शुक्रवार को अपना दल (सोनेलाल) की प्रमुख अनुप्रिया पटेल ने अमित शाह से मुलाकात की थी. ठीक इसके एक दिन बाद अपना दल की महासचिव पल्लवी पटेल ने अखिलेश यादव से मुलाकात की है. पल्लवी अखिलेश के पास मां कृष्णा पटेल का संदेश लेकर गई थीं.
आखिर ऐसा क्या है कि उत्तरप्रदेश में चुनाव आते ही अपना दल और दिवंगत सोनेलाल पटेल का सियासी परिवार चर्चा में आ जाता है. आखिर इस परिवार की पकड़ किन वोटों पर है, जिनकी तरफ हर पार्टी की नजर होती है. फिर ऐसी क्या कमजोरियां हैं, जो यहां अनुप्रिया पटेल को उनकी मां कृष्णा पटेल से सियासी टकराव के लिए मजबूर होना पड़ जाता है? इन्हीं सारे सवालों के जवाब हम यहां जानेंगे.
अनुप्रिया पटेल और अमित शाह की मुलाकात
अनुप्रिया पटेल और उनकी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) पहले से ही बीजेपी से गठबंधन में हैं. अनुप्रिया मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में मंत्री भी थीं. लेकिन इस बार उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया. मीडिया में ऐसी खबरें थीं कि समाजवादी पार्टी भी अनुप्रिया पटेल को अपनी तरफ मिलाने की कोशिश कर रही थी. ऐसे में अमित शाह और अनुप्रिया पटेल की मुलाकात के जरिए इन चर्चाओं पर विराम लगाने की कोशिश भी है.
वैसे भी उत्तरप्रदेश में कोरोना पर सही प्रबंधन ना करने के चलते बीजेपी लोगों की नाराजगी का सामना कर रही है. ऐसे में पार्टी अपने सहयोगियों के गठबंधन को पुख्ता कर रही है और नए सहयोगियों को जोड़ रही है. अनुप्रिया से शाह की मुलाकात को अपना दल की नाराजगी दूर करने की कवायद के तौर पर भी देख जा रहा है.
बता दें अमित शाह ने योगी आदित्यनाथ से मुलाकात के तुरंत बाद निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद से भी मुलाकात की थी. संजय निषाद ने गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी को मात देकर सनसनी मचा दी थी. गोरखपुर सीट योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद खाली हुई थी.
इस बीच मीडिया रिपोर्टों में यह भी कहा जा रहा है कि बीजेपी ने अपने पुराने सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) को गठबंधन में शामिल होने के लिए न्योता भी भेजा था. हालांकि पार्टी प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी नेताओं के साथ मुलाकात से इंकार किया है.
पल्लवी पटेल की अखिलेश से मुलाकात के मायने
इस बीच अनुराधा की मां कृष्णा पटेल की पार्टी ने अखिलेश यादव से संपर्क साधा है. कृष्णा पटेल की छोटी बेटी और अपना दल की महासचिव पल्लवी पटेल ने अखिलेश यादव से करीब 45 मिनट तक चर्चा की, जिसमें दोनों पार्टियों के गठबंधन को लेकर बात हुई. ऐसे में यह तो साफ हो गया है कि अगले विधानसभा चुनावों में अनुप्रिया समाजवादी पार्टी के साथ तो नहीं जा रही हैं.
अपना दल और सियासी समीकरण
2009 में अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल की मौत के बाद पार्टी की कमान उनकी पत्नी कृष्णा पटेल के हाथ में आई थी. 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने पीस पार्टी जैसी छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा. इस चुनाव में वाराणसी की रोहानिया विधानसभा सीट से अनुप्रिया पटेल पहली बार विधायक बनीं.
2014 में पार्टी ने लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया. फॉर्मूले के तहत अपना दल को प्रतापगढ़ और मिर्जापुर की दो लोकसभा सीटें लड़ने को मिलीं और पार्टी ने दोनों पर जीत दर्ज कर ली. तब पहली बार अपना दल किसी लोकसभा सीट पर जीत दर्ज करने में कामयाब रहा था.
तब सिर्फ 33 साल की अनुप्रिया पटेल पहली बार सांसद बनी थीं. अनुप्रिया इससे पहले नोएडा की एक यूनिवर्सिटी में शिक्षक भी रह चुकी थीं. उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज और कानपुर में छत्रपति साहू जी महाराज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है. अनुप्रिया के पास एमबीए और साइकोलॉजी में मास्टर्स की डिग्री है.
2016 में अनुप्रिया को केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की अहम जिम्मेदारी दे दी गई. अगले तीन साल वे मंत्री रहीं.
मां-बेटी में तकरार
लेकिन अनुप्रिया के लगातार बढ़ते कद से उनकी मां कृष्णा पटेल की परेशानियां बढ़ने लगीं. पार्टी में अनुप्रिया और उनके पति का हस्तक्षेप लगातार बढ़ता जा रहा था. तब कृष्णा पटेल ने अपनी छोटी बेटी पल्लवी पटेल को अपना दल का उपाध्यक्ष बना दिया, जिसका अनुप्रिया ने विरोध किया. मां-बेटी की तकरार इतनी बढ़ती गई कि अनुप्रिया को 2016 में अपना दल (सोनेलाल) नाम से अलग पार्टी बनानी पड़ी.
2019 में बीजेपी ने अपना दल (सोनेलाल) को दो सीटें- मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज लड़ने के लिए दीं. मिर्जापुर से अनुप्रिया पटेल जीतने में कामयाब रहीं, वहीं पार्टी के दूसरी प्रत्याशी पाखुड़ी लाल भी रॉबर्ट्सगंज से विजयी रहे.
अपना दल का वाराणसी-मिर्जापुर-प्रतापगढ़-रॉबर्ट्सगंज क्षेत्र में सीधा प्रभाव है. सोनेलाल पटेल कुर्मी समुदाय के बड़े नेता थे. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक राज्य की कुल पिछड़ा आबादी में करीब 24 फीसदी कुर्मी समुदाय के लोग हैं.
विंध्याचल, बुंदेलखंड और पूर्वांचल के कुछ इलाकों में इनकी राजनीतिक अहमियत बहुत हो जाती है. कुर्मी से ज्यादा पिछड़ा वर्ग में सिर्फ यादवों की आबादी है, जो कुल पिछड़ा आबादी का करीब 40 फीसदी हिस्सा है. यही वजह रही कि कृष्णा पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल को कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव में पीलीभीत और गोंडा की दो सीटें दी थीं.
लेकिन कुर्मी समुदाय के नेताओं का यह भी दावा है कि उनकी संख्या इससे भी ज्यादा है. क्योंकि बहुत सारे समुदाय के लोग वर्मा, पटेल और गंगवार जैसे उपनाम लगाते हैं.
जाहिर है हर पार्टी चाहती है कि यह बड़ा वर्ग उनका समर्थक बने. चूंकि इस वर्ग में अपना दल और सोनेलाल पटेल के परिवार की अच्छी पकड़ है, ऐसे में उत्तरप्रदेश में हर चुनाव में अलग-अलग गठबंधन उन्हें रिझाने की कोशिश करते हैं.
कौन थे सोनेलाल पटेल
वैसे सोनेलाल पटेल विंध्याचल क्षेत्र से नहीं थे, जहां उनके परिवार से संबंधित पार्टियों का मजबूत जनाधार है. उनका जन्म कन्नौज जिले में बगुलिहाल गांव में हुआ था. उन्होंने राजनीति की शुरुआत चौधरी चरण सिंह के साथ अपने युवा दिनों में की थी.
बाद में उन्होंने कांशीराम के साथ लंबे वक्त तक काम किया. सोनेलाल पटेल बहुजन समाज पार्टी के सह-संस्थापक भी थे. लेकिन 1995 में उन्होंने अलग पार्टी- अपना दल का गठन कर लिया था. उन्होंने फूलपुर विधानसभा से 1999 में लोकसभा चुनाव भी लड़ा था. 2009 में उनकी एक कार दुर्घटना में मौत हो गई.
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