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उत्तराखंड पिछले करीब 1 महीने से लगातार चर्चा में है. यहां बीजेपी के पिछले सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कई फैसले लिए, जिन्हें लेकर उनकी आलोचना होती रही और आखिरकार इन फैसलों ने उनकी कुर्सी तक छीन ली. इसके बाद नए सीएम तीरथ सिंह रावत ने आते ही एक के बाद एक विवादित बयान देने शुरू कर दिए. कुंभ की तैयारियों को लेकर भी उत्तराखंड चर्चाओं में है. लेकिन पिछले एक महीने में बीजेपी और नए सीएम तीरथ सिंह रावत ये साबित करने में जुटे हैं कि पिछले सीएम से गलतियां हो गई थीं, इन 'गलतियों' को सुधारकर जनता का दिल जीतने की कोशिश शुरू हो चुकी है.
अब विधायकों और जनता के विरोध के बाद बीजेपी ने आखिरकार चुनाव से करीब 1 साल पहले मुख्यमंत्री बदलने का एक बड़ा फैसला लिया. त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी जाने का सबसे बड़ा कारण उनके कुछ फैसले बताए गए. जिनमें गैरसैण को मंडल बनाने का ऐलान और राज्य के बड़े तीर्थस्थलों को देवस्थानम बोर्ड में शामिल करने जैसे फैसले शामिल थे.
अब बाकी फैसलों से पहले कुंभ की बात कर लेते हैं. कुंभ शुरू होने से करीब दो महीने पहले ही त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इसके लिए गाइडलाइन जारी की थीं. इनमें बताया गया था कि कुंभ में शामिल होने के लिए लोगों को कोरोना टेस्ट करवाना होगा. साथ ही बाकी पाबंदियां भी लगाई गई थीं. लेकिन तीरथ सिंह रावत ने कुर्सी संभालते ही ऐलान कर दिया कि बिना किसी प्रतिबंध के कुंभ आयोजित करेंगे.
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सीएम रहते हुए राज्य के तमाम बड़े मंदिरों को देवस्थानम बोर्ड के तहत लाने का फैसला किया था. देवस्थानम प्रबंधन संशोधन अधिनियम 2020 के तहत केंद्र सरकार के संस्कृति और पर्यटन विभाग के एक-एक संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी को बोर्ड में नामित करने की बात कही गई. इसमें चार धाम भी शामिल थे.
उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैण को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मंडल घोषित कर दिया था. इस फैसले के बाद कुमाऊं मंडल के लोगों में आक्रोश था और त्रिवेंद्र सिंह रावत का जमकर विरोध हुआ था. क्योंकि कुमाऊं के कुछ हिस्सों को इस मंडल के तहत शामिल कर लिया गया था. कुमाऊं से आने वाले बड़े नेताओं और विधायकों ने भी इसका विरोध किया. अब सीएम बनाए जाने के करीब 1 महीने बाद तीरथ सिंह रावत ने इस फैसले को भी पलट दिया है. कैबिनेट की बैठक में फैसला लिया गया कि गैरसैण को मंडल नहीं बनाया जाएगा और उत्तराखंड में फिलहाल गढ़वाल और कुमाऊं दो मंडल ही होंगें.
तो कुल मिलाकर नए सीएम तीरथ सिंह रावत क्षेत्रीय और बाकी तमाम समीकरणों को ध्यान में रखते हुए फैसले ले रहे हैं. बीजेपी की कोशिश है कि उत्तराखंड में विधानसभा चुनावों से पहले कुछ ऐसा जादू किया जाए, जिससे एंटी इनकंबेंसी के बावजूद सरकार बचाने में मदद मिल सके. साथ ही इन फैसलों से ये बताने की भी पूरी कोशिश हो रही है कि पिछले सीएम ने गलतियां की थीं, जिन्हें अब स्वीकार किया जा रहा है. जनता की मांग पर सीएम बदला गया और अब जिन फैसलों से जनता नाराज थी उन्हें भी बदला जा रहा है. हालांकि बीजेपी और तीरथ सिंह रावत के ये चुनावी पैंतरे लोगों पर कितना असर डाल पाते हैं, ये देखना होगा.
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