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कोरोना वैक्सीन से कैंसर का खतरा नहीं, ग्रैफीन ऑक्साइड होने का दावा झूठा

भारत में इस्तेमाल होने वाली किसी भी कोरोना वैक्सीन में ग्रैफीन ऑक्साइड नहीं है

Abhilash Mallick
वेबकूफ
Published:
<div class="paragraphs"><p>दावा है कि वैक्सीन से कैंसर होता है&nbsp;</p></div>
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दावा है कि वैक्सीन से कैंसर होता है 

फोटो : Altered by Quint

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सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि कोविड 19 (COVID-19) वैक्सीन में ग्रैफीन ऑक्साइड नाम का ऐसा तत्व होता है जिससे कैंसर (Cancer) होने का खतरा है. ये दावा स्पेन की अल्मेरिया यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध से आया, इसके बाद सभी वैक्सीन विरोधी ग्रुप्स में इसे शेयर किया जाने लगा. हालांकि, हमारी पड़ताल में सामने आया कि ये दावा झूठा है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से मान्यता प्राप्त वैक्सीन निर्माता कंपनियों फाइजर-बायोएनटेक, मॉडर्ना, स्पूतनिक वी और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन में ग्रैफीन ऑक्साइड नहीं होता. भारत की स्वदेशी कोवैक्सीन में भी ऐसा कोई तत्व नहीं है. बात करें रिसर्च की जिसके आधार पर दावा किया जा रहा है, तो रिसर्च को उसी यूनिवर्सिटी ने रिजेक्ट कर दिया है, जहां ये हुई.

दावा

"Stew Peters Show" का एक वीडियो वायरल हो रहा है. वीडियो में खुद को हेल्थ एक्सपर्ट बता रही महिला जैन रूबी फाइजर वैक्सीन में मिलाए जाने वाले तत्वों के बारे में बात करती दिख रही है.

कनाडा के वीडियो शेयरिंग प्लेटफॉर्म RUMBLE पर शेयर किए गए वीडियो में जैन रूबी ने दावा किया है कि कोरोना वैक्सीन में ग्रैफीन ऑक्साइड होता है. रूबी का दावा है कि फाइजर वैक्सीन में 99.99% ग्रैफीन ऑक्साइड होता है. वीडियो का यह हिस्सा फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर कई यूजर्स ने शेयर किया.

रूबी ने ये सभी दावे स्पेन के प्रोफेसर की एक रिपोर्ट के आधार पर किए गए हैं.

पोस्ट का अर्काइव यहां देखें

फोटो : फेसबुक/स्क्रीनशॉट

सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने इस वीडियो को गलत संदर्भ में शेयर कर ये भी दावा कर दिया कि सभी कोरोना वैक्सीन में ग्रैफीन ऑक्साइड होता है इसलिए सभी वैक्सीन खतरनाक हैं.

लगातार वैक्सीन का विरोध करने वाली वेबसाइट्स पर भी ये वीडियो शेयर किया गया. अर्काइव यहां और यहां देख सकते हैं.

इस शो का एक अन्य वीडियो भी सामने आया है, जिसमें फाइजर के पूर्व कर्मचारी कैरेन किंगस्टन ने भी यही दावे किए.

पड़ताल में हमने क्या पाया?

सबसे पहले हमने खुद को मेडिकल एक्सपर्ट बता रही रूबी की विश्वसनीयता पता लगानी शुरू की. रूबी की वेबसाइट के मुताबिक ''डॉ. रूबी वॉशिंगटन डीसी की हेल्थ इकोनॉमिस्ट हैं. वेबसाइट पर रूबी को नया दक्षिणपंथी पॉलिटिकल पंडित भी बताया गया है.

रूबी के कोरोना वैक्सीन को लेकर किए गए दावों की पड़ताल पहले भी फैक्ट चेकर्स कर चुके हैं.

ग्रैफीन ऑक्साइड क्या है ?

ग्रैफीन ऑक्साइड (GO) ग्रैफीन का ऑक्सिडाइज्ड फॉर्म है. इसमें कार्बन, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन होता है. ग्रैफीन को दुनिया का सबसे मजबूत पदार्थ माना जाता है. ये बिजली और हीट में काफी तेजी से प्रवाह कर सकता है.

पत्रकारों को कोरोना वायरस से जुड़ी जानकारी देने के लिए बनाए गए प्लेटफॉर्म हेल्थ डेस्क के मुताबिक ग्रैफीन ऑक्साइड ग्रैफीन की तरह उतनी तेजी से प्रवाह नहीं कर सकता. लेकिन, इसमें ऐसे कई तत्व होते हैं जिस वजह से इसका इस्तेमाल कई कामों के लिए होता है. ग्रैफीन टेक्सटाइल्स के सेंसर में और दवाइयों के एप्लीकेशन जैसे कई कामों में होता है. इस संबंध में पूरे नोट्स यहां पढ़े जा सकते हैं.

ग्रैफीन ऑक्साइड का उत्पादन करना बहुत आसान माना जाता है.

हेल्थ डेस्क के ही एक वैज्ञानिक के मुताबिक ''भविष्य में ग्रैफीन ऑक्साइड का इस्तेमाल वैक्सीन की डिलिवरी के लिए किए जा सकता है. क्योंकि वैज्ञानिकों और केमिकल इंजीनियरों का मानना है कि ग्रैफीन ऑक्साइड से वैक्सीन के लिए एक सुरक्षित वाहन बनाया जा सकता है.''

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क्या कोरोना वैक्सीन में होता है ग्रैफीन ऑक्साइड?

हमने भारत में उपलब्ध सभी वैक्सीन में इस्तेमाल होने वाले तत्वों की लिस्ट (Ingredients List) चेक की. कोवैक्सीन, कोविशील्ड और स्पूतनिक वी वैक्सीन में ग्रैफीन ऑक्साइड नहीं होता.

हमने दुनिया भर में इस्तेमाल हो रही अन्य वैक्सीनों जैनसेन, मॉडर्ना, फाइडर और सिनोवेक में इस्तेमाल होने वाली सामग्री की जानकारी भी चेक की. इनमें से किसी वैक्सीन में भी ग्रैफीन ऑक्साइड के इस्तेमाल का जिक्र नहीं है.

हमने वायरोलॉजिस्ट सत्यजीत रथ से भी संपर्क किया. उन्होंने क्विंट से बातचीत में बताया कि अब तक जिन कोरोना वैक्सीन को लाइसेंस मिला है, उनमें से किसी में भी ग्रैफीन ऑक्साइड का इस्तेमाल नहीं हुआ.

जहां तक मुझे पता है, अब तक जितनी भी कोरोना वैक्सीनों को इस्तेमाल की अनुमति मिली है, उनमें से किसी में भी ग्रैफीन ऑक्साइड का इस्तेमाल नहीं हुआ है. इसे लेकर अभी शोध किया जा रहा है, क्योंकि इसके कुछ फायदे हो सकते हैं. दरअसल, कोविड वैक्सीन जिन प्रोटींस को निशाना बनाती है, वह ग्रैफीन ऑक्साइड पर आसानी से चिपक सकते हैं. शरीर के इम्यून सिस्टम की कोशिकाएं ग्रैफीन ऑक्साइड को निगल सकती हैं, इसके बाद इन सभी कोशिकाओं तक वैक्सीन का प्रोटीन पहुंचा दिया जाएगा. इसके अलावा GO के पार्टिकल उन कोशिकाओं को उत्तेजित करते हैं जो उन्हें घेर लेती हैं, इससे प्रतिरक्षा प्रक्रिया (इम्यून रिस्पॉन्स) और मजबूत होगा. हालांकि, इन सब पर अभी केवल शोध चल रहा है.
डॉ. सत्यजीत रथ, वायरोलॉजिस्ट

डॉ. जैकब टी जॉन ने भी क्विंट से बातचीत में यही कहा कि उनकी जानकारी में किसी भी कोरोना वैक्सीन में ग्रैफीन ऑक्साइड का इस्तेमाल अब तक नहीं किया गया है.

वैक्सीन निर्माता कंपनी फाइजर के सीनियर एसोसिएट Keanna Ghazvini ने रॉयटर्स से बातचीत में कहा ''फाइजर-बायोएनटेक की कोरोना वैक्सीन में ग्रैफीन ऑक्साइड का इस्तेमाल नहीं किया गया है'' रॉयटर्स ने वैक्सीन निर्माता मॉडर्ना के चीफ कॉर्पोरेट अफेयर्स ऑफिसर से भी संपर्क किया, उन्होंने पुष्टि की कि मॉडर्ना वैक्सीन में बी ग्रैफीन ऑक्साइड नहीं होता.

स्पेन में हुए शोध का क्या?

रूबी ने वीडियो में डॉ. पाबलो कैम्प्रा की पब्लिश की गई स्पैनिश स्टडी के हवाले से दावा किया है. वैक्सीन विरोधी वेबसाइट्स की स्टोरी में भी इसी स्टडी का जिक्र है.

गौर करने वाली बात ये है कि न तो इस शोध का पीयर रिव्यू किया गया है. न ही किसी विश्वसनीय साइंटिफिक जर्नल में इसे पब्लिश किया गया है.

डॉ. कैम्प्रा ने इस शोध की प्रोविजनल रिपोर्ट 28 जून, 2021 को पब्लिश की थी. इस रिपोर्ट में डॉ. कैम्प्रा ने ये स्वीकार किया है कि उन्होंने जिस सैम्पल पर शोध किया, वह किसी ने उन्हें पोस्ट के जरिए भेजा था. डॉ. कैम्प्रा को खुद नहीं पता कि ये सैम्पल कहां से आया था.

डॉ. कैम्प्रा. यूनवर्सिटी ऑफ अल्मेरिया में पदस्थ हैं. इस यूनिवर्सिटी की तरफ से 2 जुलाई को एक ट्वीट किया गया. ट्वीट में यूनिवर्सिटी ने खुद को कैम्प्रा के शोध से अलग कर लिया है. यूनिवर्सिटी ने अपने बयान में कहा है कि ये दावा झूठा है कि ये शोध यूनिवर्सिटी ऑफ अल्मेरिया ने किया.

24 अगस्त, 2021 ये रिपोर्ट लिखे जाने तक WHO से मान्यता प्राप्त किसी भी कोरोना वैक्सीन में ग्रैफीन ऑक्साइड का इस्तेमाल नहीं किया गया है.

डॉ. रथ कहते हैं, ''भविष्य में अगर कभी भी ग्रैफीन ऑक्साइड का इस्तेमाल वैक्सीन में होता भी है, तो नियम कहते हैं कि पहले सेल्स पर, फिर जानवरों पर और फिर इंसानों पर इसका परीक्षण करके देखा जाएगा कि इसके कोई बुरे परिणाम तो सामने नहीं आ रहे. इन सबके बाद ही कोरोना वैक्सीन में GO के इस्तेमाल को अनुमति दी जाएगी.''

मतलब साफ है - सोशल मीडिया पर किया जा रहा ये दावा झूठा है कि कोरोना वैक्सीन में ग्रैफीन ऑक्साइड होता है, जिससे कैंसर का खतरा है.

(ये स्टोरी क्विंट के कोविड-19 और वैक्सीन पर आधिरित फैक्ट चेक प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जो खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए शुरू किया गया है)

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