advertisement
24 अगस्त को उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) शासन की ओर से एक नोटिस जारी होता है जिसमें लिखा होता है कि जेल मैन्युअल में अच्छे व्यवहार के चलते अमरमणि त्रिपाठी (Amar Mani Triphati) को रिहा किया जाता है. अमरमणि त्रिपाठी एक हत्याकांड के दोषी थे और उम्रकैद की सजा काट रहे थे.
यह पहला मामला नहीं है, जब हत्या और रेप जैसे गंभीर और जघन्य अपराधों में दोषियों की सजा पूरी होने से पहले ही रिहाई हुई है. गुजरात में बिलकिस बानो (Bilkis Bano) के रेप के दोषियों से लेकर बिहार में IAS जी. कृष्णैया की हत्या के दोषियों तक की प्रीमेच्योर रिहाई हुई है. इस आर्टिकल में हम उन तमाम मामलों के बारे में बताएंगे, जिसमें दोषियों की रिहाई ने राज्य सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं.
बीजेपी की राजनाथ सिंह सरकार में मंत्री रहे अमरमणि त्रिपाठी की एक समय शासन से लेकर प्रशासन तक तूती बोलती थी. लेकिन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की कवयित्री मधुमिता शुक्ला (26) के हत्याकांड ने अमरमणि के राजनीतिक सफर को अर्श पर से फर्श पर ला दिया.
पिछले महीने 24 अगस्त यूपी की योगी सरकार ने अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई का आदेश जारी कर दिया, जिसके बाद 25 अगस्त को उम्रकैद की सजा काट रहे त्रिपाठी गोरखपुर जेल से बाहर आ गए.
अब मधुमिता की बहन निधि शुक्ला ने यूपी सरकार के रिहाई के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
रिहाई आदेश में लिखा है कि, राज्यपाल आर्टिकल 161 के अधीन अमरमणि त्रिपाठी के अच्छे जेल आचरण के चलते रिहा करने का आदेश देते हैं. अमरमणि त्रिपाठी ने 2013 में भी राज्यपाल के पास सजा माफी के लिए याचिका दायर की थी, लेकिन तब याचिका खारिज कर दी गई थी.
बिहार कैडर के IAS अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह को बीते 27 अप्रैल 2023 को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया. आनंद मोहन को 14 साल सजा काटने के बाद बिहार सरकार के आदेश पर रिहा किया गया.
साल 1994 में कृष्णैया गोपालगंज के डीएम थे. 5 दिसंबर 1994 को मुजफ्फरपुर में कृष्णैया की भीड़ ने पीट पीट कर हत्या कर दी गई थी. आनंद मोहन पर कथित रूप से भीड़ को हमले के लिए उकसाने के आरोप लगे थे. हत्याकांड के 12 साल बाद 2007 में आनंद मोहन को निचली अदालत ने कृष्णैया की हत्या का दोषी मानते हुए मौत की सजा सुनाई. लेकिन पटना हाईकोर्ट ने 2008 में सजा को उम्रकैद में बदल दिया था.
बिहार की नीतीश सरकार ने जेल अधिनियम में बदलाव करके आनंद मोहन समेत 26 कैदियों को रिहा कर दिया था. बीते 10 अप्रैल को बिहार के गृह विभाग की ओर जारी एक अधिसूचना जारी किया था. अधिसूचना में लिखा था कि 'काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या' को बिहार जेल मैनुअल 2012 के सेक्शन 481(i)(a) से हटाया जाता है. वही 2012 में बिहार के जेल मैनुअल के सेक्शन 481(i)(a) में बलात्कार और कत्ल जैसे जघन्य अपराधों के साथ-साथ 'काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या' भी शामिल था. आसान शब्दों में समझें तो 10 अप्रैल 2023 से पहले दोषियों की रिहाई का कोई प्रावधान नहीं था लेकिन 10 अप्रैल को बिहार सरकार ने इसमें रिहाई का संशोधन कर दिया.
आनंद मोहन की रिहाई को चुनौती देने के लिए दिवंगत अधिकारी कृष्णैया की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. इसके अलावा पटना हाईकोर्ट में भी आनंद मोहन की रिहाई को चुनौती देते हुई एक जनहित याचिका दायर है.
15 अगस्त 2022 को बिलकिस बानो के रेप और उनके परिवार के सात लोगों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया. बिलकिस के मामले में दोषियों की रिहाई के लिए सरकार ने एक समिति बनाई थी, समिति ने सर्वसम्मति से रिहाई का फैसला लिया.
समिति ने गुजरात सरकार की 1992 की सजा माफी नीति को आधार बनाकर रेप और हत्या जैसे गंभीर अपराध के दोषियों की रिहाई का फैसला लिया. रेप और हत्या जैसे जघन्य अपराध के दोषियों की रिहाई के बाद कुछ कथाकथित संगठनों द्वारा दोषियों का सम्मान और स्वागत समारोह भी किया गया.
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में गुजरात सरकार ने सजा माफी नीति को लेकर एक नई गाइडलाइन बनाई थी जिसमें कई श्रेणी के अपराधियों जैसे बलात्कार और हत्या के दोषियों की रिहाई पर रोक के प्रावधान थे.
अब सवाल उठता है कि बिलकिस बानो के मामले में आखिर 2014 की नई सजा माफी नीति के बजाए 1992 की पुरानी सजा माफी नीति को क्यों आधार बनाया गया? नई सजा माफी नीति के तहत बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई नहीं हो सकती. फिलहाल यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है.
कानून के जानकार प्रोफेसर फैजान मुस्तफा क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहते है कि," संविधान का आर्टिकल 161 किसी भी प्रदेश के राज्यपाल को कोई भी मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति की सजा माफ करने, राहत या छूट देने की अनुमति देता है".
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में कानून विभाग के प्रोफेसर इशरत ने क्विंट हिंदी से बताया कि,
प्रोफेसर इशरत कहते हैं कि," कई बड़े मामलों में हाल ही में प्री मैच्योर रिलीज हुई है अगर इनमें बारीकी से देखें तो इन मामलों में कहीं न कहीं दोषियों को जेल से रिहा करने के लिए नियमों का पालन नहीं किया गया या कह ले कि इन नियमों को तोड़ा मरोड़ा गया है".
सुप्रीम कोर्ट के वकील शाहिद अली क्विंट हिंदी से बताते हैं कि," कोर्ट किसी भी गंभीर मामले में सबूतों की जांच करने के बाद ही अपना फैसला सुनाता है या किसी आरोपी को दोषी करार देता है, ऐसे में गंभीर मामले के दोषी को प्री मैच्योर रिलीज करने का क्या औचित्य है, हालांकि आर्टिकल 161 में दोषी की रिहाई या सजा माफी का प्रावधान है. बिलकिस बानो से लेकर अमरमणि त्रिपाठी के मामलों में रिहाई राजनीति से प्रेरित है, आर्टिकल 161 का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ लेने के लिए हो रहा".
सिद्धार्थ कहते है कि, यह पूरा मामला राजनीति से प्रेरित है, पूर्वांचल के कई जिलों में ब्राह्मण बीजेपी से नाराज हैं आने वाले लोकसभा चुनाव में नुकसान होता दिख रहे हैं, राजनीतिक फायदे हासिल करने के लिए अमरमणि की रिहाई हुई है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 1 अगस्त 2018 को यूपी में प्री मैच्योर रिलीज की नई पॉलिसी लागू की गई. नई पॉलिसी के मुताबिक प्री मैच्योर रिलीज के लिए दोषी को कैद में 16 साल बिताना जरूरी है. हालांकि 28 जुलाई 2021 को यूपी सरकार ने पॉलिसी में बदलाव कर दिया. बदलाव के बाद बनें नियम के मुताबिक सिर्फ उन कैदियों को समय से पहले जेल से रिहा किया जाएगा जिनकी उम्र 60 साल या ज्यादा हो और 16 साल जेल में बिता लिए हो.
सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2022 को यूपी की एक प्री मैच्योर रिहाई के मामले में सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया कि यूपी सरकार अपनी 'स्टैंडर्ड पॉलिसी' के अंतर्गत समय से पहले रिहाई कर सकती है. लेकिन इसके लिए एक अथॉरिटी बने जो यह देखे कि सजा काट रहे दोषी को प्री-मैच्योर रिलीज का लाभ दिया जा सकता है या नहीं. इसके अलावा यह भी देखा जाए कि राज्य सरकार कौन से मामले में यह छूट दे रही है और इसमें प्रक्रिया का पालन किया जा रहा है या नहीं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined