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सोशल मीडिया पर वायरल एक मैसेज में ये दावा किया जाता है कि डॉ. भीमराव अंबेडकर (Bhimrao Ambedkar) को संविधान (Constitution) लिखने का मौका बंगाल के 48% मुस्लिमों के वोटों की वजह से मिला था. मैसेज में कहा गया है कि अगर बंगाल के मुस्लिमों के वोट अंबेडकर को नहीं मिलते, तो वो संविधान नहीं लिख पाते.
क्विंट की वेबकूफ टीम ने जब इस दावे की पड़ताल की तो सामने आया कि डॉ. अंबेडकर संविधान सभा के गठन के वक्त जरूर बंगाल से सभा के सदस्य चुने गए थे. लेकिन, जिस क्षेत्र से चुने गए थे, वो विभाजन के बाद पाकिस्तान के हिस्से में चला गया था. इसके बाद कांग्रेस ने डॉ. भीमराव अंबेडकर को बॉम्बे निर्वाचन क्षेत्र से सदस्यता स्पॉन्सर की थी. यानी जिस वक्त संविधान बनकर तैयार हुआ, अंबेडकर संविधान सभा में बॉम्बे का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, न की बंगाल का.
वायरल होने वाला मैसेज है - बाबा साहब को संविधान लिखने के लिए #संविधान_सभा में नहीं जाने दिया जा रहा था, तब बंगाल के 48% मुसलमान भाइयों ने ही बाबा साहब को चुनकर संविधान में भेजा था। खुद हमारे अपने लोगो ने वोट नही दिया था बाबा साहब को।.
सोशल मीडिया पर शेयर होने वाले कई लंबे मैसेजेस में इस दावे का जिक्र है.
लंबे समय से इस मुद्दे पर बहस होती रही है कि डॉ. भीमराव अंबेडकर संविधान सभा में बंगाल राज्य की तरफ से चुनकर गए थे या फिर बॉम्बे.
सिलसिलेवार ढंग से समझते हैं.
राज्यसभा की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, डॉ. भीमराव अंबेडकर संविधान सभा में बॉम्बे निर्वाचन क्षेत्र की तरफ से शामिल हुए थे. पश्चिम बंगाल निर्वाचन क्षेत्र से गए सदस्यों की लिस्ट में अंबेडकर का नाम यहां नहीं है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक,
नवंबर 2015 को बाबासाहब भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती पर लोकसभा में भाषण देते हुए त्रृणमूल कांग्रेस के सांसद सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा था कि
बीजेपी सांसद एसएस अहलूवालिया ने उस वक्त सुदीप बंदोपाध्याय के दावे पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि अंबेडकर ने संविधान सभा में बंगाल का नेतृत्व नहीं किया. अहलूवालिया की आपत्ति के बाद इतिहासकार और टीएमसी सदस्य सुगाता बोस ने मामले को संभालते हुए स्पष्टीकरण दिया और कहा-
हमने लोकसभा की आधिकारिक वेबसाइट पर 17 दिसंबर, 1946 की संविधान सभा में हुई डिबेट का दस्तावेज देखा. यहां डॉ. भीमराव अंबेडकर के नाम के आगे ''बंगाल'' देखा जा सकता है. यानी ये दावा तो सच है कि अंबेडकर पहले बंगाल की तरफ से ही संविधान सभा में शामिल हुए थे.
हालांकि, सरकारी वेबसाइट पर ही, संविधान सभा के सदस्यों की लिस्ट में अंबेडकर का नाम बॉम्बे के सदस्यों में है. ऐसा इसलिए क्योंकि, ये लिस्ट नवंबर 1949 की है. 11 अक्टूबर, 1949 को संविधान के ड्राफ्ट पर हुई बहस के दस्तावेज में भी अंबेडकर के नाम के आगे बॉम्बे ही लिखा है.
अब ये कन्फ्यूजन क्यों है? अंबेडकर बंगाल से संविधान सभा में गए या बॉम्बे से? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने संविधान के जानकार और छत्तीसगढ़ के पूर्व एडवोकेट जनरल कनक तिवारी से संपर्क किया. क्विंट से बातचीत में उन्होंने बताया कि डॉ. अंबेडकर को कांग्रेस की स्पॉन्सरशिप से संविधान सभा में शामिल किया गया था.
ये दावा सही नहीं है कि बंगाली मुस्लिमों के वोटों की वजह से अंबेडकर को संविधान लिखने का मौका मिला.
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