Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019World Food day: कैसे हासिल होगा लक्ष्य, देशभर में UP के 29 जिले कुपोषण में आगे

World Food day: कैसे हासिल होगा लक्ष्य, देशभर में UP के 29 जिले कुपोषण में आगे

देशभर में 100 सबसे ज्यादा कुपोषित जिलों में UP का बहराइच टॉप पर.

शुभम श्रीवास्तव
न्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>World Food day: देशभर में 100 सबसे ज्यादा कुपोषित जिलों में UP का बहराइच टॉप पर</p></div>
i

World Food day: देशभर में 100 सबसे ज्यादा कुपोषित जिलों में UP का बहराइच टॉप पर

(फोटो: iStock)

advertisement

यूपी में कुपोषण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. सरकार की तमाम योजनाओं के बावजूद उत्तर प्रदेश के कई जिलों में कुपोषण का स्तर लगातार ज्यादा बना हुआ है. एक समय था जब खाद्यान्न की कमी की वजह से तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देशवासियों से सप्ताह में एक दिन उपवास करने का आह्वान किया था. ये वो दौर था जब विदेश से खाद्यान्न आयात किए जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. लेकिन, आज का समय है, जब भारत दुनिया के अन्य देशों को खाद्यान्न उपलब्ध करवा रहा है.

भारत में संचालित गरीब कल्याण योजना

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कोविड-19 की पहली लहर के दौरान 26 मार्च, 2020 को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की शुरुआत की गई थई. इसके अंतर्गत 80 करोड़ लोगों को प्रति व्यक्ति पांच किलो अनाज और एक किलो दाल प्रतिमाह निशुल्क प्रदान किया जा रहा है. अभी तक इस योजना के कुल छह चरण पूर्ण हो चुके हैं और इस पर 3.45 लाख करोड़ रुपए व्यय हो चुके हैं. 28 माह तक 80 करोड़ लोगों को निशुल्क भोजन उपलब्ध कराने जैसी खाद्य सुरक्षा व्यवस्था की मिसाल दुनिया में कहीं नहीं है. हालांकि, भारत में ये योजना राशन की दुकान चलानेवाले दुकानदारों के भरोसे चलाई जा रही है. भारत में राशन की दुकान चलाने वाले अधिकतर दुकानदारों के ऊपर घटतौली के आरोप लगते रहते हैं.

क्यों नहीं लग पा रही कुपोषण पर लगाम?

कुपोषण पर नीति आयोग की ही रिपोर्ट कहती है कि देश के 100 सबसे कुपोषित जिलों में यूपी का बहराइच ज‍िला पूरे देश में टॉप पर है. यूपी के 29 जिले ऐसे हैं, जो कुपोषण के मामले में अन्य प्रदेशों के जिलों से काफी आगे हैं.

भारत सरकार ने 2022 तक देश से कुपोषण को काफी हद तक नियंत्रित करने का संकल्प लिया था, जबकि भारत में दुनिया के सबसे अधिक अविकसित (4.66 करोड़) और कमजोर (2.55 करोड़) बच्चे मौजूद हैं. इसकी वजह से देश पर बीमारियों का संकट गहराता रहता है.

राष्ट्रीय परिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़े बताते हैं कि न्यूनतम आमदनी वर्ग वाले परिवारों में आज भी आधे से ज्यादा बच्चे (51%) अविकसित और सामान्य से कम वजन (49%) के हैं. देश में इन आंकड़ों का इजाफा करने में उत्तर प्रदेश को शीर्ष पर माना गया है. हालांकि, 2022 तक कुपोषण पर काबू पाने का लक्ष्य प्रदेश सरकार का भी है, लेकिन कुपोषण की जो दर प्रदेश में है, उससे क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि इस वर्ष के भीतर लक्ष्य साधा जा सकेगा?

कुपोषण से लड़ने के लिए मौजूदा व्यवस्था जैसे आंगनबाड़ी केन्द्र, पोषण पुनर्वास केन्द्र के ऊपर ही निर्भर हैं. 6 वर्ष तक के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को दिये जाने वाला अनुपूरक पुष्टाहार योजना और भी अन्य योजनाओं का हाल क्या है? इन योजनाओं के बावजूद कुपोषण से हमारी लड़ाई कितनी चुनौतीपूर्ण है, आखिर हमारी कमी कहां है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

27 दिसंबर 2021 को नीति आयोग ने वर्ष 2019-2020 के लिए राज्य स्वास्थ्य सूचकांक का चौथा संस्करण जारी किया. इस रिपोर्ट के मुताबिक "समग्र प्रदर्शन" के मामले में केरल सबसे अव्वल रहा, जबकि उत्तर प्रदेश सबसे निचले पायदान पर रहा. रिपोर्ट के मुताबिक केरल का इंडेक्स स्कोर 82.20 रहा, जबकि उत्तर प्रदेश का महज 30.57 था, जो कि झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, असम, उड़ीसा जैसे राज्यों से भी कम है.

हालांकि, प्रदर्शन में सुधार करने की ओर बढ़ते हुए प्रदेश में 5.57 की बढ़ोत्तरी भी दर्ज हुई, लेकिन स्वास्थ और पोषण के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के मुताबिक यह वृद्धि अभी भी नाकाफी है. प्रदेश को और बेहतर स्कोरिंग की जरूरत है.

ये खुलासा नीति आयोग की नेशनल न्यूट्रीशन स्ट्रैटजी रिपोर्ट में हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के बहराइच जिले के अलावा 9 और ऐसे जिले हैं जहां कुपोषण की स्थिति अत्यंत गंभीर है, जिसमें श्रावस्ती, बलरामपुर, गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, देवरिया, सीतापुर, लखीमपुर शामिल हैं.

इन जिलों में कुपोषण के कारण पिछले 5 सालों में सबसे सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं. कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में 0 से 5 साल के 46.3 % बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और शिशु मृत्यु दर भी 64% आकंड़ों के साथ सबसे ज्यादा यूपी में ही है.

कासगंज में बाल सेवा योजना को कंधे का सहारा

कासगंज में बाल सेवा योजना के अंतर्गत निराश्रित बच्चो को हर माह एक निर्धारित रकम दी जाती है. कोरोना में जिन बच्चों के माता पिता की मृत्यु हो गई या माता और पिता में से एक लोग की मृत्यु हो गई या चाहे सामान्य अनाथ बच्चे हो, सभी को पिछले कुछ महीने से योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

कोरोना में अपने माता पिता को खो चुके बच्चो को अप्रैल 2022 से कोई पैसा नहीं मिला है और सामान्य अनाथ बच्चों को आखिरी बार योजना का लाभ जून 2022 को मिला था. तब से अभी तक एक भी बार योजना का लाभ नहीं मिल पाया है. जिले में कुल ऐसे 80 बच्चे हैं, जिनके माता पिता दोनों लोगों की मृत्यु कोरोना के समय हो गई थी. ऐसे बच्चों को 4000 रुपये प्रति माह मिलते हैं. या माता पिता में से एक व्यक्ति की मौत हो जाने पर 2500 रुपये प्रति माह के हिसाब से दिया जाता है.

भूखे पेट को भोजन दे रहा एटा का रोटी बैंक

एटा जिले की कुल आबादी करीब 22 लाख है, जिसमें करीब 25 प्रतिशत लोग रोज कमाकर खाते हैं. जब ये लोग कोई काम नहीं कर पाते हैं तो इन लोगों के सामने रोटी का संकट आ जाता है.

वहीं, 160396 लोगों को प्रति महीने राशन दिया जाता है. अगर ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो 77311 परिवार सरकारी राशन पर निर्भर रहते हैं. जिन ग्रामीणों की कुल संख्या 1177479 होती है. एटा में संचालित निशुल्क भर पेट भोजन करवाने वाले संस्था रोटी बैंक करीब 150 से 200 लोगों को निशुल्क भोजन उपलब्ध करवाती है. रोटी बैंक को संचालित करने वाले एटा के किदवई नगर के रहने वाले मोहम्मद आमिर बताते हैं कि "हम लोग संगठन को सामाजिक लोगों की सहायता के साथ मिलके करवाते हैं. यहां पर सभी लोगों को बिना किसी जाति मजहब के भोजन उपलब्ध करवाया जाता है."

(इनपुट:शुभम श्रीवास्तव)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT