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उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में बीजेपी ने प्रदेश के सभी 17 मेयर पदों पर कब्जा जमा लिया है. नतीजों से ऐसा लग रहा है कि पार्टी ने कई जगह पर मुकाबला एकतरफा कर दिया था. पार्षद के चुनाव में भी कुछ ऐसी ही झलक मिलती है. समाजवादी पार्टी के लिए नतीजे उत्साहित करने वाले नहीं रहे. पार्टी दूसरे नंबर पर जरूर रही, लेकिन आधी सीटों पर जमानत जब्त हो गई. प्रदेश में बीएसपी की हालत कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM जैसी हो गई है. तीनों पार्टियों का प्रदर्शन एक सा ही नजर आ रहा है. आंकड़ों के जरिए समझने की कोशिश करते हैं.
अगर पार्षद चुनाव की बात करें तो बीजेपी ने कुल 1380 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए, जिसमें 813 प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की. बीजेपी इन 1380 सीटों पर 2650081 मत प्राप्त हुए और 59% जीते प्रत्याशियों के साथ पार्टी निकाय चुनाव में अव्वल नंबर पर रही. पार्टी को अपने निकटतम प्रतिद्वंदी एसपी से दोगुना से ज्यादा वोट मिले. वहीं, समाजवादी पार्टी को 1266655 वोट मिले. पार्षद की कुल 1420 सीटों में से पार्टी ने 1070 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें 191 प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की. आधे से ज्यादा उम्मीदवारों की जमानत ही जब्त हो गई.
कभी यूपी सत्ता की बागडोर संभालने वाली मायावती की पार्टी बीएसपी की स्थिति और भी खराब नजर आ रही है. 2017 में निकाय चुनाव के दौरान पार्टी ने दो मेयर सीटें अपने नाम की थी इस बार वह दोनों हाथ से निकल गई. पार्षद चुनाव में पार्टी के 811 उम्मीदवारों में से 85 में जीत दर्ज की. पार्टी को इन चुनावों में 699817 वोट मिले और इनके सिर्फ 10% प्रत्याशी जीत पाए. जबकि पार्षद के चुनाव में कांग्रेस को 9% और AIMIM के 10% उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है. यानी तीनों पार्टियों का आंकड़ा लगभग बराबर दिख रहा है.
कर्नाटक में बीजेपी को कड़ी पटखनी देने वाली कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में बड़ी जीत की संजीवनी नहीं मिल पा रही है. बिखरे पड़े संगठन और तेजतर्रार राज्य स्तरीय नेतृत्व की कमी के कारण उत्तर प्रदेश के चुनाव में पार्टी का ज्यादा दमखम नहीं दिख रहा. पार्टी के सभी स्टार कैंपेनर उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव से गायब दिखे. अगर मेयर चुनाव की बात करें तो पार्टी ने थोड़ा दमखम मुरादाबाद में दिखाया जहां पर उनके प्रत्याशी रिजवान कुरैशी ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी हालांकि वह जीत नहीं पाए. पार्षद चुनाव में पार्टी ने 924 प्रत्याशी खड़े किए थे, जिनमें से सिर्फ 85 जीत पाए. पार्टी को पार्षद चुनाव में कुल 656409 वोट मिले और इनके सिर्फ 9% प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की. 724 उम्मीदवारों की तो जमानत ही जब्त हो गई.
पार्षद के चुनाव में बीएसपी और कांग्रेस को लगभग बराबर वोट मिले हैं. बीएसपी को कुल 699817 और कांग्रेस को 656409 वोट मिले हैं. दोनों का स्ट्राइक रेट भी लगभग बराबर है. वहीं सिर्फ वोटों की बात करें तो ओवैसी की पार्टी AIMIM को और आम आदमी पार्टी को लगभग बराबर वोट मिले हैं. AIMIM को 147457 और आम आदमी पार्टी को 150506 वोट मिले हैं. लेकिन स्ट्राइक रेट में ओवैसी की पार्टी AAP की तुलना में आगे है.
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने सबसे अच्छा प्रदर्शन मेरठ में किया, यहां से पार्षद की 11 सीटों पर कब्जा किया. मेरठ मेयर सीट पर 2017 में बीएसपी की सुनीता वर्मा ने परचम फहराया था, लेकिन इस बार AIMIM के प्रत्याशी अनस, बीजेपी के साथ सीधे मुकाबले में थे. रोचक मुकाबले में अनस दूसरे नंबर पर, एसपी प्रत्याशी सीमा प्रधान तीसरे और बीएसपी प्रत्याशी चौथे नंबर पर रहे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में AIMIM के 19 पार्षदों ने जीत दर्ज की. अगर आंकड़ों की बात करें तो पार्षद चुनाव में पार्टी को कुल 147457 मत प्राप्त हुए और 197 प्रत्याशियों में से तकरीबन 10% प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की.
AIMIM के बेहतरीन प्रदर्शन के पीछे मेरठ में एसपी में चल रही खींचतान का भी योगदान है. पार्टी के करीबी सूत्र बताते हैं कि वहां पर विधायक रफीक अंसारी और पूर्व मंत्री शाहिद मंजूर ने मेयर सीट पर दावेदारी पेश की थी. अंत में पार्टी का सिंबल अखिलेश यादव के करीबी अतुल प्रधान की पत्नी सीमा प्रधान को मिला. मेरठ की मेयर सीट पर मुसलमान वोटरों का दबदबा रहता है और यही कारण है कि बीजेपी को छोड़कर अधिकांश पार्टियां मुस्लिम चेहरे को मैदान में उतारती हैं. एसपी ने गुर्जर नेता को टिकट दिया था और इसको लेकर पार्टी के कई वरिष्ठ मुस्लिम नेता खफा थे. पार्टी के अंदर बिगड़े हुए समीकरण का खामियाजा एसपी को नतीजों में देखने को मिला जहां पार्टी प्रत्याशी सीमा प्रधान AIMIM के अनस के बाद तीसरे नंबर पर रही
एसपी का अलीगढ़ तो बीएसपी ने आगरा में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है. एसपी को अलीगढ़ में पार्षदी की सबसे ज्यादा 33 सीटों पर जीत मिली है. वहीं बीएसपी को आगरा में 27 सीटों पर जीत. लेकिन पूरे प्रदेश की बात करें तो पार्षद के चुनाव में बीजेपी का स्ट्राइक रेट, दूसरे नंबर पर रही एसपी से तीन गुना से ज्यादा रहा. वहीं कुल मिले वोट भी दोगुना हैं. ऐसे में एसपी सहित अन्य पार्टियों को लोकसभा की रणनीति पर फिर से विचार करना होगा.
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