को पार्टी में शामिल करा सोचा कि गैर यादव ओबीसी का वोट मिल जाएगा. लेकिन स्वामी प्रसाद फाजिलनगर की अपनी सीट ही हार गए. दारा सिंह चौहान भी अखाड़े में गिरते पड़ते नजर आए.
अमित शाह ने अपनी चुनावी रैली की शुरुआत कैराना से की थी. वहीं पर योगी आदित्यनाथ ने गर्मी निकालने की बात की. उसी कैराना में सबसे ज्यादा 75% वोट पड़े. एसपी के नाहिद हसन जीत तो गए, लेकिन मृगांका सिंह ने कड़ी टक्कर दी. पश्चिम यूपी की बाकी की कुछ सीटों पर भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला.
लखीमपुर के निघासन में किसानों पर जीप चढ़ाई गई. मुजफ्फरनगर दंगे की याद दिलाई गई. हाथरस कांड हुआ. एसपी ने इन सभी मुद्दों का इस्तेमाल बीजेपी को डेंट पहुंचाने में किया. कई जगहों पर बीजेपी बैकफुट पर भी गई, लेकिन नतीजे कुछ और ही कहानी कहते हैं. इन तीनों सीटों पर बीजेपी को बंपर वोट पड़े. बड़ी जीत हुई. कहा जा रहा है कि योगी की कानून व्यवस्था और बुलडोजर की छवि को पसंद किया गया.
योगी की वापसी और अखिलेश के प्रदर्शन में सुधार हुआ, लेकिन ये चुनाव बीएसपी और कांग्रेस के लिए याद रखा जाएगा. इतिहास में दर्ज होगा कि 10 साल के अंदर प्रदेश की राजनीति से वह पार्टी लगभग गायब हो गई, जो कभी सत्ता पर काबिज थी.
लाभार्थी फैक्टर- साफ दिख रहा है कि बेरोजगारी, क्राइम की बड़ी घटनाओं और कोरोना मिसमैनेजमेंट जैसे बड़े मुद्दों के बावजूद बीजेपी को उस वोटर ने वोट किया जिन्हें लाभार्थी वोटर कहा जा रहा है. ये वो लोग हैं जिन्हें फ्री राशन मिल रहा है, पेंशन मिल रही है, फ्री गैस मिल रही है, किसान सम्मान निधि मिल रहा है, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर मिल रहा है.
मोदी-योगी फैक्टर-नतीजे बताते हैं कि आज भी देश में मोदी का असर बाकी है और यूपी में योगी की लोकप्रियता का ग्राफ चढ़ रहा है. योगी की सीटें भले ही घट गई हैं लेकिन वोट प्रतिशत करीब 2% बढ़ा है.
ट्रैक्टर-किसान आंदोलन के कारण माना जा रहा था कि बीजेपी को नुकसान होगा लेकिन लखीमपुर से लेकर बाकी ग्रामीण इलाकों में बीजेपी की जीत इशारा कर रही है कि आखिरी वक्त में तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के दांव ने बीजेपी को फायदा पहुंचाया. कहीं न कहीं किसानों का गुस्सा कम हुआ और वो बीजेपी को वोट देने आए.
10- बीजेपी पर माया की छाया?
बीएसपी ने पिछली बार 19 सीटें जीती थीं, इस बार दो पर सिमट गई. दूसरी तरफ उसका वोट प्रतिशत करीब 7% घटा है. सवाल ये है कि ये वोट कहा गया. उधर बीजेपी का वोट प्रतिशत बढ़ा है. कहीं न कहीं लग रहा है कि ये वोट बीजेपी को गए हैं. पूरे चुनाव प्रचार के दौरान माया की चुप्पी शक को और बढ़ाती है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined