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यूपी विधानसभा चुनाव 2022: कौन हैं अखिलेश यादव के साथी?

अखिलेश यादव ने साफ किया, बड़े दलों के साथ गठबंधन नहीं, छोटे दलों के साथ चल रही बात

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पॉलिटिक्स
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अखिलेश यादव ने फिलहाल तीन छोटे दलों के साथ गठबंधन की बात कही है
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अखिलेश यादव ने फिलहाल तीन छोटे दलों के साथ गठबंधन की बात कही है
(फाइल फोटो : PTI)

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उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों (UP Elections) को लेकर तमाम दलों ने कमर कसनी शुरू कर दी है. बीजेपी में फेरबदल को लेकर हलचल की खबरों के बीच अब समाजवादी पार्टी ने भी अपनी रणनीति साफ कर दी है. कांग्रेस और बीएसपी के साथ गठबंधन कर हार का सामना करने वाली अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की पार्टी ने अब इन बड़े दलों से पहले ही किनारा कर लिया है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में साफ कर दिया है कि चुनाव 2022 में बड़े दलों के साथ गठबंधन नहीं किया जाएगा, उनकी बजाय इस बार छोटे दलों का साथ लेकर अखिलेश चलने वाले हैं.

छोटे दलों के सहारे चुनाव में उतरेंगे अखिलेश

अब यूपी में बीजेपी नेतृत्व से नाराजगी की खबरों के बीच अखिलेश यादव के इस ऐलान को लेकर कई मायने निकाले जा रहे हैं. अखिलेश इस बार किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहते हैं. साथ ही वो समाजवादी पार्टी के हिस्से की सीटों को बड़ी पार्टियों के साथ गठबंधन कर बांटना नहीं चाहते हैं. इसीलिए आने वाले विधानसभा चुनाव में अखिलेश अपनी साइकिल में हैवी वेट की जगह छोटे दलों को एडजस्ट करने की कोशिश कर रहे हैं.

अब कांग्रेस और बीएसपी से किनारा करने के बाद आखिर वो कौन से दल हैं, जिन्हें साथ लेकर अखिलेश यादव चुनावी मैदान में उतर रहे हैं? इसका जवाब भी खुद अखिलेश ने अपने इंटरव्यू में दिया. अखिलेश यादव ने इस दौरान यूपी के कुछ छोटे राजनीतिक दलों का नाम लिया. जिनमें आरएलडी, महान दल और चौहान समुदाय की जनवादी पार्टी शामिल हैं. इसके अलावा भी कुछ अन्य दलों के साथ समाजवादी पार्टी गठबंधन कर सकती है.

महान दल

अब यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके अखिलेश यादव ने जिन दलों से चुनाव से पहले हाथ मिलाया है, उनमें महान दल का नाम पिछले दिनों भी सामने आया था. जिसके बाद अखिलेश ने खुद इस दल का नाम लिया. दरअसल ये दल मौर्या समाज का प्रतिनिधित्व करता है. साल 2008 में मायावती की पार्टी बीएसपी छोड़ने वाले केशव देव मौर्या ने महान दल का गठन किया था. इस समुदाय के तहत आने वाली जातियों के वोट करीब 6 फीसदी हैं.

महान दल कांग्रेस के साथ गठबंधन कर भी चुनाव लड़ चुका है, हालांकि कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाया. लेकिन वोट शेयर की बात करें तो विधानसभा चुनावों में कई सीटों पर महान दल के उम्मीदवारों ने बेहतर प्रदर्शन किया. बीजेपी में समुदाय का नेतृत्व करने वाले उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या हैं. ऐसे में अखिलेश यादव ने मौर्या समाज के वोटर्स को अपनी तरफ खींचने के लिए महान दल के साथ गठबंधन किया है.

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जनवादी पार्टी

अब यूपी के चुनावी समीकरण में अखिलेश यादव ने चौहान वोट को भी फिट किया है. इसके लिए संजय चौहान की जनवादी पार्टी के साथ भी गठबंधन किया गया है. जिसका खुद अखिलेश ने जिक्र किया. इस पार्टी के साथ चौहान समुदाय के कई बड़े लोग जुड़े हुए हैं और पार्टी दावा करती है कि वो दलित समाज के लोगों के लिए लड़ाई लड़ती आई है. तो इस पार्टी को अपने साथ लेकर चलने से अखिलेश यादव राजपूत वोट बैंक को साधने की तैयारी कर रहे हैं.

जयंत चौधरी की आरएलडी

अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी का नाम भी लिया है. यानी ये साफ है कि आरएलडी भी समाजवादी पार्टी की साइकिल पर ही सवार होकर चुनावी यात्रा पर निकलने जा रही है. पिछले दिनों हुए उपचुनावों में जब अखिलेश की एसपी ने आरएलडी के लिए बुलंदशहर की सीट छोड़ी थी, तभी से दोनों दलों के बीच के रिश्ते को लेकर अटकलें तेज हो गईं. आरएलडी प्रमुख अजीत सिंह के निधन के बाद जयंत चौधरी को उनकी जगह पार्टी की कमान सौंपी गई थी.

क्योंकि आरएलडी की जाट समुदाय और खासतौर पर पश्चिमी यूपी के कई जिलों में पकड़ है, इसीलिए अखिलेश के लिए जयंत का साथ फायदेमंद साबित हो सकता है. हाल ही में किसान आंदोलन के दौरान भी जयंत चौधरी ने कई महापंचायतों का आयोजन किया था, जिनमें हजारों की संख्या में किसान और उनके समर्थक पहुंचे थे.

बाकी पार्टियों पर भी बड़े दलों की नजर

इन दलों के अलावा अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के साथ भी गठबंधन की बात कही थी, लेकिन शिवपाल यादव अपना एक नया गठबंधन बनाने की जुगत में हैं. वहीं ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन की कोशिश भी हो रही है. जो बीजेपी के साथ गठबंधन से साफ इनकार कर चुके हैं. ऐसे में देखना होगा कि राजभर अखिलेश का साथ देते हैं या फिर नहीं.

बता दें कि यूपी चुनाव से पहले तमाम बड़े दलों की नजर उन छोटे दलों पर है, जिनकी एक खास समुदाय या फिर क्षेत्र में काफी मजबूत पकड़ है. भले ही ये दल नतीजों में कुछ खास कमाल नहीं कर पाए हों, लेकिन जातीय समीकरण सेट करने के लिए हर पार्टी को इनकी जरूरत है. कांग्रेस, बीजेपी और बीएसपी भी चुनाव से पहले छोटे दलों के साथ गठबंधन की तैयारी कर रहे हैं.

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