advertisement
उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों (UP Elections) को लेकर तमाम दलों ने कमर कसनी शुरू कर दी है. बीजेपी में फेरबदल को लेकर हलचल की खबरों के बीच अब समाजवादी पार्टी ने भी अपनी रणनीति साफ कर दी है. कांग्रेस और बीएसपी के साथ गठबंधन कर हार का सामना करने वाली अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की पार्टी ने अब इन बड़े दलों से पहले ही किनारा कर लिया है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में साफ कर दिया है कि चुनाव 2022 में बड़े दलों के साथ गठबंधन नहीं किया जाएगा, उनकी बजाय इस बार छोटे दलों का साथ लेकर अखिलेश चलने वाले हैं.
अब यूपी में बीजेपी नेतृत्व से नाराजगी की खबरों के बीच अखिलेश यादव के इस ऐलान को लेकर कई मायने निकाले जा रहे हैं. अखिलेश इस बार किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहते हैं. साथ ही वो समाजवादी पार्टी के हिस्से की सीटों को बड़ी पार्टियों के साथ गठबंधन कर बांटना नहीं चाहते हैं. इसीलिए आने वाले विधानसभा चुनाव में अखिलेश अपनी साइकिल में हैवी वेट की जगह छोटे दलों को एडजस्ट करने की कोशिश कर रहे हैं.
अब यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके अखिलेश यादव ने जिन दलों से चुनाव से पहले हाथ मिलाया है, उनमें महान दल का नाम पिछले दिनों भी सामने आया था. जिसके बाद अखिलेश ने खुद इस दल का नाम लिया. दरअसल ये दल मौर्या समाज का प्रतिनिधित्व करता है. साल 2008 में मायावती की पार्टी बीएसपी छोड़ने वाले केशव देव मौर्या ने महान दल का गठन किया था. इस समुदाय के तहत आने वाली जातियों के वोट करीब 6 फीसदी हैं.
महान दल कांग्रेस के साथ गठबंधन कर भी चुनाव लड़ चुका है, हालांकि कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाया. लेकिन वोट शेयर की बात करें तो विधानसभा चुनावों में कई सीटों पर महान दल के उम्मीदवारों ने बेहतर प्रदर्शन किया. बीजेपी में समुदाय का नेतृत्व करने वाले उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या हैं. ऐसे में अखिलेश यादव ने मौर्या समाज के वोटर्स को अपनी तरफ खींचने के लिए महान दल के साथ गठबंधन किया है.
अब यूपी के चुनावी समीकरण में अखिलेश यादव ने चौहान वोट को भी फिट किया है. इसके लिए संजय चौहान की जनवादी पार्टी के साथ भी गठबंधन किया गया है. जिसका खुद अखिलेश ने जिक्र किया. इस पार्टी के साथ चौहान समुदाय के कई बड़े लोग जुड़े हुए हैं और पार्टी दावा करती है कि वो दलित समाज के लोगों के लिए लड़ाई लड़ती आई है. तो इस पार्टी को अपने साथ लेकर चलने से अखिलेश यादव राजपूत वोट बैंक को साधने की तैयारी कर रहे हैं.
अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी का नाम भी लिया है. यानी ये साफ है कि आरएलडी भी समाजवादी पार्टी की साइकिल पर ही सवार होकर चुनावी यात्रा पर निकलने जा रही है. पिछले दिनों हुए उपचुनावों में जब अखिलेश की एसपी ने आरएलडी के लिए बुलंदशहर की सीट छोड़ी थी, तभी से दोनों दलों के बीच के रिश्ते को लेकर अटकलें तेज हो गईं. आरएलडी प्रमुख अजीत सिंह के निधन के बाद जयंत चौधरी को उनकी जगह पार्टी की कमान सौंपी गई थी.
इन दलों के अलावा अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के साथ भी गठबंधन की बात कही थी, लेकिन शिवपाल यादव अपना एक नया गठबंधन बनाने की जुगत में हैं. वहीं ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन की कोशिश भी हो रही है. जो बीजेपी के साथ गठबंधन से साफ इनकार कर चुके हैं. ऐसे में देखना होगा कि राजभर अखिलेश का साथ देते हैं या फिर नहीं.
बता दें कि यूपी चुनाव से पहले तमाम बड़े दलों की नजर उन छोटे दलों पर है, जिनकी एक खास समुदाय या फिर क्षेत्र में काफी मजबूत पकड़ है. भले ही ये दल नतीजों में कुछ खास कमाल नहीं कर पाए हों, लेकिन जातीय समीकरण सेट करने के लिए हर पार्टी को इनकी जरूरत है. कांग्रेस, बीजेपी और बीएसपी भी चुनाव से पहले छोटे दलों के साथ गठबंधन की तैयारी कर रहे हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined