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सोशल मीडिया पर एक न्यूजपेपर की कटिंग शेयर हो रही है. कटिंग में लिखा हुआ है कि मदरसों में कुरान का इस्तेमाल धार्मिक असहिष्णुता पढ़ाने के लिए किया जाता है. साथ ही, उन पर प्रतिबंध लगाने की बात की जा रही है.
फोटो में ऊपर लिखी बात के लिए दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को कोट किया गया है.
हालांकि, ऐसा कोई भी पब्लिक रिकॉर्ड या न्यूज रिपोर्ट नहीं है, जिसमें कलाम को कोट करते हुए ऐसा लिखा हो. हमने कलाम के पोते से संपर्क किया. उन्होंने हमें बताया कि ''कलाम ने कभी भी धर्म में हस्तक्षेप नहीं किया.''
न्यूजपेपर की कटिंग की फोटो सोशल मीडिया पर काफी शेयर की जा रही है. फोटो में डॉ. कलाम की तस्वीर दिख रही है, जिसके नीचे लिखा है: "मुसलमान पैदायशी आतंकवादी नहीं होते, उन्हें मदरसों में कुरान पढ़ाई जाती है,जिसके अनुसार वे हिन्दू, बौद्ध, सिख, इसाई, यहूदी और गैर-मुसलमानों को चुन-चुन कर मारते हैं। आतंकवाद पर नियंत्रण के लिए भारत में चल रहे हजारों मदरसों पर प्रतिबंध लगाना बेहद जरूरी है। ए.पी.जे.अब्दुल कलाम"
आर्टिकल लिखते समय तक, फेसबुक यूजर Jyotsna Lath के इस पोस्ट को 2,200 से भी ज्यादा लाइक और 14,000 से ज्यादा शेयर मिल चुके हैं.
हमें ऐसी कोई न्यूज रिपोर्ट या पब्लिक डॉक्युमेंट/रिकॉर्ड नहीं मिला, जिसमें डॉ. कलाम को कोट करते हुए ऐसा लिखा गया हो.
हालांकि, गूगल पर समय वाला फिल्टर इस्तेमाल कर सर्च करने पर हमें 14 दिसंबर 2014 का एक ब्लॉगपोस्ट मिला. इसका टाइटल था 'कंप्यूटर और कुरान'. इसे एलआर गांधी के नाम से लिखा गया था. ये ब्लॉगपोस्ट डॉ. कलाम के निधन से करीब 6 महीने पहले पब्लिश हुआ था.
इस ब्लॉगपोस्ट में दावे में शेयर हो रही लाइनें हूबहू लिखी हुई थीं, जिसे डॉ. कलाम को कोट कर लिखा गया था.
क्विंट ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के पोते एपीजेएमजे शेख सलीम से संपर्क किया, जिन्होंने इस दावे को खारिज कर दिया.
मतलब साफ है कि डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नाम से शेयर हो रहा ये दावा गलत है. न तो ऐसा कोई रिकॉर्ड है और न ही कोई न्यूज रिपोर्ट जो इस दावे को सच साबित करती हो.
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