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महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन: भूख हड़ताल का ऐलान करने वाले मनोज जरांगे कौन हैं?

Maratha Andolan: शिंदे सरकार ने आंदोलनकारियों से थोड़ा और समय मांगा और उन्हें धैर्य रखने को कहा है.

क्विंट हिंदी
राज्य
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<div class="paragraphs"><p>महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन: भूख हड़ताल का ऐलान करने वाले मनोज जरांगे कौन हैं? </p></div>
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महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन: भूख हड़ताल का ऐलान करने वाले मनोज जरांगे कौन हैं?

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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महाराष्ट्र (Maharashtra) में मराठा आरक्षण (Maratha Reservation) की मांग को लेकर एक बार फिर से आंदोलन की शुरूआत होने जा रही है. एक्टिविस्ट मनोज जरांगे पाटील ने 24 अक्टूबर तक मांगों को पूरा करने का अल्टीमेटम दिया था, अल्टीमेटम का समय खत्म होने पर पाटील ने फिर से भूख हड़ताल पर बैठने का ऐलान किया है. उन्होंने कहा कि 41 दिन बाद भी सरकार ने उनकी मांगों पर कोई फैसला नहीं लिया है.

पिछले कुछ महीनों से मराठा समुदाय आरक्षण की मांग को लेकर अड़े हुए हैं. उन्होंने कई आंदोलन भी किए. पाटील ने इस साल सितंबर में भूख हड़ताल की थी और मांग की थी कि मराठों को ओबीसी श्रेणी के तहत सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण दिया जाए.

आरक्षण की मांग को लेकर राज्य के कुछ हिस्सों में हिंसा भड़क गई थी. पाटील के समर्थकों और पुलिस के बीच झड़प भी हुई. हालांकि, बाद में शिंदे-फडणवीस सरकार ने आंदोलन कर रहे लोगों को आश्वासन दिया, जिससे आंदोलन को विराम मिला था लेकिन एक बार फिर से मांगें नहीं पूरी होने पर मनोज जरांगे पाटील ने भूख हड़ताल की चेतावनी दी है.

शिंदे सरकार ने थोड़ा और समय मांगा

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने 22 अक्टूबर को मराठा समुदाय को आरक्षण देने और मामले को मजबूती से आगे बढ़ाने की सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई. उन्होंने कहा "मैं मराठा समुदाय को आरक्षण दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हूं". इसके साथ ही, उन्होंने आंदोलनकारियों से थोड़ा और समय मांगा और उन्हें धैर्य रखने को कहा.

कौन हैं मनोज जरांगे पाटील?

इधर, एक्टिविस्ट मनोज जारांगे ने राज्य सरकार को और समय देने से इनकार कर दिया है. उन्होंने मीडिया से कहा कि राज्य सरकार 41 दिनों में भी कुछ नहीं कर पाई है. वे भूख हड़ताल फिर से शुरू करने जा रहे हैं.

40 साल के मनोज जारांगे मूलरूप से बीड के रहने वाले हैं. रोजी-रोटी के चक्कर में उन्हें जालना के अंबाद आना पड़ा था. यहां उन्होंने एक होटल में काम करके जैसे-तैसे गुजर-बसर किया. हालांकि, कुछ समय बाद पाटील ने कांग्रेस के कार्यकर्ता के रूप में अपने जीवन के नए अध्याय की शुरुआत की लेकिन कुछ समय बाद ही उन्हें पार्टी छोड़ दिया.
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इसके बाद, पाटील ने 'शिवबा संगठन' नाम का एक संगठन बनाया. यह संगठन मराठा समुदाय के सशक्तिकरण के लिए काम करता था. मनोज जरांगे पाटील मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग करने वाले विभिन्न राज्य के राजनेताओं से मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल का भी हिस्सा रहे हैं.

आदोलन को लेकर शिंदे ने खुद पाटील को किया फोन

दिलचस्प बात यह है कि पिछले साल अगस्त में पाटील ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के सामने मराठा आरक्षण की मांग की थी. इसका वीडियो भी सामने आया था. जिसमें मराठा कार्यकर्ताओं की भीड़ के बीच पाटील अपनी बात रखने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं लेकिन उनकी कोशिश सफल नहीं हो पाई. एक साल बाद पाटील अपनी मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठ गए, जिसके बाद मुख्यमंत्री शिंदे को पाटील को खुद फोन करना पड़ा और आंदोलन बंद करने का अनुरोध करना पड़ा.

लंबे समय से महाराष्ट्र में उठ रही आरक्षण की मांग

मराठों के लिए शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की मांग चार दशक से भी अधिक समय से उठ रही है. 2016 के बाद से, एमकेएम के नेतृत्व में कई संगठनों ने आरक्षण की मांग को लेकर राज्य भर में कई आंदोलनों का नेतृत्व किया है.

अगस्त 2016-17 से, संस्था ने 58 मौन रैलियां की हैं. 2017-18 के बीच, समुदाय ने कई उग्र विरोध-प्रदर्शन किए. वहीं, कुछ लोगों ने आत्महत्या भी कर ली.

3 सितंबर, 2023 को सोलापुर में मराठा आरक्षण की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों पर कथित लाठीचार्ज को लेकर सकल मराठा समाज के सदस्यों ने जालना प्रशासन के खिलाफ पुणे-सोलापुर राजमार्ग पर रास्ता रोको विरोध प्रदर्शन किया था.

एमकेएम समेत मराठा आंदोलन की मांग करनेवालों से परामर्श के बाद जून 2017 में, सीएम फडनवीस ने जस्टिस (सेवानिवृत्त) एनजी गायकवाड़ के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया. 2018 में, पैनल ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की. जिसमें कहा गया कि समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक (SEBC) रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) के तहत आरक्षण दिया जाना चाहिए.

नवंबर 2018 में, महाराष्ट्र एसईबीसी अधिनियम लागू किया गया था, जिसकी वैधता को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था. हालांकि, राज्य को प्रस्तावित 16 प्रतिशत आरक्षण को घटाकर शिक्षा में 12 प्रतिशत और नौकरियों में 13 प्रतिशत करने के लिए कहा गया था.

इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसने मई 2021 में 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा और 102वें संवैधानिक संशोधन का उल्लंघन करने के लिए इसे रद्द कर दिया गया.

जून 2021 में उद्धव ठाकरे सरकार ने आर्थिक कमजोर वर्ग (EWS) कोटा के तहत समुदाय को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया, हालांकि, एमकेएस सहित समुदाय के कई लोगों के लिए अस्वीकार्य था.

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