मराठा आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है.
SC ने अपने फैसले में साफ किया है कि मराठा समुदाय के लोगों को शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय के रूप में घोषित श्रेणी में नहीं लाया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने ये फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मराठा आरक्षण 50 फीसदी आरक्षण सीमा का उल्लंघन है.
अदालत ने कहा कि 2018 का अधिनियम समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है और 50 प्रतिशत से अधिक की सीमा स्पष्ट रूप से संविधान के आर्टिकल 14 और 15 का उल्लंघन करती है.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल महाराष्ट्र में मराठा बहुसंख्यक हैं, इसीलिए यहां तमाम सत्ताधारी पार्टियों से आरक्षण की मांग होती रही. मराठाओं ने इसके लिए तमाम बड़े आंदोलन भी किए. आखिरकार साल 2018 नवंबर में महाराष्ट्र विधानसभा में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम 2018 को पारित किया गया.
इसके तहत महाराष्ट्र में सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में मराठाओं को 16 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान था, लेकिन इसके बाद महाराष्ट्र में आरक्षण सुप्रीम कोर्ट की 50 प्रतिशत की सीमा से ऊपर चला गया.
इसके बाद सरकार के इस फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. याचिका में कहा गया कि सरकार का ये फैसला इंदिरा साहनी मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन करता है. हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सरकार के पक्ष में सुनाया था और कहा था कि राज्य विशेष परिस्थितियों में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण दे सकते हैं. इसके बाद हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. जिस पर अब सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है.
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