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(स्टोरी पढ़ने से पहले आपसे एक अपील है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और असम में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के बीच कोरोना वैक्सीन को लेकर फैल रही अफवाहों को रोकने के लिए हम एक विशेष प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. इस प्रोजेक्ट में बड़े पैमाने पर संसाधनों का इस्तेमाल होता है. हम ये काम जारी रख सकें इसके लिए जरूरी है कि आप इस प्रोजेक्ट को सपोर्ट करें. आपके सपोर्ट से ही हम वो जानकारी आप तक पहुंचा पाएंगे जो बेहद जरूरी हैं.)
(धन्यवाद - टीम वेबकूफ)
भारत में Covid-19 के ओमिक्रॉन वैरिएंट के कई मामले सामने आए हैं. इसलिए, कई राज्यों में स्वास्थ्य अधिकारियों ने वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए एहतियाती कदम उठाने शुरू कर दिए हैं.
एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशनों और सावर्जनिक जगहों पर स्वास्थ्य और सुरक्षा उपायों को बढ़ाने के साथ-साथ ही बेंगलुरु में अधिकारियों ने सार्वजनिक और व्यावसायिक जगहों पर कीटाणुनाशक का अलग-अलग तरीकों से छिड़काव शुरू कर दिया है.
हालांकि, कुछ रिसर्च के मुताबिक, बंद जगहों पर फॉगिंग (छिड़काव) करने से वायरस को निष्क्रिय करने में मदद मिलती है. लेकिन, WHO या दुनिया भर के स्वास्थ्य अधिकारी ये नहीं रिकमेंड करते कि सार्वजनिक जगहों पर छिड़काव किया जाना चाहिए. ऐसा करना न सिर्फ अप्रभावी है, बल्कि ऐसे कीटाणुनाशकों के संपर्क में आने वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है.
चलिए जानते हैं कि फॉगिंग या कीटाणुनाशक को धुएं के जरिए फैलाना कहां तक प्रभावी है और इससे जुड़ी कौन-कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए.
फॉगिंग एक तरीका है जिसके जरिए धुएं या छिड़काव के माध्यम से कीटाणुनाशक फैलाया जाता है.
फॉगिंग के जरिए मुख्य रूप से उन जगहों पर कीटाणुओं को खत्म करने के लिए किया जाता है, जहां आसानी से सफाई करना मुश्किल होता है. कीटाणुनाशक को छोटी-छोटी बूंदों (एरोसोल) में बदला जाता है, जिससे कीटाणुनाशक लंबे समय तक हवा में रह पाता है और उन जगहों और सतहों तक जाकर कीटाणुओं को खत्म करता है जो संक्रमित हो सकते हैं.
आमतौर पर एक पतला ब्लीच संक्रमण को रोकने वाले लिक्विड के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
ऐसी जगहों जहां स्वास्थ्य से संबंधी देखभाल नहीं हो पाती, जैसे कि घर, ऑफिस, स्कूल और जिम. इन जगहों में कोविड के प्रसार को कम करने के लिए इनफेक्शन रोकने वाले केमिकल की फॉगिंग या छिड़काव करना प्रभावी तरीका हो सकता है.
हालांकि, ऐसी जगहों पर छिड़काव के बाद बंद कर देना चाहिए, क्योंकि इससे आंखों में जलने और दूसरी सांस संबंधी समस्याएं हो सकती हैं. इसके अलावा, ये भी सलाह दी जाती है कि लोगों पर सीधे किसी कीटाणुनाशक का स्प्रे नहीं करना चाहिए.
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर सलाह दी जाती है कि 1 प्रतिशत सोडियम हाइपोक्लोराइट या फेनोलिक कीटाणुनाशक से ऐसी जगहों को साफ करना चाहिए, जिनको बार-बार छुआ जाता है.
बंद जगहों में डिसइनफेक्टेंट (कीटाणुनाशक) का इस्तेमाल करने के बाद, जरूरी वेंटीलेशन की भी व्यवस्था होनी चाहिए.
WHO और दूसरे स्वास्थ्य अधिकारी बड़ी और खुली सार्वजनिक जगहों पर कीटाणुनाशक के छिड़काव की सलाह नहीं देते.
इसका कारण ये है. यूके के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, "रासायनिक खतरों को फैलने और लोगों को उससे होने वाले अनपेक्षित खतरे को नियंत्रित नहीं किया जा सकता.''
WHO का कहना है कि, ''संक्रमण रोकने वाले केमिकल का छिड़काव, लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है. भले ही, ऐसा घर के बाहर क्यों न किया जाए. इससे आंख, सांस संबंधी समस्याएं और त्वचा में जलन या नुकसान पहुंच सकता है. इसके अलावा, गंदगी, धूल और अल्ट्रावायलेट किरणों से ब्लीच कुछ ही मिनटों में बेकार हो जाता है.
कीटाणुनाशक की सांद्रता (यानी उसमें कितनी मात्रा में केमिकलडालना है) का ख्याल सावधानी से रखना चाहिए, क्योंकि इससे जहां पर इस केमिकल का इस्तेमाल किया जा रहा है वो जगह तो खराब हो ही सकती है. साथ ही, इससे लोगों पर बुरे प्रभाव पड़ सकते हैं.
कीटाणुनाशकों के प्रयोग के दौरान बच्चों और पालतू जानवरों को दूर रखा जाना चाहिए और खाद्य पदार्थों को भी बंद रखा जाना चाहिए.
Lancet में पब्लिश एक स्टडी से इस बात के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं कि कोविड-19 मुख्य रूप से एक ऐसा वायरस है जो हवा के जरिए फैलता है. छोटे एरोसोल घंटों तक हवा में बहते रहते हैं और समय के साथ फैल जाते हैं.
दूसरा तरीका है सतही संचरण यानी किसी जगह को छूने से वायरस का फैलना, जिसकी संभावना कम है. New England Journal of Medicine में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, पर्यावरणीय परिस्थितियों और सतहों के प्रकार के आधार पर वायरस सतहों पर 72 घंटे तक जीवित रह सकता है. इसलिए, ऐसी सतह या जगह जहां बार-बार छुआ जाता है, उसे नियमित रूप से पोंछे की मदद से साफ करना चाहिए.
यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) ने भी मई में कहा था कि दूषित सतहों के संपर्क में आने से लोगों के संक्रमित होने की संभावना बहुत कम मानी जाती है.
(ये स्टोरी द क्विंट के कोविड-19 और वैक्सीन पर आधारित फैक्ट चेक प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जो खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए शुरू किया गया है.)
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