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लद्दाख को छठी अनुसूची (Ladakh Sixth Schedule) में शामिल करने की मांग तेज हो गई है. लगातार चल रहे आंदोलन के बीच सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) ने एक वीडियो जारी कर केंद्र सरकार से इसे लागू करने की अपील की है.
उन्होंने कहा कि लद्दाख के लोग असमंजस में है कि सरकार की ओर से आश्वासन मिलने के बावजूद अभी तक छठी अनुसूची को क्यों शामिल नहीं किया गया? उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से इस मुद्दे के जल्द समाधान की मांग की है. साथ ही ऐलान किया है कि वो 26 जनवरी से 5 दिन के अनशन पर बैठने जा रहे हैं वो भी -40 डिग्री तापमान के बीच. उन्होंने कहा है कि अगर बच गए तो फिर मिलेंगे नहीं तो अलविदा...
सोनम वांगचुक ने अपने वीडियो में कहा कि पर्यावरण की दृष्टि से लद्दाख दुनिया में बहुत महत्तवपूर्ण स्थान रखता है. लद्दाख और हिमालय, उत्तरी और दक्षिणी ध्रूव के बाद दुनिया का तीसरा ध्रुव भी माना जाता है. लेकिन केंद्र शासित प्रदेश घोषित होने के तीन साल बाद भी लद्दाख की हालत अच्छी नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि,
इस मामले को लेकर साल 2019 में केंद्रीय जनजातीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने सोनम वांगचुक को पत्र लिखकर भरोसा दिलाया था कि लद्दाख की विरासत को संरक्षित करने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे.
साल 2019 में अनुच्छेद 370 की खत्म होने के बाद लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करके केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया था. लेकिन लद्दाख में विधानसभा के गठन का प्रावधान नहीं किया गया. जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के पहले लद्दाख से 4 विधायक जम्मू-कश्मीर विधानसभा में प्रतिनिधित्व करते थे, लेकिन 2019 से लद्दाख का प्रशासन नौकरशाहों के हाथों में ही रहा है.
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लद्दाख से बीजेपी सांसद जामयांग त्सेरिंग नामग्याल ने भी स्थानीय आबादी की भूमि, रोजगार और सांस्कृतिक की रक्षा के लिए इस क्षेत्र को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग उठाई थी.
लद्दाख में दो हिल काउंसिल हैं. एक लेह और दूसरा कारगिल में हैं, लेकिन इनमें से कोई भी छठी अनुसूची के तहत नहीं है. उनकी शक्तियां कुछ स्थानीय करों जैसे कि पार्किंग शुल्क और केंद्र द्वारा निहित भूमि के आवंटन और उपयोग के संग्रह तक सीमित हैं.
सोनम वांगचुक ने अपने वीडियो में बताया कि बीजेपी ने 2020 लद्दाख हिल काउंसिल चुनाव के लिए जारी घोषणा पत्र में छठी अनुसूची को शामिल किया था. इसके साथ ही 2019 लोकसभा चुनावों में भी बीजेपी के पहले तीन वादों में इसे शामिल किया गया था.
1949 में संविधान सभा द्वारा पारित छठी अनुसूची, स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद और स्वायत्त जिला परिषदों के माध्यम से आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा का प्रावधान करती है. यह विशेष प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 244 (2) और अनुच्छेद 275 (1) के तहत किया गया है. राज्यपाल को स्वायत्त जिलों को गठित करने और पुनर्गठित करने का अधिकार है.
सितंबर 2019 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की सिफारिश यह देखते हुए की थी कि नया केंद्र शासित प्रदेश मुख्य रूप से आदिवासी बाहुल्य (97% से अधिक) था और इसकी विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की आवश्यकता थी.
बता दें कि, छठी अनुसूची में पूर्वोत्तर के चार राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित विशेष प्रावधान हैं. यहां तक कि मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में मुख्य रूप से आदिवासी आबादी होने के बावजूद उन्हें छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है.
जनवरी 2022 में गृह मंत्रालय ने केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी के नेतृत्व में "लद्दाख की भाषा, लद्दाख की संस्कृति और लद्दाख में भूमि के संरक्षण से संबंधित मुद्दों" को लेकर एक कमेटी का गठन किया था.
जुलाई में रेड्डी ने कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (KDA) के प्रतिनिधियों से वादा किया था कि कारगिल के प्रतिनिधियों को समिति में शामिल किया जाएगा.
अगस्त में, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कारगिल और लेह के प्रतिनिधियों को आश्वासन दिया था कि सरकार उनकी चिंताओं पर गौर करने के लिए प्रतिबद्ध है. लेकिन तब से लेकर अबतक ज्यादा कुछ नहीं हुआ है.
सोनम वांगचुक बतातें हैं कि लद्दाख के कई गांव जल संकट से जूझ रहे हैं. यहां के लोग पानी की कमी की वजह से गांव छोड़ने को मजबूर हैं. अब आप सोचिए अगर यहां सैकड़ों उद्योग लगें, माइनिंग हो तो उसकी धूल और धुएं से हमारे ग्लेशियर तो जल्द ही खत्म हो जाएंगे. और यही तो यहां की जीवन रेखा है. वो आगे कहते हैं कि,
लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने और पर्यावरण संरक्षण को लेकर सोनम वांगचुक ने 5 दिवसीय अनशन का ऐलान किया है. ये अनशन 26 जनवरी से शुरू होगा.
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