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कश्मीर से लेकर रोजगार तक, ABP न्यूज पर मोदी के दावों का क्या है सच

पीएम मोदी के दावों की क्या है सच्चाई पढ़ें पूरी रिपोर्ट

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टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में पीएम नरेंद्र मोदी ने किए थे कश्मीर और रोजगार पर बड़े दावे
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टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में पीएम नरेंद्र मोदी ने किए थे कश्मीर और रोजगार पर बड़े दावे
(Altered by The Quint)

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रिपब्लिक भारत को इंटरव्यू देने के बाद 5 अप्रैल को एबीपी न्यूज को इंटरव्यू दे कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक के बाद एक कई दावे किए. 75 मिनट की उस बातचीत में पीएम मोदी ने कश्मीर में आतंकवाद से लेकर देश में रोजगार पैदा करने तक कई दावे किए.

पीएम मोदी ने जो दावे किए हमने उनका फैक्ट चेक किया है.

पहले दावा: जम्मू-कश्मीर की आतंकी घटनाओं में कमी आई है

लेकिन गृह मंत्रालय की 2017-18 की रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में 2013 से 2017 तक आतंकवादियों घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है.

आतंकी घटनाओं के आंकड़े

  • 2013 - 170
  • 2014 - 222
  • 2015 - 208
  • 2016 - 322
  • 2017 - 342
  • 2018 - 231 (जून तक)

राज्यसभा में दिए एक जवाब के मुताबिक, जून 2018 तक 231 आतंकी घटनाएं सिर्फ उसी साल में हुई. यानि पीएम मोदी का जो दावा है कि कश्मीर में आतंकी घटनाओं में कमी आई है वो गलत है. इन घटनाओं में कमी नहीं बल्कि बढ़ोतरी हुई है.

दूसरा दावा: जम्मू-कश्मीर में टूरिज्म बढ़ा है

2017-18 के इकनॉमिक सर्वे के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में जाने वाले लोगों की संख्या साल 2012 के मुकाबले भारी गिरावट पाई गई.

सैलानियों की संख्या

  • 2012: 1.25 करोड़
  • 2013: 1.09 करोड़
  • 2014: 95 लाख
  • 2015: 92 लाख
  • 2016: 84 लाख
  • 2017: 73 लाख

ऊपर के आंकड़ों के आधार पर पीएम मोदी का दावा गलत साबित हुआ.

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पीएम मोदी का तीसरा दावा

जब तमिलनाडु में लोग न्यूक्लियर प्लांट का विरोध कर रहे थे उस समय कांग्रेस ने ही 6000 लोगों को राजद्रोह का चार्ज लगाकर जेल भेजा था.

फर्स्टपोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक सीनिर पत्रकार सैम रजप्पा ने पाया था कि साल 2011 में सितंबर और दिसंबर के बीच 6000 लोगों को तमिलॉनाडु पुलिस ने राजद्रोह का चार्ज लगाकर जेल भेजा था. लेकिन उस समय वहां अन्नाद्रमुक की सरकार थी जो कि आज बीजेपी की ही एक सहयोगी पार्टी है.

तो पीएम मोदी का ये दावा भी गलत साबित हो गया कि कांग्रेस ने 6000 लोगों को राजद्रोह का चार्ज लगाकर जेल भेजा था.

पीएम मोदी का चौथा दावा

‘‘मुद्रा स्कीम के तहत देश भर में 4.5 करोड़ लोगों ने पहली बार कर्ज लिया. उन लोगों ने अपना नया काम शुरू किया तो उसने लोगों के लिए रोजगार नहीं पैदा किया. सीआईआई की रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ लघु और मध्यम उद्योग में 6 करोड़ रोजगार पैदा हुए हैं.’’

पहली बात, मुद्रा के तहत दिए गए कर्ज को रोजगार पैदा करने का साधन नहीं माना जा सकता. दूसरी बात सेंटर फॉर मॉनिटरिंग फॉर इंडियन इकनॉमी ने आंकड़े दिए हैं कि साल 2016-18 के बीच लेबर पार्टीसिपेशन रेट में गिरावट आई है.

लेबर फोर्स पार्टीसिपेशन रेट

  • सितंबर-दिसंबर 2016: 45.98 फीसदी
  • सितंबर-दिसंबर 2017: 44.00 फीसदी
  • सितंबर-दिसंबर 2018: 42.81 फीसदी

इन 3 सालों के बीच बेरोजगारी दर में उछाल भी देखा गया.

सीएमआईई के मुताबिक बेरोजगारी दर

  • सितंबर-दिसंबर 2016: 6.74 फीसदी
  • सितंबर-दिसंबर 2017: 4.89 फीसदी
  • सितंबर-दिसंबर 2018: 6.68 फीसदी

सरकार की ओर से आंकड़े जारी न करने की वजह से देश में कितनी नौकरियां पैदा हुईं ये कहना मुश्किल है. रिजर्व बैंक के पास साल 2011-12 के बाद रोजगार का कोई डेटाबेस नहीं है.

(फोटो: RBI)

इकनॉमिक सर्वे में नए आंकड़े नहीं आ रहे. एनएसएसओ की एक रिपोर्ट से पता चला कि 6.1 % के साथ 45 सालों में बेरोजगारी सबसे ज्यादा है. इसी बीच सीएमआईई बता रहा है कि बेरोजगारी दर 6.7% है.

मतलब सरकार कि ओर से आंकड़े जारी न करने की वजह से देश में कितनी नौकरियां पैदा हुईं ये कहना मुश्किल है.

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Published: 05 Apr 2019,06:22 PM IST

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