Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Webqoof Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019चुनावी भाषण में किए गए भ्रामक दावों को कैसे आगे बढ़ाता है मीडिया?

चुनावी भाषण में किए गए भ्रामक दावों को कैसे आगे बढ़ाता है मीडिया?

सिद्धार्थ सराठे & अभिषेक आनंद
वेबकूफ
Published:
<div class="paragraphs"><p>चुनावी भाषणों में किए गए भ्रामक दावों का सच</p></div>
i

चुनावी भाषणों में किए गए भ्रामक दावों का सच

फोटो : Quint Hindi

advertisement

21अप्रैल 2024 को राजस्थान के बांसवाड़ा में एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) ने कांग्रेस (Congress) मेनिफेस्टो को लेकर कुछ दावे किए. उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी लोगों की संपत्ति लेना चाहती है और उन्हें बांटना चाहती है 'जो ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं.

जब देश के शीर्ष नेता, खासकर प्रधानमंत्री कुछ बोलते हैं तो जाहिर है मीडिया उसे प्रसारित करती है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ.

कई मेनस्ट्रीम न्यूज चैनल और डिजिटल न्यूज चैनलों ने कांग्रेस मेनिफेस्टो को लेकर ये दावा करते प्रधानमंत्री का वीडियो चलाया, जिनके स्क्रीनशॉट यहां देखे जा सकते हैं. इन 5 चैनलों पर आए व्यूज को ही मिलाया जाए तो इनके जरिए 4.43 लाख से ज्यादा लोगों ने प्रधानमंत्री के भाषण को सुना.

क्विंट हिंदी और द क्विंट की फैक्ट चेकिंग टीम 'वेबकूफ' समेत कई फैक्ट चेकर्स ने जब पड़ताल की, तो सामने आया कि प्रधानमंत्री का दाव तथ्यों की कसौटी पर खरा नहीं उतरता. हमने अपनी फैक्ट चेक रिपोर्ट में एक ही भाषण में प्रधानमंत्री की तरफ से किए गए दोनों दावों की पड़ताल की.

द क्विंट और क्विंट हिंदी के इंस्टाग्राम हैंडल से शेयर किए गए सही फैक्ट्स पर आए व्यूज देखे जा सकते हैं. जाहिर है ये प्रधानमंत्री के भाषण पर आए व्यू से बहुत कम हैं. पर हम इस बात पर जोर क्यों दे रहे हैं ? क्योंकि यहीं से ये साबित होता है कि सही फैक्ट्स उतने लोगों तक नहीं पहुंच पाते, जितने लोगों तक भ्रामक दावे पहुंच जाते हैं.

इससे ज्यादा चिंताजनक बात ये है कि कई बड़े मीडिया संस्थानों के पास एक फैक्ट चेक विंग नहीं, जो ये बता सके कि नेताओं की तरफ से किया गया कौनसा दावा तथ्यों के आधार पर सच है, कौनसा नहीं.

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) की रिपोर्ट में बताया गया है कि भ्रामक सूचनाएं चुनावी प्रक्रिया में उथल पुथल पैदा कर सकती हैं. यही नहीं, रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि भारत के चुनावों में भ्रामक सूचनाएं सबसे बड़ी समस्या में से एक हैं और ये चुनाव को प्रभावित कर सकती हैं.

इस खास रिपोर्ट में, हम समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे नेताओं की तरफ से किए गए भ्रामक दावों को मेन स्ट्रीम मीडिया के जरिए आगे बढ़ाया जाता है. ये समझने के लिए हमने बात की है कुछ पत्रकारों और फैक्ट चेकर्स से, कि आखिर ये स्थिति क्यों बनी ? क्यों नेताओं के भ्रामक भाषणों के साथ ही उनका सच या सही तथ्य भी दर्शकों को नहीं बताए जाते? और इस स्थिति से कैसे निपटा जा सकता है?

ब्रेकिंग न्यूज की त्रासदी/दुविधा/जल्दबाजी

इसी क्रम में, कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी पर ये आरोप लगाते हुए हमला करना शुरू किया कि सरकार बनने पर बीजेपी संविधान खत्म करने की तैयारी कर रही है.

यहां तक कि AIMIM नेता असदउद्दीन ओवैसी ने भी अपने चुनावी भाषणों में बीजेपी पर कुछ ऐसे ही आरोप लगाए.

हालांकि, बीजेपी के चुनावी मेनिफेस्टो को देखा जाए तो ऐसा कुछ नहीं लिखा है. पर इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि कुछ बीजेपी नेता ऐसे हैं, जिन्होंने अपने भाषणों में संविधान में बदलाव करने की बात कही है. पर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने संविधान बदलने की बात को सिरे से खारिज किया है.

ये रिपोर्ट 2 मई को छपी थी 

सोर्स : द हिंदू 

ये रिपोर्ट 25 मई को छपी थी 

सोर्स : बिजनेस स्टैंडर्ड

ये रिपोर्ट 27 अप्रैल को छपी थी

सोर्स : इकोनॉमिक टाइम्स

पार्टी पर लगे ये आरोप हालांकि नए नहीं हैं. पर न्यूज रिपोर्ट्स में आरोपों के साथ इस बात के सबूत शामिल ना होना, जिससे पता लग सके कि आरोप सच हैं या नहीं, लोगों को भ्रमित कर सकता है.

वैश्विक स्तर की फैक्ट चेकिंग वेबसाइट Logically Facts की इंडिया फैक्ट चेकिंग हेड कृतिका गोयल से हमने बात की. उन्होंने कहा कि न्यूज संस्थानों की ये पूरी जवाबदेही बनती है कि वह सही तथ्य लोगों के सामने पेश करें.

" दर्शकों का एक बड़ा तबका न्यूज प्लेटफॉर्म्स को फॉलो करता है. एक उदाहरण के तौर पर समझें, तो अगर किसी ने अखबार में कुछ पढ़ा है या टीवी में देखा है, तो उस कंटेंट को लेकर दर्शक के मन में एक भरोसा रहता है. अगर हम दर्शकों तक पहुंचने वाले कंटेंट को वेरिफाई ही नहीं करेंगे, उसके सच होने की पड़ताल ही नहीं करेंगे, तो आम इंसान आसानी से भ्रमित हो सकता है. यहां से विश्वसनीयता कम होने का संकट भी शुरू होता है.
कृतिका गोयल, हेड ऑफ एडिटोरियल ऑपरेशंस (INDIA), Logically

नेताओं के भाषणों का सच जाने बिना क्यों चलाते हैं न्यूज चैनल ? 

ये समझने के लिए कि क्यों न्यूज संस्थान नेताओं के भाषणों को तब भी चलाते हैं, जब ये साबित हो चुका होता है कि भाषण में किया गया दावा तथ्यात्मक रूप से सच नहीं है. द क्विंट ने एक क्षेत्रीय चैनल के एडिटर से संपर्क किया. एडिटर ने अपने संस्थान और खुद की पहचान जाहिर ना करने की शर्त के साथ हमें कुछ वजहें बताईं.

  • ज्यादा व्यूअरशिप : जब आप एक तरफा भाषण चलाते हैं, तो आपके चैनल पर अच्छा इंगेजमेंट और व्यू आते हैं, क्योंकि नेताओं के भाषण उनके समर्थक देखते हैं. अगर ये बताया जाएगा कि भाषण में किए गए दावे तथ्यात्मक रूप से सच नहीं, तो शायद नेताओं के समर्थक वर्ग को पसंद ना आए.

  • कोई SOP नहीं : न्यूज एडिटर ने आगे बताया कि आमतौर पर न्यूजरूम में ऐसे कोई दिशा निर्देश निर्धारित ही नहीं किए जाते, जो सब एडिटर या कंटेंट राइटर्स को दिए जाएं. जिनमें बताया गया हो कि बयानों का फैक्ट चेक करना जरूरी है.

  • मीडिया पर दबाव : उन्होंने आगे बताया कि मीडिया पर लगातार बढ़ रहे दबाव के चलते ऐसे बहुत कम मीडिया संस्थान हैं, जो असल में नेताओं की तरफ से किए गए भ्रामक दावों को उजागर कर सकते हैं. वो संस्थान जो सच पहुंचा पा रहे हैं, वो बड़ा रिस्क ले रहे हैं.

हमने एक नेशनल चैनल की डिजिटल विंग के एडिटर से भी बात की. उनसे पूछा कि क्या न्यूज रूम में खबरों का सच पता लगाने के लिए फैक्ट चेकर्स नहीं रखे जा सकते ? तो उन्होंने जवाब में कहा कि ''संसाधनों की कमी है. कम लोग ज्यादा लोगों के हिस्से का काम कर रहे हैं. सब-एडिटर या कंटेंट राइटर के तौर पर कम करने वालों पर बहुत सारी संख्या में खबरें करने का प्रेशर है. इतना प्रेशर होता है कि न्यूज रूम में जल्दबाजी में कई बार गलतियां हो जाती हैं.''

क्या फैक्ट चेकर की समस्या मेन स्ट्रीम मीडिया पर फेक न्यूज चलने से बढ़ जाती है ? : कृतिका गोयल का मानना है कि जब भ्रामक सूचनाएं मीडिया प्लेटफॉर्म पर ही चलने लगती हैं, तब फैक्ट चेकर्स की मुश्किलें बढ़ती हैं.

न्यूज संस्थानों की बात करें खासकर अखबार, टीवी और मेन स्ट्रीम डिजिटल चैनल, तो इनको लेकर लोगों में आमतौर पर एक विश्वास होता है. इन प्लेटफॉर्म्स की पहुंच बड़ी संख्या में लोगों तक है, तो उनकी तरफ से फैलाए जा रहे नैरेटिव का सामना करना मुश्किल है. ये सुनिश्चित करना भी बहुत मुश्किल काम है कि फैक्ट चेक उतने लोगों तक पहुंच जाए, जितने लोगों तक मीडिया के जरिए भ्रामक सूचना पहुंची है. यही वजह है कि जब हम मीडिया लिट्रेसी की बात करते हैं, तो हमारा जोर इस बात पर होता है कि सूचना कहीं से भी आए, उसे वेरिफाई जरूर करें.
कृतिका गोयल, हेड ऑफ एडिटोरियल ऑपरेशंस (INDIA), Logically

वजह चुनावी मौसम है, या फिर ऐसा होना सामान्य है ?

भ्रामक सूचनाओं का न्यूज रिपोर्ट्स में होना कोई नई बात नहीं है. ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं जब मेन स्ट्रीम मीडिया संस्थानों ने भ्रामक नैरेटिव को आगे बढ़ाया है. यहीं से ये भ्रामक दावे आगे जाकर बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचते हैं.

एक उदाहरण - केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मीडिया प्लेटफॉर्म पर ही हुए इंटरव्यू में दावा किया कि बीजेपी को सार्वजनिक की गई इलेक्टोरल बॉन्ड में से केवल 6,000 करोड़ रुपए का चंदा मिला है, जबकि कुल इलेक्टोरल बॉन्ड 20,000 करोड़ रुपए के हैं.

शाह ने आगे कहा कि बीजेपी के 300 से ज्यादा सांसद और 11 करोड़ सदस्य पार्टी के लिए काम कर रहे हैं और उन्हें लगभग 6,000 करोड़ रुपये मिले थे. उन्होंने आगे आरोप लगाया कि बाकी दलों के सांसदों की संख्या समान होती, तो चुनावी बॉन्ड से उनका कलेक्शन बीजेपी से भी ज्यादा होता.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

आज तक न्यूज वेबसाइट पर 16 मार्च को पब्लिश हुई रिपोर्ट

सोर्स : स्क्रीनशॉट/आज तक 

इंडिया टीवी पर 16 मार्च 2024 को छपी रिपोर्ट

सोर्स : इंडिया टीवी

अमित शाह के दावे में दिक्कत ये है कि चुनाव आयोग (ECI) ने 14 मार्च को जो चुनावी बॉन्ड जारी किए, उनका कुल मूल्य लगभग 12,000 करोड़ रुपए थे. जबकि अमित शाह का दावा है कि विपक्ष को 14,000 करोड़ रुपए के बॉन्ड मिले, यहीं ये दावा तथ्यात्मक रूप से गलत साबित होता है. कई मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने अमित शाह के इस बयान को एक खबर के रूप में बिना सही तथ्य बताए शेयर किया.

ये रिपोर्ट 18 मार्च को पब्लिश हुई थी 

सोर्स : स्क्रीनशॉट/द क्विंट

ना न्यूज एंकर ने गृह मंत्री अमित शाह से इस दावे पर कोई क्रॉस क्वेश्चन किया. न ही इस बयान के बाद छपी न्यूज रिपोर्ट्स में चुनाव आयोग के असली आंकड़े दिए गए हैं.

ऐसा ही मामला 2021 में सामने आया, जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दावा किया कि जम्मू और कश्मीर को छोड़कर, 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से 'कोई आतंकी हमला' नहीं हुआ. इस बयान को कई मीडिया संस्थानों ने चलाया.

राजनाथ सिंह के दावे पर लाइव हिंदुस्तान की रिपोर्ट

सोर्स : स्क्रीनशॉट/Hindustan Live

जबकि सरकारी आंकड़े ही देखें, तो सच्चाई कुछ और सामने आती है. लोकसभा में पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी की प्रतिक्रिया के मुताबिक, देश के भीतरी इलाकों में 2014 से 2021 के बीच आतंकवादी गतिविधियों की 6 घटनाएं हुई थीं.

  • सरकार स्पष्ट रूप से किसी भी आतंकी हमले को 'बड़ा' या 'मामूली' के रूप में परिभाषित नहीं करती है. हालांकि, इसने 2018 में संसद में भीतरी इलाके के संदर्भ में 'बड़ा' शब्द का इस्तेमाल किया है.

7 सितंबर 2021 को छपी रिपोर्ट

सोर्स : स्क्रीनशॉट/वेबकूफ

सोशल मीडिया पर एक मकसद से काम करते हैं राजनीतिक विज्ञापन और नैरेटिव

भले ही राजनीतिक नैरेटिव को आगे बढ़ाने में न्यूज चैनलों की अहम भूमिका है, पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी पीछे नहीं हैं.

उदाहरण - बीजेपी छत्तीसगढ़ के ऑफिशियल X अकाउंट पर अपलोड किए गए इस वीडियो को देखिए, जिसमें इनडायरेक्टली ये आरोप लगाया गया है कि कांग्रेस पार्टी लोगों के मंगलसूत्र छीनने की कोशिश कर रही है.

ये दावा बार बार किया जाता रहा है. बावजूद इसके कि कई फैक्ट चेकिंग संस्थान इसकी पड़ताल कर चुके हैं. द क्विंट की वेबकूफ टीम ने ऐसे दावों को संकलित किया है, जो बीजेपी नेता चुनावी कैंपेन मेंं लगातार करते हैं.

  • कांग्रेस मेनिफेस्टो को लेकर किया गया ये दावा कि मुसलमानों को सारी संपत्ति बांट दी जाएगी.

  • बीजेपी ने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीयों को निकलवाने के लिए रूस - यूक्रेन युद्ध रुकवा दिया था.

  • ये गलत दावा किया गया कि INDIA गठबंधन में शामिल पार्टियां लोकसभा चुनाव में उतनी सीटों 272 पर लड़ ही नहीं रही हैं, जिनपर बहुमत आ सके.

  • इन सभी दावों का सच बताती पूरी रिपोर्ट आप यहां पढ़ सकते हैं

2 मई को पब्लिश की गई रिपोर्ट

लोकसभा चुनाव के नतीजे जल्द ही जारी होने वाले हैं. ये कहना गलत नहीं होगा कि अगर किसी खास नैरेटिव के समर्थन में भ्रामक दावे सोशल मीडिया पर फैलते हैं, तो इसका फायदा चुनाव में भी हो सकता है. हालांकि, ओवरलोड होती सूचनाओं के बीच ये मीडिया की जिम्मेदारी है कि वो दर्शकों और पाठकों तक सही तथ्य पहुंचाएं.

(अगर आपक पास भी ऐसी कोई जानकारी आती है, जिसके सच होने पर आपको शक है, तो पड़ताल के लिए हमारे वॉट्सऐप नंबर  9540511818 या फिर मेल आइडी webqoof@thequint.com पर भेजें. सच हम आपको बताएंगे. हमारी बाकी फैक्ट चेक स्टोरीज आप यहां पढ़ सकते हैं.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT