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10 जून को रिपब्लिक टीवी के कंसल्टिंग एडिटर और पूर्व आर्मी अफसर गौरव आर्य ने भारत के पूर्व सेना प्रमुख और फील्ड मार्शल सैम मानिकशॉ को लेकर कुछ दावे किए जो पूरी तरह गलत हैं और जिनका खंडन खुद फील्ड मार्शल मानिकशॉ के परिवारवाले भी कर चुके हैं.
हमने ये पता किया है कि तीसरा पे कमीशन जो कि 1973 में आया, उसने पेंशन में इजाफा किया, पेंशन कम नहीं हुई. वहीं फील्ड मार्शल माणिकशॉ की पेंशन कभी भी बंद नहीं की गई. हमेशा समय पर भुगतान हुआ है. जनरल माणिकशॉ के परिवार वालों ने भी इस दावे को गलत बताया है. उनकी बेटी माजा दारुवाला ने बताया है कि उनको पेंशन मिलती रही. वो बताती हैं कि "चूंकि फील्ड मार्शल कभी रिटायर्ड नहीं होता उनको पूरी तनख्वाह और बाकी बेनीफिट मिलना बाकी थे, लेकिन ये राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के दखल के बाद दे दिए गए."
“Rahul’s Pro China Line Angers Veterans” मतलब 'राहुल का चीन को समर्थन करता हुआ रुख आर्मी के दिग्गज लोगों को गुस्सा दिला रहा है" इस टॉपिकपर डिबेट करते हुए गौरव आर्य ने दो दावे किए. उन्होंने 1971 बांग्लादेश लिबरेशन वॉर पर बात करते हुए कांग्रेस की आलोचना की.
अब गौरव आर्य के दावों को देखते हैं.
गौरव आर्य ने दावा किया कि 1971 के युद्ध की के बाद आर्म्ड फोर्स यानि नेवी, एयरफोर्स और आर्मी की पेंशन में कटौती की गई थी. और इसी की वजह से वन रैंक और वन पेंशन दिक्कत बनी.
लेकिन इसमें बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है. ट्विटर पर कई लोगों ने इस बात को आधारहीन बताया. एडवोकेट और लेखक मेजर नवदीप सिंह ने इन बातों को गलत बताया.
इसके बाद हमने तीसरे केंद्रीय पे कमीशन का रुख किया जिससे कि गौरव आर्य के दावों की जांच की जा सके. इससे हमें पता चला कि उनके दावे एकदम आधारहीन हैं. तीसरा पे कमीशन 1973 में आया था और उलट इसकी वजह से आर्म्ड फोर्स को बढ़ी हुई पेंशन मिलने लगी.
नीचे जो तालिका दी हुई है जिसमें आप 1953 से 1961तक जवानों की बदलती हुई पेंशन को देख सकते हैं.
उदाहरण के तौर पर कैप्टन की पेंशन 377 से बढ़कर 500 हो गई थी, कर्नल के लिए ये 638 से बढ़कर 850 हो गई थी और जनरल के लिए ये 840 से बढ़कर 1150 हो गई थी. तीसरे पे कमीशन में सिर्फ पेंशन नहीं बढ़ीं, इस पे कमीशन में रिटायरमेंट गारंटी को भी बढ़ाया.
इसके अलावा ये भी दावा किया जाता है कि तीसरे पे कमशीन ने आम नागरिकों की पेंशन 33 से बढ़ाकर 50% कर दी वहीं जवानों की पेंशन 70 से घटाकर 50% कर दी. लेकिन ये तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया गया है.
सच्चाई ये है कि चौथे CPC (1986) ने सुझाव दिया कि चूंकि संसद ने तय किया है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज की पेंशन तनख्वाह की आधी होगी. इसलिए डिफेंस समेत सारे सरकारी कर्मचारियों की पेंशन आखिरी तनख्वाह की 50% तय कर दी गई.
फील्ड मार्शन मानिकशॉ 1971 बांग्लदेश लिबरेशन वॉर के वक्त पर चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ थे. वो भारतीय सेना का युद्ध में नेतृत्व कर रहे थे. वो पहले ऐसे भारतीय अफसर थे जिनको फील्ड मार्शल के पद पर तैनात किया गया.
लेकिन दावा किया गया कि उनकी मौत तक उन्हें पेंशन देने से मना किया गया. ये भी झूठी बात है. यहां ये जानना अहम है कि फील्ड मार्शल की रैंक तब तक बरकरार रहती है जब तक उनकी मृत्यू नहीं हो जाती.
सैम मानिकशॉ बतौर फील्ड मार्शल रिटायर्ड हुए थे. इसका मतलब ये था कि उनको ताउम्र तनख्वाह मिलने वाली थी.
2007 में रक्षा विभाग ने बताया कि सरकार ने फैसला किया है कि फील्ड मार्शल मानिकशॉ और एयरफोर्स के मार्शल अर्जन सिंह पूरी तन्खवाह और भत्तों को हकदार हैं. तब तक सिर्फ 2 मार्शल को ही पेंशन मिला करती थी. सरकार के ऐलान के बाद मानिकशॉ को 1.16 करोड़ रुपये का चैक दिया.
फील्ड मार्शल के परिवार वालों ने भी क्विंट को बताया कि- 'उनको पेंशन मिल रही थी'
मानिकशॉ की बेटी ने एक और वाकया याद दिलाया जब राष्ट्रपति अब्दुल कलाम मानिकशॉ से मिलने के लिए हॉस्पिटल आए. तब बात हुई कि जब वो रिटायर्ड नहीं हुए तो पेंशन क्यों मिल रही है. इस बातचीत के बाद फील्ड मार्शल को 1973 से लेकर तब तक के एरियर्स दिए गए.
दरअसल चौथे पे कमीशन ने ये भी बताया कि मानिकशॉ को 400 रुपये का स्पेशल पे भी जारी किया गया. इसके अलावा बतौर फील्ड मार्शल जो उनको मिलता था वो तो मिलता ही रहा.
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