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एक फेसबुक पोस्ट में दावा किया जा रहा है कि अमेरिका के दिग्गज कारोबारी और समाज सेवी बिल गेट्स पर भारत ने मुकदमा कर दिया है. उन पर आरोप है कि उन्होंने ‘तीसरी दुनिया की 9 से 15 साल की 77,000 लड़कियों को HPV वैक्सीन दे दी, जिसकी वजह से उनमें से कई की मौत हो गई.’
डॉ गेट्स और नेशलन इंस्टिट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शन डिजीज के डारेक्टर एंटनी फोची दोनों का साथ में फोटो इस दावे के साथ सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है.
पोस्ट में ये भी दावा किया गया है कि ‘बिल गेट्स ने ही कोरोना वायरस वैक्सीन के लिए फंड दिया है और उनकी चीन के वुहान में एक लैब भी है, सोरोस उनके पार्टनर हैं.’
ये पोस्ट फेसबुक पर वायरल हो गया-पोस्ट में ये भी दावा किया गया है कि ‘बिल गेट्स ने ही कोरोना वायरस वैक्सीन के लिए फंड दिया.
इसी तरह का पोस्ट ट्विटर पर भी वायरल कराया गया- पोस्ट में ये भी दावा किया गया है कि ‘बिल गेट्स ने ही कोरोना वायरस वैक्सीन के लिए फंड दिया है.
ये पोस्ट कई तथ्यों पर पूरी तरह से गलत है और ये कई तरह की षडयंत्र के सिद्धांत पर आधारित है. आपको हम इसे कई तरीके से समझाते हैं-
हमें क्या मिला-
सबसे पहले हमें पता लगा कि फोटो को गलत संदर्भ में शेयर किया जा रहा है. इस फोटो का रिवर्स इमेज सर्च करने पर हमें पता चला कि ये फोटो दिसंबर 2018 की है और इसे बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की ग्लोबल हेल्थ पर बुलाई गई एक वर्कशॉप के दौरान लिया गया था.
इसकी ओरीजनल फोटो हमें विकीपीडिया से मिली जो NIH की इमेज गैलेरी से निकाली गई थी. लेकिन इसमें दांयी तरफ NIH के डायरेक्टर फ्रांसिस कोलिंस भी दिख रहे हैं जिनको वायरल इमेस से क्रॉप करके निकाल दिया गया.ओरीजनल फोटो हमें विकीपीडिया से मिली जो NIH की इमेज गैलेरी से निकाली गई थी.
इसलिए जैसा वायरल मैसेज में दावा किया गया है कि उसके उलट इस फोटो का बिल गेट्स की नवंबर 2019 में की गई भारत यात्रा से कोई लेना देना नहीं है. इस यात्रा के 1 साल पहले ये फोटो ली जा चुकी थी.
दूसरे नंबर पर हम उस दावे की जांच करते हैं जिसमें कहा गया है कि बिल गेट्स ने कोरोना वायरस वैक्सीन की फंडिंग की है और चीन के वुहान में इनकी लैब है और सोरोस इनके पार्टनर हैं.
ये दावा नया नहीं है बल्कि जनवरी से सोशल मीडिया पर वायरल रहा है, तब से ही जब से कोरोना वायरस का संक्रमण और उससे जुड़ी फेक न्यूज फैलना शुरू हुई है. इस पोस्ट में जिस पेटेंट की चर्चा हुई है वो उस कोरोना वायरस पशुओं के लिए होता है, न कि मानवों के लिए. Annenberg Public Policy Center ने इसे लेकर एक फैक्ट चैक किया है, जिसके मुताबिक पेटेंट नंबर 10,130,701 प्रिब्राइट इंस्टीट्यूट ने फाइल किया था, जो कि सिर्फ पोल्ट्री और पक्षियों में वायरल रोगों को ठीक करता है. पेटेंट यहां देख सकते हैं. साथ ही प्रीब्राइट इंस्टीट्यूट ने स्पष्ट तौर पर अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि ‘अभी मानव कोरोना वायरस के साथ काम नहीं कर रहे हैं’.
इसके बाद ये भी दावा किया गया है कि बिलिनियर इन्वेस्टर जॉर्ज सोरोस का इस लैब से संबंध है. फैक्टचैकर स्नूप ने भी इसका पता लगाया है.
वायरस पोस्ट में ये भी दावा किया गया है कि भारत ने बिल गेट्स पर इसलिए मुकदमा ठोका है क्यों कि उन्होंने तीसरी दुनिया की 9 से 15 साल की 77,000 लड़कियों को HPV वैक्सीन दे दी, जिसकी वजह से उनमें से कई की मौत हो गई.
पिछले दावों की तरह ये दावा भी गलत है और भ्रमित करने वाला है.
यह इस तथ्य पर आधारिता है कि 2009 में आंध्रप्रदेश और गुजरात की 3 ब्लॉक की 10-14 साल की लड़कियों को सर्वाईकल कैंसर का वैक्सीन दिया गया. ये ग्लोबल प्रोजेक्ट का हिस्सा था. जिसका नाम था “HPV Vaccine: Evidence for Impact”. ये भारत के साथ-साथ पेरू, पराग्वे और वियतनाम में भी किया गया था. इसे अमेरिकन NGO Program for Appropriate Technology in Health (PATH) ने भारत में मेडिकल काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के साथ मिलकर चलाया था.
रिपोर्ट के मुताबिक आंध्रप्रदेश की 13,791 लड़कियों को वैक्सीन के तीनों डोज दिए गए. वहीं गुजरात में 10,259 में से सिर्फ 9,637 लोगों को ही तीसरा डोज मिल सका. लेकिन फिर कुछ रिपोर्ट्स आईं कि जिन लोगों को PATH प्रोजेक्ट के तहत वैक्सीन दी गई थी उनमें से 7 लड़कियों की मौत हो गई है. फिर मार्च 2010 में स्टडी पर रोक लगा दी गई.
इसकी इंक्वायरी करने के लिए भारत सरकार ने एक कमेटी बनाई. कमिटी के मुताबिक आंध्रप्रदेश और गुजरात से इस केस के संबंध में 5 लोगों की मौत हुई है. लेकिन कमिटी की जांच में पता चला कि लड़कियों की मौत अलग-अलग कारणों से हुई है. कमेटी को कोई ऐसा कारण नहीं मिला जिससे साबित हो सके कि लड़कियों की मौत वैक्सीन की वजह से हुई.
इसलिए पोस्ट में जैसा दावा किया गया है कि लड़कियों की मौत वैक्सीनेशन से हुई वो दावा गलत और भ्रामक साबित होता है.
इसके अलावा जो दावा किया गया है कि गेट्स ने इसकी फंडिंग की तो साफ है कि ये प्रोजेक्ट Program for Appropriate Technology in Health (PATH) नाम का NGO चला रहा था और हमें ऐसी कोई भी रिपोर्ट नहीं मिली जिसमें ये बताया गया हो कि भारत की सरकार ने पाथ पर इस प्रोजेक्ट को लेकर कोई मुकदमा किया है.
इसलिए साफ है कि ये पोस्ट कई सारे गलत, भ्रामक जानकारियों से बनाया गया है जिसका सच से कोई लेना देना नहीं है.
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