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सोशल मीडिया पर एक ग्राफिक शेयर हो रहा है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि मोहनदास करमचंद गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi) को महात्मा का खिताब ब्रिटिश हुकूमत ने 1938 में दिया था.
किसने किया ये दावा ? : आए दिन ट्विटर पर भ्रामक दावे करने वाले ऋषि बागश्री समेत कई सोशल मीडिया यूजर्स ने ये दावा किया. दावे के साथ लिखा है कि ये ब्रिटिश सरकार की तरफ से जारी किया गया दस्तावेज है.
क्या ब्रिटिश हुकूमत ने दी 'महात्मा' की उपाधि ? : नहीं, हमें ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला, जिससे ये दावा सही साबित होता हो.
कांग्रेस की प्रांतीय सरकार ने एक मेमोरेंडम जारी करते हुए एमके गांधी को महात्मा का खिताब दिया था, ब्रिटिश हुकूमत ने नहीं.
इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब में बताते हैं कि पहली बार एमके गांधी को 'महात्मा' से संबोधित करने का श्रेय प्रणजीवन महता को जाता है.
हमें इस बात के सुबूत भी मिले कि रविंद्रनाथ टैगोर ने 1915 में अपने दोस्त को लिखे पत्र में गांधी के लिए 'महात्मा' शब्द का इस्तेमाल किया था.
गुजरात हाइकोर्ट ने 2016 में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए माना था कि सबसे पहले रविंद्र नाथ टैगार ने एमके गांधी के नाम के आगे 'महात्मा' लगाया था.
जैसा कि वायरल ग्राफिक में ही नीचे लिखा देखा जा सकता है कि ''सेंट्रल प्रोविंस की कांग्रेस सरकार ने 1938 में सभी (और खासकर ब्रिटिश) अधिकारियों को निर्देशित किया था कि गांधी को 'महात्मा' कहकर संबोधित किया जाए.
यहां एक जरूरी तथ्य ये भी जान लेना जरूरी है कि 1937 के प्रांतीय चुनाव जीतने के बाद सेंट्रल प्रोविंस और बेरार समेत 7 राज्यों में कांग्रेस सत्ता में आ गई थी
इन प्रांतों में Government of India Act 1935 के तहत राज्य की सरकारों को स्वायत्ता दी गई थी. केंद्र और प्रांतीय सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया था.
हालांकि, कांग्रेस के मंत्रियों ने सितंबर 1939 में इस्तीफा दे दिया था. ये इस्तीफा उस फैसले का विरोध करते हुए दिया गया था, जिसमें दूसरे विश्व युद्ध में भारत को शामिल करने की बात कही गई थी.
प्रणजीवन मेहता ने पहली बार कहा था 'महात्मा' - गुहा
अपनी किताब Gandhi Before India में लेखक और इतिहासकार रामचंद्र गुहा कहते हैं कि ''आम राय' यही है कि 'महात्मा' की उपाधि नोबल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर ने 1919 में दी थी.
वो आगे बताते हैं कि गांधी को 'महात्मा' बताने से जुड़ा एक और दावा है. ये दावा गुजरात के गोंडल शहर में साल 1915 को लेकर है. गांधी के करीबी दोस्त प्रणजीवन महता ने एक पर्सनल लेटर में गांधी को महात्मा कहा था.
लेखक एस.आर. महरोत्रा के जर्नल के मुताबिक, महता ने गोपाल कृष्ण गोखले को 8 नवंबर 1909 को एक पत्र लिखा था. इस पत्र में गांधी को महात्मा कहा गया था.
क्विंट की फैक्ट चेकिंग टीम वेबकूफ को वो सुबूत भी मिला, जिससे साबित होता है कि टैगोर ने गांधी के नाम के आगे 1915 में 'महात्मा' लगाया था. टैगोर ने 'महात्मा' शब्द का उपयोग अपने दोस्त सीएफ एंड्रूज को लिखे पत्र में गांधी का जिक्र करते हुए किया था.
18 फरवरी 1915 के पत्र में टैगोर ने कहा ''मुझे उम्मीद है कि महात्मा और श्रीमती गांधी बोलपुर आ गए हैं. और शांति निकेतन ने वैसे ही उनका स्वागत किया जैसा किया जाना चाहिए था''
रविंद्रनाथ टैगोर ने गांधी को 'महात्मा' की उपाधि दी : हाईकोर्ट
साल 2016 में नारनभाई मारू और गुजरात पंचायत के बीच चल रहे मामले में सुनवाई करते हुए, गुजरात हाईकोर्ट ने किताबों का हवाला देते हए बताया कि रविंद्रनाथ टैगोर ने राष्ट्रपति को महात्मा की उपाधि दी थी.
याचिकाकर्ता ने सही जवाब में 'रविंद्रनाथ टैगोर' चुना था. जबकि उत्तर कुंजी (Answer Key) में बताया गया था कि एक अज्ञात पत्रकार ने महात्मा का खिताब दिया था. याचिका पर सुनवाई करते हुए बेंच ने फैसला सुनाया था कि 1915 में टैगोर ने गांधी को ये उपाधि दी थी, इसके पहले गांधी भी टैगोर के नाम के आगे 'गुरुदेव' लगा चुके थे.
हमें ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला, जिससे पुष्टि होती हो कि ब्रिटिश सरकार ने ऐसी कोई उपाधि दी हो.
क्विंट ने महाराष्ट्र के जलगांव में स्थित गांधी रिसर्च फाउंडेशन के डायरेक्टर और एमके गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी से भी बात की. उन्होंने बताया कि ये मेमोरेंडम कांग्रेस की प्रांतीय सरकार ने जारी किया था, ब्रिटिश सरकार ने नहीं.
गांधी को 'केसर-ई-हिंद' स्वर्ण पदक मिला था, जब 1915 में उन्हें राजा के जन्मदिन पर सम्माननीयों की सूची में शामिल किया गया था.
उन्हें जुलू वॉर मेडल भी मिला था. ये पुरस्कार गांधी को साउथ अफ्रीका में 1906 में भारतीय वॉलेंटियर्स की एम्बुलेंस के प्रभारी अधिकारी के रूप में सेवाएं देने के लिए मिला था. इसके अलावा युद्ध के दौरान स्ट्रेचर खींचने वाले भारतीय वॉलेंटियर्स के दल के असिस्टेंट सुप्रीटेंडेंट की भूमिका निभाने के लिए बोअर युद्ध पदक भी मिला था.
गांधी ने 1920 में ब्रिटिश सरकार से नाराजगी जाहिर करते हुए तबके वॉइसरॉय को एक पत्र लिखा था और मेडल उन्होंने वापस कर दिए थे.
पड़ताल का निष्कर्ष : हमें ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला, जिससे पुष्टि होती हो कि ब्रिटिश सरकार ने गांधी को 'महात्मा' की उपाधि दी थी.
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