उत्तर प्रदेश का जाट लैंड. सभी राजनीतिक पार्टियां जोर आजमाइश कर रही हैं. दो बड़ी वजहें हैं. पहला, यहीं से मतदान की शुरुआत हो रही है. दूसरा, किसान आंदोलन के बाद यहां नए सियासी समीकरण बने हैं. हर कोई जाटों को अपनी तरफ खींचना चाहता है. बीजेपी इन्हीं जाटों की वजह से सत्ता में आई, लेकिन अबकी बार समीकरण बिगड़ता दिख रहा है. आरएलडी के जयंत चौधरी अखिलेश के साथ आ गए हैं. ऐसे में समझते हैं कि जाट लैंड के पिछले चुनावी नतीजे क्या कहानी कहते हैं? अबकी बार जाट लैंड किसके साथ खड़ा है?
जाट लैंड में 27 लोकसभा- 136 विधानसभा सीटें
जाट लैंड में 22 जिले आते हैं, जिनके नाम सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, ज्योतिबा फुले नगर, मेरठ, बागपत, गाज़ियाबाद, गौतम बुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, महामाया नगर, मथुरा, आगरा, फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, शाहजहांपुर, बरेली, पीलीभीत, शाहजहांपुर हैं. यहां 136 विधानसभा और 27 लोकसभा सीटें हैं.
वेस्ट यूपी में बीएसपी रही है दूसरे नंबर की पार्टी
इस बार के चुनाव के मुख्य मुकाबला एसपी और बीजेपी के बीच माना जा रहा है, लेकिन वेस्ट यूपी में बीएसपी साल 2017 से पहले हमेशा फाइट में रही है. दूसरे नंबर पर. 2012 विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने वेस्ट यूपी से 136 में से 39 सीट जीती थी. तब एसपी के पास 58 और बीजेपी के पास 20 सीट आई थी. वेस्ट यूपी के आगरा, गौतम बुद्ध नगर, गाजियाबाद में मायावती के अच्छे वोटर हैं.
हालांकि साल 2017 के चुनाव में बीएसपी अपने सबसे मजबूत गढ़ आगरा से भी गायब हो गई. उसे गाजियाबाद, महामाया नगर और मथुरा में 3 सीट ही मिल सकी. बीजेपी के 5 गुना ज्यादा सीटें मिलीं.
पूरे जाटलैंट में कांग्रेस के 2-आरएलडी का 1 विधायक
साल 2017 में जाटलैंड का सियासी समीकरण बदल गया था. कांग्रेस, आरएलडी और बीएसपी लगभग गायब हो गईं. पूरे जाटलैंड में कांग्रेस के 2 उम्मीदवार बेहट और सहारनपुर से जीते. आरएलडी का सिर्फ एक उम्मीदवार बागपत के छपरौली से जीता. बीएसपी के 3 उम्मीदवार ढोलाना, सादाबाद और मांट से जीत सके. बाकी जो एसपी 58 सीटों पर थी. वह गिरकर 21 पर आ गई. यानी एसपी की लगभग 3 गुना सीट कम हो गई.
2014 के बाद जाटलैंड में घटी बीजेपी की सीटें
जाट लैंड में अमित शाह और योगी आदित्यनाथ सहित बीजेपी के बड़े नेता मुजफ्फरनगर दंगे की याद दिला रहे हैं. अमित शाह भाषणों में मुजफ्फरनगर दंगे का जिक्र करते हैं. उन्होंने कहा, आज भी दंगों की पीड़ा को भूल नहीं पाया हूं. हमारा आपका नाता 650 साल पुराना है. आप भी मुगलों से लड़े हम भी लड़ रहे हैं. दरअसल, साल 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट और मुस्लिम वोटर बंट गए.
जाटों का पूरा वोट बीजेपी को गया, जिसकी वजह से 2014 के लोकसभा चुनाव में 27 में से 25 सीटों पर जीत हुई. हालांकि 2019 में सीट घटकर 20 पर आ गई. लेकिन अबकी बार भी बीजेपी अपने ध्रुवीकरण वाले फार्मूले पर जाना चाहती है. जिस मुजफ्फरनगर को लोग भूल चुके थे, उसे फिर से याद दिला रही है, क्योंकि पिछले 3 चुनावों में ध्रुवीकरण का असर देख चुकी है.
जाट-मुस्लिम कॉम्बिनेशन को किंग मेकर क्यों कहते हैं?
साल 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट मुस्लिम का जो कॉम्बीनेशन टूटा था. वो साल 2022 के आते-आते जुड़ता हुआ नजर आ रहा है, जिसकी दो वजहें हैं. पहला, किसान आंदोलन के बाद जाट बीजेपी से कुछ दूर हुआ है. दूसरा, आरएलडी ने जाट-मुस्लिम को साथ लाने के लिए कई जगहों पर जाट मुस्लिम एकता भाईचारा सम्मेलन कराए. वेस्ट यूपी में पूरी राजनीति जाट, जाटव, मुस्लिम, गुर्जर और वैश्य जाति के इर्द-गिर्द घूमती है.
यूपी में जाट 2% हैं, वहीं पश्चिम यूपी में 17-18% हैं. जाट और मुस्लिम मिल जाए तो पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर क्लीन स्वीप कर सकते हैं. जैसे- मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली, बिजनौर, बागपत, सहारनपुर और गाजियाबाद के सात जिलों में दोनों की आबादी मिलाकर 40 प्रतिशत से ज्यादा है. कई जगहों पर तो 50% तक हैं.
जाट लैंड में लगातार बीजेपी नेताओं का विरोध हो रहा
पश्चिमी यूपी में बीजेपी के चेहरों की बात करें तो भूपेंद्र चौधरी, संजीव बलियान और सुरेश राणा है. लेकिन इन नेताओं का अलग-अलग तरीके से विरोध हो रहा है. केद्रीय मंत्री और मुजफ्फरनगर सांसद संजीव बालियान के खिलाफ मेरठ में ब्राहमण समाज ने विरोध किया. कहना था कि वे ब्राहमणों के खिलाफ अपशब्द कहने वालों का साथ नहीं देंगे. दरअसल, बलियान का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे हंसते हुए ब्राह्मण विरोधी नारेबाजी करते दिखे थे. संजीव बालियान का सरधना के सकौती गांव में भी गांव के लोगों ने विरोध किया था. शामली में गन्ना मंत्री सुरेश राणा को लोगों ने काले झंडे दिखाए और विरोध प्रदर्शन किया. किसान गन्ना भुगतान में देरी से नाराज हैं.
24 जनवरी को चूर गांव में सिवाल खास से बीजेपी उम्मीदवार पर हमला हुआ. मुजफ्फरनगर के खतौली से बीजेपी के मौजूदा विधायक और उम्मीदवार विक्रम सैनी को भैंसी गांव में किसानों ने घेर लिया. विरोध में नारे लगाए. विक्रम सैनी वही हैं जिन्होंने सिंघू बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों की आलोचना की थी. बागपत में छपरौली से बीजेपी उम्मीदवार सहेंद्र रमाला को दाहा गांव में काले झंडे दिखाए गए. उसी दिन एक कार्यक्रम निरपुडा गांव में भी था, लेकिन वहां गांव के लोगों ने उन्हें घुसने ही नहीं दिया.
बीजेपी ने जाटों पर लगाया दांव-एसपी के पास खोने के लिए बहुत कुछ नहीं
पश्चिम उत्तर प्रदेश में सभी पार्टियां जाट और मुस्लिम वोटर को साधने में लगी हैं. मसलन, पहले फेज में जिन 58 सीटों पर मतदान है, वहां एसपी-आरएलडी ने 13, बीएसपी ने 17 और कांग्रेस ने 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. लेकिन बीजेपी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया. बीजेपी ये मैसेज देना चाहती है कि साल 2014,2017 और 2019 की तरह अबकी बार भी उन्हें जाट वोटर पर पूरा भरोसा है. अबकी बार भी वे उन्हीं के भरोसे चुनाव जीतना चाहते हैं.
प्रवेश वर्मा जैसे बड़े चेहरे की जरिए जाटों को मनाया भी जा रहा है, लेकिन अभी भी बीजेपी के लिए नाराजगी नजर आ रही है. ऐसे में शायद मुजफ्फरनगर और कैराना जैसे मुद्दों की याद दिलाकर ही बीजेपी अपनी सीटों में बढ़ोतरी कर सके. वहीं पश्चिम में दूसरे नंबर पर रही बीएसपी की सीट में कुछ इजाफा हो सकता है. अखिलेश और जयंत के पास जाट लैंड में खोने के लिए बहुत कुछ नहीं है. 2012 के बाद जयंत वहां कोई चुनाव नहीं जीते. अखिलेश की हालत भी पिछले चुनावों में अच्छी नहीं रही. इसलिए पश्चिम से जो भी सीट मिलेगी उससे वे प्लस ही रहेंगे.
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