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पेंशन नाकाफी: बुजुर्ग-विधवा और दिव्यांगों को क्या चाहिए? ग्राउंड रिपोर्ट

क्या सरकारी योजनाओं से मिलने वाले पैसे से आज के महंगाई के दौर में घर का खर्च चलाया जा सकता है?

परवेज खान
राज्य
Published:
<div class="paragraphs"><p>हरियाणा: ₹2500 की पेंशन से नहीं चल पा रहा बुजुर्गों-दिव्यांगों का घर</p></div>
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हरियाणा: ₹2500 की पेंशन से नहीं चल पा रहा बुजुर्गों-दिव्यांगों का घर

(फोटो: परवेज खान)

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पिछले कुछ समय से देश में रेवड़ी कल्चर पर बहस छिड़ी हुई है. सरकारी जन कल्याण योजनाओं और जनता को मुफ्त की चीजें बांटने को एक पार्टी 'रेवड़ कल्चर' कहती है, तो दूसरी का कहना है कि जनता के कल्याण के लिए ये योजनाएं जरूरी हैं. देश की अलग-अलग राज्य सरकार इस तरह की कई योजनाएं चलाती हैं, जिसमें से एक है पेंशन स्कीम.

हरियाणा में राज्य सरकार बुजुर्गों, दिव्यांगों और विधवाओं को पेंशन देती है. तो क्या ये पेंशन स्कीम भी 'रेवड़ी कल्चर' का हिस्सा है? क्या इस पेंशन से इन लोगों का गुजारा हो रहा है या इन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए सरकार को और कदम उठाने की जरूरत है? क्विंट हिंदी ने हरियाणा में कुछ लोगों से बात कर जानना चाहा कि सरकार से उनकी क्या आकांक्षाएं हैं? क्या वो सरकारी पेंशन से खुश हैं, या वो सरकार से रोजगार के अवसर चाहते हैं?

बुजुर्ग पेंशन बुढ़ापे का कितना बड़ा सहारा?

हरियाणा के रेवाड़ी जिले की रहने वाली कुसुम लता, जिनकी उम्र 65 साल है, लंबे समय से पेंशनभोगी हैं. जब कभी भी पेंशन देरी से या एक महीने लेट आती है, तो उनकी जरूरतें अधूरी रह जाती हैं.

उन्होंने क्विंट हिंदी से बातचीत में बताया, "आज के मुश्किल दौर में बेटों ने खर्च देना छोड़ दिया है. पेट भरने या बीमारी के खर्च के लिए सरकार ही सहारा है. लेकिन सिर्फ 2500 रुपये में जीवन यापन नहीं होता. एक तो महंगाई की मार, ऊपर से बीमार हो गए तो महीने की पेंशन 1 दिन में साफ हो जाती है."

कुसुम लता, रेवाड़ी, पेंशनभोगी

(फोटो: परवेज खान)

'सरकार को काम का इंतजाम करना चाहिए'

सिरसा जिले के रहने वाले रोशनलाल कहते हैं कि सरकार हमें जो पेंशन देती है वो ठीक है. मगर उतने पैसे से खर्च नहीं चलता. वो चाहते हैं कि सरकार को ऐसे लोगों के लिए काम की व्यवस्थ्या करनी चाहिए, ताकि वो खुद कमाने के समर्थ हो सकें.

"हालांकि, मेरी उम्र 72 साल है और मैं काम करने में भी समर्थ हूं. ऐसे में सरकार को बुजुर्गों के लिए कुछ छोटे-मोटे काम की व्यवस्था करनी चाहिए. ताकि हम सरकार के सहारे भी न रहे और हमें काम के बदले पैसे मिल जाएं, ताकि हम खुद्दारी की जिंदगी जीएं."
72 साल के रोशन लाल

रोशनलाल, सिरसा, पेंशनभोगी

(फोटो: परवेज खान)

विधवा पेंशन मिली तो रही, लेकिन बेहद कम

हरियाणा में सिर्फ बुढ़ापा पेंशन नहीं, बल्कि विधवा पेंशन भी दी जाती है. ये उन महिलाओं को मिलती है, जिनकी सालाना आय 2 लाख से कम है. उन्हे सरकार की तरफ से हर महीने 2500 रुपये दिए जाते हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या महज ढाई हजार में महिला अपना खर्च उठा सकती है. ये तो सिर्फ ऊंट के मुंह में जीरा समान है. जिस महिला के सिर से उसके पति का साया उठ चुका है, रोजी रोटी कमाने वाला नहीं रहा है, वो महज 2500 रुपये में कैसे घर चलाएगी?

रेवाड़ी जिले की रहने वाली अनवरी बताती हैं, "मुझे सरकार विधवा पेंशन के तौर पर ढाई हजार रुपये देती है. ऐसे में मेरे दो बच्चे हैं. हरियाणा सरकार जो आर्थिक मदद कर रही है, उससे घर नहीं चलता. मैं बेबस हूं कि छोटे बच्चों को छोड़कर घर से बाहर कमाने भी नहीं जा सकती. ऐसे में मुझे दूसरों के हाथ की तरफ देखना पड़ता है."

कृष्णा देवी क्विंटी हिंदी से बातचीत करते हुए बेहद भावुक हो गई. वो कहती हैं, "विधवा बनकर सरकार से पेंशन कौन लेना चाहेगा. लेकिन मेरी मजबूरी है कि पेट भरने के लिए जो भी मिले, सही है. मगर सच ये भी है कि सरकार को विधवा पेंशन 10 हजार रुपये करनी चाहिए, क्योंकि सरकार गुणगान ज्यादा करती है और पैसे कम देती है."

कृष्णा देवी, विधवा, पेंशनभोगी

(फोटो: परवेज खान)

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दिव्यांगों को जितना मिलना चाहिए, क्या उतना मिल रहा है?

हरियाणा सरकार ने दिव्यांगों के लिए सरकारी नौकरी में भी आरक्षण दिया है, ताकि वो भी बराबरी का अधिकार पा सकें. बहुत से दिव्यांग सरकारी नौकरी में सेवाएं दे रहे हैं. लेकिन हर किसी को सरकारी नौकरी भी नहीं मिल सकती. ऐसे में बहुत से दिव्यांग सरकार पर निर्भर हैं. दिव्यांगता के दस्तावेज सरकारी दफ्तरों में जमा कराकर दिव्यांग सरकार के आर्थिक मदद ले सकते हैं और ले भी रहे हैं. उन्हें सरकार की तरफ से 2500 रुपये प्रति माह दिए जाते हैं, जो साल में 30 हजार रुपये बनता है.

क्या इन पैसे से दिव्यांगों की जिंदगी बेहतर हो जाती है? जवाब न ही होगा. 42 साल के हुकुम सिंह कहते हैं, "दिव्यांग की जिंदगी क्या होती, इसे सिर्फ मैं ही जानता हूं. एक तरफ शरीर से लाचार, तो दूसरी तरफ घर का बोझ. सरकार जो आथिक मदद करती है, सिर्फ उससे घर नहीं चलता. सड़क किनारे कुछ सामान रखू लूं, तो मुझे घंटों-घटों हाथ के सहारे चलना पड़ता है. ऐसे में मैं करूं तो क्या? इस हालत में मुझे सरकार की तरफ देखना पड़ता है. लेकिन सरकार जो मदद करती है, उससे मेरा सामजिक जीवन बेहतर नहीं हो पाता."

हुकुम सिंह, दिव्यांग, पेंशनभोगी

(फोटो: परवेज खान)

"मेरा फैमिली बैकग्राउंड दिल्ली से है. लेकिन मैं लंबे समय से करनाल में रह रहा हूं. मुझे सरकार की तरफ से पेंशन मिलती है, लेकिन वो नाकाफी है, क्योंकि इतनी कम पेंशन में गुजारा नहीं होता. मेरी बाईं टांग के अब तक 12 ऑपरेशन हो चुके हैं. मुझे कोई सरकारी मदद नहीं मिली है. 2500 रुपये में तो इंसान अपना पेट भी नहीं भर सकता. इन 2500 रुपये में से 2 हजार रुपये तो कमरे के किराए के चले जाते हैं. मैं कैसे जिंदगी गुजर बसर कर रहा हूं, ये बस मैं ही जानता हूं. मेरी छोटी बच्ची का क्या भविष्य होगा, इसको सोचकर रोना आता है."
भुवनेश्वर कुमार

भुवनेश्वर कुमार, दिव्यांग, पेंशनभोगी

(फोटो: परवेज खान)

किसान सम्मान निधि किसानों से भद्दा मजाक!

केंद्र की योजनाएं सीधे किसानों तक पहुंच रही हैं, लेकिन इन योजनाओं से किसान अभी तक खुशहाल नहीं हुआ है. पीएम मोदी 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का वादा करते रहे, लेकिन किसानों को पूरा मुआवजा तक नहीं मिल पा रहा. केंद्र सरकार की किसान सम्मान निधि योजना का बड़ा नाम है. सरकार किसानों को 4 महीने के भीतर महज 2 हजार रुपये ही देती है. इस तरह साल के 6 हजार और प्रति माह 500 रुपये बनते हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या सरकार वाकई किसानों का भला चाहती है? क्या सरकार किसानों के साथ न्याय कर रही है?

यमुनानगर जिले के रहने वाले किसान संजू गुंदियाना बताते हैं, "इस योजना के साथ हम भी जुड़े हैं. लेकिन आज के दौर में रिकॉर्डतोड़ महंगाई ने किसान की कमर तोड़ दी है. खाद बीज के दाम लगातार बढ़ रहे हैं और केंद्र सरकार 6 हजार रुपये सालाना देकर अपनी ही पीठ थपथपा रही है, और किसानों के साथ किसान सम्मान निधि का पैसा देकर भद्दा मजाक कर रही है."

संजू गुंदियाना, किसान, पेंशनभोगी

(फोटो: परवेज खान)

फतेहाबाद जिले के रहने वाले अनिल कुमार कहते हैं, "मेरे खाते में किसान सम्मान निधि का शुरू से पैसा आ रहा है. लेकिन ये बस कहने तक ही सीमित है. सरकार जो किश्त किसानों को दे रही है, वो बस सम्मान तक ही सीमित है. इन पैसों से किसानी नहीं हो सकती. डीजल के दाम बढ़ रहे हैं. इन ‘सम्मान’ से बस किसान सालाना खेत जोत सकता है, बाकी कुछ नहीं."

अनिल कुमार, किसान, पेंशनभोगी

(फोटो: परवेज खान)

हरियाणा सरकार ने हाल ही में 2023-24 का बजट पेश किया है, जिसमें बुजुर्ग, विधवा और दिव्यांग पेंशन में 250 रुपये का इजाफा किया है. मनोहर लाल खट्टर के इस कदम की पूरी पार्टी जमकर सराहना कर रही है और वाहावाही लूटने की कोशिश की जा रही है कि सरकार हर बेसहारा और जरूरतमंद के साथ खड़ी है. लेकिन सच्चाई ये है कि इन पैसों से किसी भी व्यक्ति का न तो सामाजिक उत्थान हो सकता है और न ही जरूरतें पूरी. ऐसे में सरकार को जरूरत है ज्यादा से ज्यादा रोजगार मुहैया कराने की, हर वर्ग के हिसाब से उन्हें काम दिलाने की, ताकि उसे किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े."

लोक लुभावने वादों पर वोट करती है जनता?

चुनाव नजदीक आते है पार्टियां जनता के बीच आकर लंबे-चौड़े वादे करती हैं. कभी-कभी ये वादे न सिर्फ वोट बटोरते हैं, बल्कि सत्ता की चाबी भी बन जाते हैं. हरियाणा सरकार में सहयोगी जननायक जनता पार्टी ने साल 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले बुजुर्गों की पेंशन 5100 रुपये करने का वादा किया था, और ये अभी तक वादा ही है. अब कांग्रेस ने भी जेजेपी से बड़ा सपना बुजुर्गों को दिखाया है.

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने ऐलान किया है कि अगर हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनी, तो हर बुजुर्ग के खाते में 6 हजार रुपये प्रति माह आएंगे. इधर, हिमाचल में OPS के वादे को कांग्रेस ने पूरा कर दिया है और उसे लागू भी. हिमाचल के साथ लगते हरियाणा की कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को हाथों-हाथ लपक लिया और अब कांग्रेस बुजुर्गों के साथ-साथ रिटायर कर्मचारियों को रिझाने में जुट गई है. कांग्रेस का कहना है कि 2024 में सत्ता संभालते ही पहली कलम से OPS बहाल की जाएगी. जनता मझधार में है कि क्या किया जाए. सरकार को कुछ नया करने पर विवश किया जाए या फिर सरकार जो आर्थिक भत्ते दे रही है, उन्हें लपका जाए!

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