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उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के डासना मंदिर (Dasna Mandir) के पुजारी यति नरसिंहानंद (Yati Narsinghanand) को जूना अखाड़ा (Juna Akhara) की ओर से महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई है-जो कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (ABAP) के 13 अखाड़ों में सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली है. इसके कुछ ही दिनों बाद ये खबर आई कि गाजियाबाद पुलिस ने नरसिंहानंद के खिलाफ गुंडा एक्ट लगाने की कार्रवाई शुरू कर दी है.
मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे भाषण देने के लिए जाने जाने वाले नरसिंहानंद ने कई भड़काऊ टिप्पणियां की हैं - इस्लाम के खिलाफ पूरी तरह से युद्ध का आह्वान करने, पैगंबर मुहम्मद की आलोचना करने से लेकर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को "जिहादी" कहने और यहां तक कि साईं बाबा पर हमला करने तक.
'महामंडलेश्वर' विभिन्न दशनामी अखाड़ों की ओर से किसी ऐसे व्यक्ति को सम्मान के रूप में दी जाने वाली उपाधि है, जिसने हिंदू आध्यात्मिकता के उच्चतम स्तर को प्राप्त किया है.
इस व्यवस्था को लेकर अलग-अलग मत हैं. प्रसिद्ध भारतीय समाजशास्त्री जीएस घुर्ये के मुताबिक महामंडलेश्वर 19 वीं शताब्दी के दौरान आम हो गए क्योंकि दशनामी व्यवस्था ने ईसाई मिशनरियों का मुकाबला करने के लिए परमहंस के बीच से ही विद्वान लोगों को उनके स्तर में नियुक्त करने की आवश्यकता महसूस की.
हालांकि महामंडलेश्वर, आचार्य महामंडलेश्वर से अलग होते हैं और उन्हें दीक्षा समारोह करने का अधिकार नहीं होता. लेकिन वो हिंदू समुदाय के अंदर उपदेशक-मार्गदर्शक के तौर पर काम कर सकते हैं.
ये माना जाता है कि आजादी के बाद महामंडलेश्वर की उपाधि देना आम हो गया क्योंकि राजघरानों का प्रभाव खत्म होने के बाद अखाड़ों की कमाई घट गई थी और उन्हें कमाई के लिए नए तरीके अपनाने पड़े.
लेखक और पत्रकार धीरेंद्र के झा ने अपनी किताब Ascetic Games: Sadhus, Akharas and Making of the Hindu Vote के लिए कई हिंदू अखाड़ों का बारीकी से अध्ययन किया है.
क्विंट से बातचीत में झा ने कहा कि “कमाई के अलावा अखाड़े राजनीतिक दबदबा और अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए भी उपाधि प्रदान करते हैं.”
दिलचस्प ये है कि वित्तीय पहलू महामंडलेश्वर व्यवस्था में अंतर्निहित है.
झा लिखते हैं “दशनामी अखाड़ों के लिए महामंडलेश्वर आय के स्थायी स्रोत के तौर पर काम करते हैं. उपाधि पाने के इच्छुक साधु न केवल संबंधित अखाड़े को मोटी राशि देते हैं-जिसका ‘सफेद’ हिस्सा सार्वजनिक किया जाता है, जिसे पुकार कहते हैं- बल्कि उपाधि पाने के लिए उन्हें समय-समय पर अखाड़ों को दान भी देना पड़ता है.”
उदाहरण के तौर पर कुंभ मेला के दौरान उनसे बड़ी मात्रा में दान की उम्मीद की जाती है. झा लिखते हैं
उनका कहना है कि महामंडलेश्वरों के उनकी अपनी आय का एक हिस्सा साल में कम से कम दो बार ‘गुरु दक्षिणा’ के रूप में अखाड़े को दान करने की भी प्रथा है. ये पहलू अन्य की तुलना में ज्यादा खुलेआम है और लोगों को इसकी जानकारी है. हालांकि, अक्सर पैसों के बदले चोरी-छिपे उपाधि देने के आरोप लगते रहते हैं. 2012-13 में जूना अखाड़ा को इसी तरह के एक बड़े विवाद का सामना करना पड़ा था.
यति नरसिंहानंद को अभी महामंडलेश्वर बनाने वाले जूना अखाड़ा ने 2012 में यही उपाधि विवादास्पद महिला धर्मगुरु राधे मां को दी थी.
जूना अखाड़े के एक गुट को इस बात पर आपत्ति नहीं थी कि राधे मां एक महिला है बल्कि उनकी जीवनशैली को लेकर थी जो किसी तरह से साधु संन्यासिन जैसी नहीं थी. झा अपनी किताब में लिखते हैं कि हरिद्वार के एक महामंडलेश्वर यतींद्रानंद गिरी ने उन्हें बताया था कि “राधे मां एक चलती फिरती ब्यूटी पार्लर हैं. उनमें साधु-सन्यासिन वाला गुण जरा भी नहीं है.”
दबाव में जूना अखाड़ा को राधे मां की उपाधि को वापस लेना पड़ा और जांच के लिए एक कमेटी बनानी पड़ी. कहा जाता है कि बाद में 2013 में राधे मां ने अखाड़ा को दिए पैसे वापस मांगे थे जिससे अखाड़ा ने इनकार कर दिया था.
महामंडलेश्वर की उपाधि को लेकर विवादों का सामना करने वाला जूना अखाड़ा इकलौता नहीं है. महानिर्वाणी अखाड़ा ने स्वामी नित्यानंद को उनके खिलाफ कई आरोप होने के बाद भी 2013 में महामंडलेश्वर बनाया था.
ये साफ नहीं है कि नरसिंहानंद को महामंडलेश्वर की उपाधि देने के पीछे पैसे का कोई मामला था या नहीं. ये साफ है कि राधे मां के मामले से अलग, उनकी नियुक्ति के खिलाफ जूना अखाड़े के अंदर किसी तरह का विरोध नहीं हुआ.
हरि गिरि जूना अखाड़ा से जुड़े सबसे ताकतवर लोगों में एक हैं. वो अखाड़ा के ‘अंतरराष्ट्रीय संरक्षक’ और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के सचिव हैं. महंत हरि गिरि का एक और पहलू भी है-वो संघ परिवार के काफी करीबी माने जाते हैं.
राजनीतिक तौर पर, वो अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के प्रमुख स्वर्गीय नरेंद्र गिरि, जिन्होंने इस साल सितंबर में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी, की तुलना में “व्यावहारिक” व्यक्ति के तौर पर जाने जाते हैं.
2019 की शुरुआत में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष के तौर पर नरेंद्र गिरि ने नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधा था और कहा था कि “ उनका अयोध्या में राम मंदिर बनवाने का कोई इरादा नहीं है.”
महंत हरि गिरि ने कहा था कि नरेंद्र गिरि का बयान उनकी “निजी राय” है और आरोप लगाया था कि वो बयान अखाड़ा परिषद के अन्य सदस्यों से सलाह लिए बिना ही जारी किए गए थे. हरि गिरी ने द टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया था कि
हरि गिरि विश्व हिंदू परिषद के करीबी के तौर पर जाने जाते हैं लेकिन राम मंदिर के मसले पर उन्होंने मोदी सरकार को VHP के हमले से बचाया और उनपर “उस डाली को ही काटने का आरोप लगाया जिसपर वो बैठे हैं”.
अच्छे संबंध की जरूरत बहुत अहम है क्योंकि कुंभ मेला के आयोजन में अखाड़ा परिषद को यूपी प्रशासन के समर्थन की जरूरत पड़ती है.
नरसिंहानंद की महामंडलेश्वर बनाए जाने के पीछे के कारणों की समझने की कोशिश में हरि गिरि की राजनीतिक चतुराई को देखना महत्वपूर्ण है. ये दिखाता है कि उन्हें महामंडलेश्वर बनाया जाना दरअसल राजनीतिक कदम है. लेकिन इसके पीछे राजनीतिक समीकरण क्या हैं?
“एक मुसलमान ने यति नरसिंहानंद महाराज पर 150 करोड़ का इनाम रखा है..जूना अखाड़ा, तन-मन-धन उनके साथ समर्पित रहेगा” नरसिंहानंद को महामंडलेश्वर की उपाधि दिए जाने वाले कार्यक्रम के बाद हरि गिरि ने ये बात कही थी.
इसके जवाब में नरसिंहानंद ने ट्वीटर पर लिखा “ परम आदरणीय गुरुदेव श्री हरि गिरि जी महाराज ने जिस धर्मयुद्ध का दायित्व मुझे सौंपा है, मैं उसको अपना बलिदान देकर पूरा करूंगा. हम सनातन के धर्म युद्ध को आपको जीतकर दिखाएंगे और सनातन के शत्रुओं को जड़ से मिटा देंगे.”
ऐसा लगता है कि शुरुआत में नरसिंहानंद को उत्तराखंड के राजनीतिक और धार्मिक परिदृश्य में तैनात किया जाएगा, जहां 2022 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं. नरसिंहानंद को महामंडलेश्वर बनाए जाने के बाद हरि गिरि ने कहा था कि “ कुछ लोग उत्तराखंड को कश्मीर में बदलना चाहते हैं. कुछ लोग बद्रीनाथ का नाम बदलना चाहते हैं. हम उनके नापाक मंसूबों को कामयाब नहीं होने देंगे.”
महंत हरि गिरि नरसिंहानंद को महामंडलेश्वर बनाए जाने के बाद हरि गिरि ने नरसिंहानंद को जूना अखाड़ा के सभी संतों और साधुओं के समर्थन का वादा किया था.
विश्व हिंदू परिषद के एक सूत्र ने क्विंट को बताया कि नरसिंहानंद को महामंडलेश्वर बनाए जाने का जूना अखाड़े का फैसला “ उत्तराखंड खासकर हरिद्वार जिले में मुसलमानों के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने की योजना” को ध्यान में रख कर लिया गया है.
हरिद्वार में मुसलमानों और दलितों की आबादी मिलाकर 50 फीसदी से ज्यादा है जिसके कारण चुनाव के मद्देनजर बीजेपी को उत्तराखंड में यहां मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है.
हालांकि, नरसिंहानंद की अहमियत चुनाव तक ही सीमित नहीं है.
हिंदुवादी संगठनों के अंदर नरसिंहानंद की लोकप्रियता कई कारणों से बढ़ गई है: मुसलमानों के खिलाफ उनका लगातार बयान और सोशल मीडिया पर उनकी लोकप्रियता, बड़ी मुसलमान आबादी वाले डासना में हिंदुत्व के नाम पर पिछड़ी जातियों के लोगों को साथ लाना, साथ आने वालों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग सहित आक्रामक चरित्र का प्रसार और जब जरूरत पड़े तो बीजेपी नेता से भी बेहिचक भिड़ जाना. ये सभी पहलू उन्हें कट्टर हिंदुत्वादी संगठनों के आधार का विस्तार करने और केंद्र में बीजेपी सरकार के साथ-साथ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में अपनी सौदेबाजी की शक्ति बढ़ाने के लिए एक अच्छा उम्मीदवार बनाते हैं.
हालांकि, महामंडलेश्वर बनाए जाने और जूना अखाड़े का समर्थन पाकर नरसिंहानंद ने अपनी चारों ओर सुरक्षा की एक और दीवार खड़ी कर ली है. उनकी ये सुरक्षा सांकेतिक है और इसकी कोई कानूनी मान्यता नहीं है लेकिन जूना अखाड़े का समर्थन होने के कारण योगी सरकार के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई करना राजनीतिक रूप से मुश्किल हो जाएगा.
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