मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019बिलकिस बानो से लेकर मधुमिता शुक्ला तक, क्यों की गई दोषियों की समय पूर्व रिहाई?

बिलकिस बानो से लेकर मधुमिता शुक्ला तक, क्यों की गई दोषियों की समय पूर्व रिहाई?

पिछले महीने उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर अमरमणि त्रिपाठी को जेल से रिहा कर दिया गया था.

आकिल हुसैन
न्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>हाल ही में&nbsp;अमरमणि त्रिपाठी की जेल से रिहाई हुई है.</p></div>
i

हाल ही में अमरमणि त्रिपाठी की जेल से रिहाई हुई है.

(फोटो:क्विंट हिंदी)

advertisement

24 अगस्त को उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) शासन की ओर से एक नोटिस जारी होता है जिसमें लिखा होता है कि जेल मैन्युअल में अच्छे व्यवहार के चलते अमरमणि त्रिपाठी (Amar Mani Triphati) को रिहा किया जाता है. अमरमणि त्रिपाठी एक हत्याकांड के दोषी थे और उम्रकैद की सजा काट रहे थे.

यह पहला मामला नहीं है, जब हत्या और रेप जैसे गंभीर और जघन्य अपराधों में दोषियों की सजा पूरी होने से पहले ही रिहाई हुई है. गुजरात में बिलकिस बानो (Bilkis Bano) के रेप के दोषियों से लेकर बिहार में IAS जी. कृष्णैया की हत्या के दोषियों तक की प्रीमेच्योर रिहाई हुई है. इस आर्टिकल में हम उन तमाम मामलों के बारे में बताएंगे, जिसमें दोषियों की रिहाई ने राज्य सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं.

1- मधुमिता हत्याकांड: अमरमणि त्रिपाठी उम्रकैद की सजा

बीजेपी की राजनाथ सिंह सरकार में मंत्री रहे अमरमणि त्रिपाठी की एक समय शासन से लेकर प्रशासन तक तूती बोलती थी. लेकिन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की कवयित्री मधुमिता शुक्ला (26) के हत्याकांड ने अमरमणि के राजनीतिक सफर को अर्श पर से फर्श पर ला दिया.

9 मई, 2003 को हुए मधुमिता हत्याकांड से अमरमणि त्रिपाठी की सियासी चमक न सिर्फ फीकी पड़ गई बल्कि CBI ने हत्या के आरोप में त्रिपाठी को सितंबर 2003 में गिरफ्तार कर लिया और फिर 24 अक्टूबर 2007 को देहरादून की एक अदालत ने अमरमणि समेत पांच आरोपियों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी.

पिछले महीने 24 अगस्त यूपी की योगी सरकार ने अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई का आदेश जारी कर दिया, जिसके बाद 25 अगस्त को उम्रकैद की सजा काट रहे त्रिपाठी गोरखपुर जेल से बाहर आ गए.

अब मधुमिता की बहन निधि शुक्ला ने यूपी सरकार के रिहाई के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी अमरमणि त्रिपाठी का रिहाई आदेश.

(फोटो:क्विंट हिंदी)

रिहाई आदेश में लिखा है कि, राज्यपाल आर्टिकल 161 के अधीन अमरमणि त्रिपाठी के अच्छे जेल आचरण के चलते रिहा करने का आदेश देते हैं. अमरमणि त्रिपाठी ने 2013 में भी राज्यपाल के पास सजा माफी के लिए याचिका दायर की थी, लेकिन तब याचिका खारिज कर दी गई थी.

2- IAS जी कृष्णैया हत्याकांड: आनंद मोहन सिंह की सजा 

बिहार कैडर के IAS अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह को बीते 27 अप्रैल 2023 को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया. आनंद मोहन को 14 साल सजा काटने के बाद बिहार सरकार के आदेश पर रिहा किया गया.

साल 1994 में कृष्णैया गोपालगंज के डीएम थे. 5 दिसंबर 1994 को मुजफ्फरपुर में कृष्णैया की भीड़ ने पीट पीट कर हत्या कर दी गई थी. आनंद मोहन पर कथित रूप से भीड़ को हमले के लिए उकसाने के आरोप लगे थे. हत्याकांड के 12 साल बाद 2007 में आनंद मोहन को निचली अदालत ने कृष्णैया की हत्या का दोषी मानते हुए मौत की सजा सुनाई. लेकिन पटना हाईकोर्ट ने 2008 में सजा को उम्रकैद में बदल दिया था.

बिहार सरकार द्वारा किया गया जेल मैनुअल 2012 का आदेश.

(फोटो:क्विंट हिंदी)

बिहार की नीतीश सरकार ने जेल अधिनियम में बदलाव करके आनंद मोहन समेत 26 कैदियों को रिहा कर दिया था. बीते 10 अप्रैल को बिहार के गृह विभाग की ओर जारी एक अधिसूचना जारी किया था. अधिसूचना में लिखा था कि 'काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या' को बिहार जेल मैनुअल 2012 के सेक्शन 481(i)(a) से हटाया जाता है. वही 2012 में बिहार के जेल मैनुअल के सेक्शन 481(i)(a) में बलात्कार और कत्ल जैसे जघन्य अपराधों के साथ-साथ 'काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या' भी शामिल था. आसान शब्दों में समझें तो 10 अप्रैल 2023  से पहले दोषियों की रिहाई का कोई प्रावधान नहीं था लेकिन 10 अप्रैल को बिहार सरकार ने इसमें रिहाई का संशोधन कर दिया.

आनंद मोहन की रिहाई को चुनौती देने के लिए दिवंगत अधिकारी कृष्णैया की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. इसके अलावा पटना हाईकोर्ट में भी आनंद मोहन की रिहाई को चुनौती देते हुई एक जनहित याचिका दायर है.

3- बिलकिस बानो मामला: 11 दोषियों को सजा 

15 अगस्त 2022 को बिलकिस बानो के रेप और उनके परिवार के सात लोगों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया. बिलकिस के मामले में दोषियों की रिहाई के लिए सरकार ने एक समिति बनाई थी, समिति ने सर्वसम्मति से रिहाई का फैसला लिया.

समिति ने गुजरात सरकार की 1992 की सजा माफी नीति को आधार बनाकर रेप और हत्या जैसे गंभीर अपराध के दोषियों की रिहाई का फैसला लिया. रेप और हत्या जैसे जघन्य अपराध के दोषियों की रिहाई के बाद कुछ कथाकथित संगठनों द्वारा दोषियों का सम्मान और स्वागत समारोह भी किया गया.

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में गुजरात सरकार ने सजा माफी नीति को लेकर एक नई गाइडलाइन बनाई थी जिसमें कई श्रेणी के अपराधियों जैसे बलात्कार और हत्या के दोषियों की रिहाई पर रोक के प्रावधान थे.

अब सवाल उठता है कि बिलकिस बानो के मामले में आखिर 2014 की नई सजा माफी नीति के बजाए 1992 की पुरानी सजा माफी नीति को क्यों आधार बनाया गया? नई सजा माफी नीति के तहत बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई नहीं हो सकती. फिलहाल यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

प्री मैच्योर रिहाई पर क्या कहते हैं लॉ एक्सपर्ट?

कानून के जानकार प्रोफेसर फैजान मुस्तफा क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहते है कि," संविधान का आर्टिकल 161 किसी भी प्रदेश के राज्यपाल को कोई भी मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति की सजा माफ करने, राहत या छूट देने की अनुमति देता है".

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में कानून विभाग के प्रोफेसर इशरत ने क्विंट हिंदी से बताया कि,

प्री मैच्योर रिहाई का प्रोविजन है. कई सारे सीआरपीसी में भी प्री मेच्योर रिलीज हैं. कानूनी तौर पर किसी भी मामले के दोषियों को माफ करने या सजा में छूट दी जा सकती है. प्री मैच्योर रिलीज में सबसे ज्यादा यह देखने की जरूरत होती है कि किसी भी दोषी को प्री मैच्योर रिलीज देते समय नियमों का पालन किया गया है या नहीं.
प्रोफेसर इशरत, कानून विभाग , अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी

प्रोफेसर इशरत कहते हैं कि," कई बड़े मामलों में हाल ही में प्री मैच्योर रिलीज हुई है अगर इनमें बारीकी से देखें तो इन मामलों में कहीं न कहीं दोषियों को जेल से रिहा करने के लिए नियमों का पालन नहीं किया गया या कह ले कि इन नियमों को तोड़ा मरोड़ा गया है".

सुप्रीम कोर्ट के वकील शाहिद अली क्विंट हिंदी से बताते हैं कि," कोर्ट किसी भी गंभीर मामले में सबूतों की जांच करने के बाद ही अपना फैसला सुनाता है या किसी आरोपी को दोषी करार देता है, ऐसे में गंभीर मामले के दोषी को प्री मैच्योर रिलीज करने का क्या औचित्य है, हालांकि आर्टिकल 161 में दोषी की रिहाई या सजा माफी का प्रावधान है. बिलकिस बानो से लेकर अमरमणि त्रिपाठी के मामलों में रिहाई राजनीति से प्रेरित है, आर्टिकल 161 का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ लेने के लिए हो रहा".

प्री मैच्योर रिहाई के क्या हैं राजनीतिक मायने?

राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस क्विंट हिंदी से बताते हैं कि,
प्री मैच्योर रिहाई के जितने भी मामले सामने आए है वो सब राजनीति से प्रेरित है चाहे बिलकिस बानो का वो मामला हो या अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई का मामला हो. अगर अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई पर बात करे तो अमरमणि को सरकार ने जेल में अच्छे आचरण के चलते रिहा किया है जबकि अमरमणि गंभीर मामलों में पेशावर अपराधी है, मधुमिता की हत्या के अलावा भी उसके ऊपर कई गंभीर मामले दर्ज हैं. ऐसे में सरकार का यह कहकर जेल से रिहा करना कि उसके आचरण जेल में अच्छे थे, यह समझ के परे है.
सिद्धार्थ कलहंस, राजनीतिक विश्लेषक

सिद्धार्थ कहते है कि, यह पूरा मामला राजनीति से प्रेरित है, पूर्वांचल के कई जिलों में ब्राह्मण बीजेपी से नाराज हैं आने वाले लोकसभा चुनाव में नुकसान होता दिख रहे हैं, राजनीतिक फायदे हासिल करने के लिए अमरमणि की रिहाई हुई है.

क्या है उत्तर प्रदेश में प्री मैच्योर रिलीज की पॉलिसी?

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 1 अगस्त 2018 को यूपी में प्री मैच्योर रिलीज की नई पॉलिसी लागू की गई. नई पॉलिसी के मुताबिक प्री मैच्योर रिलीज के लिए दोषी को कैद में 16 साल बिताना जरूरी है. हालांकि 28 जुलाई 2021 को यूपी सरकार ने पॉलिसी में बदलाव कर दिया. बदलाव के बाद बनें नियम के मुताबिक सिर्फ उन कैदियों को समय से पहले जेल से रिहा किया जाएगा जिनकी उम्र 60 साल या ज्यादा हो और 16 साल जेल में बिता लिए हो.

प्री मैच्योर रिलीज पर क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट?

सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2022 को यूपी की एक प्री मैच्योर रिहाई के मामले में सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया कि यूपी सरकार अपनी 'स्टैंडर्ड पॉलिसी' के अंतर्गत समय से पहले रिहाई कर सकती है. लेकिन इसके लिए एक अथॉरिटी बने जो यह देखे कि सजा काट रहे दोषी को प्री-मैच्योर रिलीज का लाभ दिया जा सकता है या नहीं. इसके अलावा यह भी देखा जाए कि राज्य सरकार कौन से मामले में यह छूट दे रही है और इसमें प्रक्रिया का पालन किया जा रहा है या नहीं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT