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कुशवाहा की ‘खीर’ से बिहार में नई सियासी ‘खिचड़ी’  

एक अनुमान के मुताबिक बिहार में यादव और कुशवाहा जाति का वोट करीब 20 प्रतिशत है.

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केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा
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केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा
(फोटो: Facebook)

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केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने अपने खीर में यदुवंशियों के दूध और कुशवाहा समाज के चावल के बयान को लेकर भले ही सफाई दे दी हो लेकिन इस बयान से बिहार में नई सियासी खिचड़ी पकने लगी है.

कुशवाहा के इस बयान के बाद इस संभावना को बल मिलने लगा है कि आरएलएसपी का राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में सफर पूरा हो गया है.

आरएलएसपी प्रमुख ने शनिवार को पिछड़ों के मसीहा कहे जाने वाले बीपी मंडल के जयंती समारोह में कहा था कि यदुवंशियों का दूध और कुशवंशियों का चावल मिल जाए तो खीर बढ़िया बन सकती है. उन्होंने यह भी कहा था कि खीर बनाने के लिए दूध और चावल ही नहीं, बल्कि (छोटी जाति और दबे-कुचले समाज के लोगों का) पंचमेवा भी चाहिए.

इस बयान में यदुवंशियों का तात्पर्य राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष लालू प्रसाद से निकाला गया. माना जाता है कि बिहार के यादव वोटों पर जितनी पकड़ आज भी लालू प्रसाद की है, उतनी किसी भी यादव नेता की नहीं है.

इस बयान के बाद आरजेडी नेता और लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव के ट्वीट ने उन कयासों को और हवा दे दी, जिसमें कहा जा रहा है कि आरएलएसपी अब एनडीए छोड़कर महागठबंधन में जाने का रास्ता ढूंढ रही है.

(फोटो: PTI)

तेजस्वी ने एक ट्वीट में कहा,

“निसंदेह उपेंद्र जी, स्वादिष्ट और पौष्टिक खीर श्रमशील लोगों की जरूरत है. पंचमेवा के स्वास्थ्यवर्धक गुण न केवल शरीर, बल्कि स्वस्थ समतामूलक समाज के निर्माण में भी ऊर्जा देते हैं. प्रेमभाव से बनाई गई खीर में पौष्टिकता, स्वाद और ऊर्जा की भरपूर मात्रा होती है. यह एक अच्छा व्यंजन है.”

वैसे, कुशवाहा की पार्टी के लिए महागठबंधन के साथ जाना आसान भी नहीं है. बिहार के एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं, "बिहार के गांवों में यह प्राचीन कहावत है कि यादव लोग कोइरी के खेत को चरा देते हैं. इस कारण कुशवाहा का महागठबंधन में जाना जमीनी तौर पर सही नहीं कहा जा सकता."

एक अनुमान के मुताबिक बिहार में यादव और कुशवाहा जाति का वोट करीब 20 प्रतिशत है.

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पटना के वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि चुनावी साल में ऐसे बयान आते रहते हैं और अंतिम समय में कौन कहां जाएगा, यह अभी पूरे दावे के साथ नहीं कहा जा सकता.

उन्होंने कहा,

“कुशवाहा का यह बयान एनडीए पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है. अगर वे ‘तोप’ मांगेंगे तभी ‘बंदूक’ मिलेगी. कुशवाहा ने स्वयं कई मौकों पर महागठबंधन में जाने के समाचारों का खंडन भी किया है. ऐसे में कुशवाहा क्या करेंगे यह लोकसभा के टिकट बंटवारे के समय ही पता चल सकेगा.”

वैसे, कुशवाहा के लिए एनडीए में स्थिति तभी से असहज हुई है जब नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू एनडीए में शामिल हुई है. ऐसे में कुशवाहा दोनों गठबंधनों से समान रूप से नजदीकी और दूरी बनाकर रखे हुए हैं.

यही कारण है कि पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कुशवाहा को जल्द फैसला लेने की नसीहत दी है. मांझी कहते हैं कि कुशवाहा दो नावों पर सवारी कर रहे हैं, ऐसे यात्री को गिरने का खतरा ज्यादा रहता है. उन्होंने कहा कि कुशवाहा को जल्द इस पर फैसला लेना चाहिए.

बहरहाल, कुशवाहा की कोशिश मिठास वाली 'खीर' बनाने की भले हो लेकिन उनकी खीर पर बिहार में सियासी खिचड़ी पकने लगी है.

- IANS से

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