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Kabul Airport (काबुल एयरपोर्ट) के पास 26 अगस्त को हुए विस्फोटों के बाद, खून से सने कपड़ों की एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है.
फोटो को हाल का बता शेयर कर ये दावा किया जा रहा है कि ये खून की बाढ़ है. विस्फोटों की वजह से करीब 170 लोगों की मौत हुई है.
हालांकि, हमने पाया कि ये फोटो 2017 की है, जब काबुल में एक प्रतीकात्मक विरोध प्रदर्शन किया गया था. ये प्रदर्शन देश में बड़ी संख्या में मारे गए लोगों के के बारे में जागरूकता लाने के लिए आयोजित किया गया था. अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNAMA) के अनुसार, 2016 में करीब 11,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे.
कई सोशल मीडिया यूजर्स ने इस फोटो को शेयर कर दावा किया है कि ये फोटो हाल की है.
एक यूजर ने फोटो शेयर कर कैप्शन में लिखा, ''काबुल एयरपोर्ट का भयानक दृश्य''. इस पोस्ट में #KabulAirport #AfghanistanBurning जैसे हैशटैग का भी इस्तेमाल किया गया था.
कई ट्विटर यूजर ने ऐसे ही दावों के साथ इस फोटो को शेयर किया है.
वायरल फोटो को गूगल पर रिवर्स इमेज सर्च करने पर फारसी भाषा की ऐसी कई न्यूज रिपोर्ट्स मिलीं, जिनमें इस फोटो का इस्तेमाल किया गया था.
हमें 15 फरवरी 2016 की फारसी भाषा की रिपोर्ट मिली. इसमें इस वायरल फोटो के साथ और भी इसी तरह की तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया था. आर्टिकल का टाइटल था, ''वीडियो रिपोर्ट: काबुल सागर खून से लाल हो गया.'' (गूगल ट्रांसलेटर के अनुसार)
Payam Aftab News Network के इस आर्टिकल का गूगल ट्रांसलेटर की मदद से अनुवाद करने पर हमने पाया कि इस आर्टिकल में बताया गया था कि, ‘Afghanistan 1400’ नाम के एक संगठन ने एक प्रतीकात्मक प्रदर्शन में काबुल नदी में 200 किलोग्राम लाल रंग का छिड़काव किया था, जिससे पानी का रंग लाल हो गया.
Shafaqna नाम की वेबसाइट पर हमें एक और आर्टिकल मिला. इसमें इस विरोध के बारे में बताया गया था कि ये देश में ''नागरिक हताहतों पर UNAMA की वार्षिक रिपोर्ट की घोषणा" के बाद आयोजित किया गया था.
हमने Afghanistan 1400 का सोशल मीडिया हैंडल भी चेक किए. हमें मीडिया रिलीज के साथ इस प्रोटेस्ट की एक तस्वीर मिली. जहां संगठन ने उनके विरोध से जुड़ा ऐलान किया था.
संगठन के फेसबुक पेज पर भी इसी वायरल फोटो के साथ एक न्यूज आर्टिकल था. ये आर्टिकल 12 फरवरी 2017 को पब्लिश किया गया था.
बाद में एक अन्य पोस्ट में इस घटना के बारे में विस्तार से बात की गई थी. फारसी कैलेंडर के मुताबिक पोस्ट में जो तारीख थी, वो "1395/11/22" थी.
फारसी वेबसाइटों में बताई तारीख को गूगल ट्रांसेटर में अनुवाद करने पर हमने पाया कि ये पोस्ट 2016 की है. हालांकि हमने तारीख को फारसी से ग्रेगोरियन कैलेंडर में बदला और पाया कि ये साल 2017 था.
मतलब साफ है, अफगानिस्तान में 2017 में आयोजित एक प्रतीकात्मक विरोध प्रदर्शन की पुरानी फोटो को काबुल एयरपोर्ट के बाहर हाल में हुए विस्फोटों से जोड़कर गलत दावे से शेयर किया जा रहा है.
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