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पश्चिम बंगाल विधानसभा (West Bengal Assembly) में हुई मारपीट की घटना कोई पहली बार नहीं है. भारत के अन्य राज्यों में भी लोकतंत्र के इस मंदिर को कई बार लज्जित होना पड़ा है, जब उसकी गरिमा को विधायकों ने गिराया है. यूपी से लेकर तमिलनाडु और केरल से लेकर महाराष्ट्र विधानसभा में भी सदन की गरिमा को ठेस पहुंची है. आज हम आपको कुछ ऐसी घटनाओं के बारे में बताएंगे कि कब कब जनप्रतिनिधियों ने लोकतंत्र के मंदिर कहे जाने वाले इस सदन की गरिमा को ठेस पहुंचाई है.
दरअसल, पश्चिम बंगाल विधानसभा अपने नियत समय पर शुरू हुई. विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने बोलना शुरू किया. इस दौरान उन्होंने ममता बनर्जी की सरकार को प्रदेश में हो रही हिंसा और कानून व्यवस्था पर घेरना शुरू किया और बीरभूम हिंसा पर ममता बनर्जी से बयान देने की मांग करने लगे. इसके बाद TMC के विधायकों ने नारेबाजी शुरू कर दी.
उधर बीजेपी के विधायकों ने भी नारेबाजी शुरू कर दी. इस दौरान दोनों पक्षों के बीच जमकर हंगामा और नारेबाजी हो ही रही थी कि विधायक अपनी सीट से उठकर वेल में आ गए और आपस में धक्का मुक्की करने लगे. इस दौरान टीएमसी विधायक आसित मजूमदार की नाक टूट गई और बीजेपी विधायक मनोज तिग्गा के कपड़े फाड़ दिए गए.
पश्चिम बंगाल में ही दूसरी घटना 8 फरवरी, 2017 को हुई. पश्चिम बंगाल विधानसभा में कांग्रेस और वाम मोर्चा के विधायक नारेबाजी के दौरान मार्शलों से भिड़ गए. सदन के भीतर तख्तियां और पोस्टर लेकर प्रदर्शन करने पर विपक्ष के नेता अब्दुल मन्नान को दो दिन के लिए निलंबित कर दिया. जब मन्नान ने विरोध किया तो उन्हें सुरक्षाकर्मियों की मदद से बाहर निकाला गया. इस दौरान मार्शलों के साथ उनकी जमकर हाथापाई हुई थी, जिसमें वो घायल हो गए थे. बाद में उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा था.
13 मार्च, 2015 को केरल विधानसभा में उस समय अप्रत्याशित घटना हुई थी, जिस समय विपक्ष की भूमिका निभा रहे एलडीएफ के सदस्यों ने तत्कालीन वित्त मंत्री के एम मणि को राज्य का बजट पेश करने से रोकने की कोशिश की थी. उस समय एम मणि रिश्वत घोटाले में आरोपों का सामना कर रहे थे. केरल विधानसभा में तत्कालीन वित्तमंत्री एम मणि ने मार्शलों के घेरे में बजट पढ़ा था. उस समय तत्कालीन एलडीएफ सदस्यों ने अध्यक्ष की कुर्सी को मंच से फेंकने के अलावा पीठासीन अधिकारी की मेज पर लगे कंप्यूटर, की-बोर्ड और माइक जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को भी कथित रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया गया था.
9 नवंबर 2009 को विधानसभा में विधायकों के शपथ ग्रहण के लिए बैठक बुलाई गई थी. इससे पहले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने विधायकों से सिर्फ मराठी में ही शपथ लेने की मांग की थी. लेकिन, समाजवादी पार्टी के विधायक अबु आजमी ने हिंदी में शपथ ली. इस पर MNS के 4 विधायक हिंसक हो गए.
21 अक्टूबर 1997 यूपी के काले दिन के रूप में याद रखा जाएगा. उस दिन विधानसभा के भीतर विधायकों के बीच माइकों की बौछार, लात-घूंसे, जूते-चप्पल सब चले थे. विपक्ष की गैरमौजूदगी में कल्याण सिंह ने बहुमत साबित कर दिया था. उन्हें 222 विधायकों का समर्थन मिला, जो बीजेपी की मूल संख्या से 46 अधिक था. कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने सदन में वोटिंग की मांग की. कांग्रेस के साथ बीएसपी विधायक भी हंगामा करने लगे.
दरअसल, 1987 में एमजी रामचंद्रन की मौत के बाद उनकी पत्नी जानकी रामचंद्रन को 7 जनवरी 1988 को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलायी गयी. 28 जनवरी को उन्हें विधानसभा में विश्वास मत प्राप्त करना था. भारी शोर शराबे के बीच तत्कालीन स्पीकर पीएच पंडियन ने जानकी के विश्वास मत जीत लेने की घोषणा की.
उस वक्त बागी जयललिता ने गवर्नर के पास जाकर अपनी शिकायत दर्ज करायी थी. तब जयललिता ने इसे लोकतंत्र की हत्या बताते हुए गवर्नर से जानकी की सरकार को बर्खास्त करने की मांग की थी. उस वक्त गवर्नर ने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की और जानकी की सरकार को बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. उस समय स्पीकर ने बताया था कि उनके साथ विधायकों ने हाथापाई की और उनकी कमीज फाड़ भी दी गयी. हालांकि, डीएमके नेता स्टालिन का दावा था कि स्पीकर ने अपनी शर्ट खुद ही फाड़ ली.
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