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G20 शिखर सम्मेलन (G20 Summit) के पहले दिन 9 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत, मध्य पूर्व और यूरोप के एक मेगा इकनॉमिक कॉरिडोर (India Middle East Europe Economic Corridor) का ऐलान किया. PM मोदी ने इसे ऐतिहासिक साझेदारी बताते हुए कहा कि आने वाले समय में ये भारत, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच आर्थिक सहयोग का एक बड़ा माध्यम होगा. इस कॉरिडोर से दुनिया की कनेक्टिविटी और सस्टेनेबल डेवलपमेंट को एक नई दिशा मिलेगी.
प्रोजेक्ट में कौन-कौन देश शामिल: इस प्रोजेक्ट में भारत, UAE, सऊदी अरब, फ्रांस, इटली, जर्मनी और अमेरिका समेत यूरोपीय संघ के दो अलग-अलग गलियारे - पूर्वी गलियारा जो भारत को पश्चिम एशिया से जोड़ता है और एक उत्तरी गलियारा जो पश्चिम एशिया को यूरोप से जोड़ता है- शामिल होंगे.
समझौता ज्ञापन: भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे की स्थापना के लिए हस्ताक्षर किए गए समझौता ज्ञापन पर लिखा है -
इस कॉरिडोर में रेलवे, शिपिंग नेटवर्क और सड़क परिवहन मार्ग शामिल होंगे. यह परियोजना संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, जॉर्डन और इजराइल सहित मध्य पूर्व में रेलवे और बंदरगाह सुविधाओं को जोड़ेगी, जिससे इन देशों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बड़ा फायदा होगा.
उद्देश्य: इस आर्थिक गलियारे का लक्ष्य भारत, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, जॉर्डन, इजराइल और यूरोपीय संघ के लिए रेल और बंदरगाहों से जुड़ा एक नेटवर्क बनाने की है. जिसकी मदद से ये सातों देश 'पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट' के तहत इन्वेस्टमेंट करेंगे.
इसके अलावा, यह आर्थिक गलियारा बाइडेन प्रशासन के लक्ष्यों के मुताबिक, इजराइल और खाड़ी राज्यों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने में योगदान दे सकता है.
पीएम मोदी ने अपने मेगा इकॉनमिक कॉरिडोर पर टिप्णणी करते हुए कहा कि भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा "सहयोग, नवाचार और साझा प्रगति का प्रतीक" के रूप में काम करेगा.
इस बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस लॉन्च के बारे में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह "गेम-चेंजिंग निवेश" है. ये एक बहुत बड़ी डील है. आने वाले दशकों में इस आर्थिक गलियारे के बारे में हर कोई सुनेगा.
यूरोपीय संघ के अध्यक्ष, उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने इस आर्थिक गलियारे का महत्व बताते हुए कहा कि यह केवल एक रेलवे या केबल होने के बजाय, भारत, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच सबसे सीधा संबंध का एक जरिया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रमुख उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, जॉन फाइनर ने इस आर्थिक कॉरिडोर के तीन फायदे गिनवाए.
सबसे पहले, इससे ऊर्जा और डिजिटल संचार के बढ़ते प्रवाह के माध्यम से शामिल देशों के बीच समृद्धि बढ़ेगी.
दूसरा, यह परियोजना निम्न और मध्यम आय वाले देशों में विकास के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की कमी से निपटने में मदद करेगी.
तीसरा, यह मध्य पूर्व को वैश्विक व्यापार में एक अहम भूमिका निभाने में मदद करेगा.
फाइनर ने कहा कि यह परियोजना एक प्रमुख बुनियादी ढांचे की कमी को पूरा करेगी. साथ ही उन्होंने इस प्रोजेक्ट को उच्च मानक, पारदर्शी और टिकाऊ करार दिया.
वाशिंगटन डीसी में द विल्सन सेंटर में दक्षिण एशिया संस्थान के निदेशक माइकल कुगेलमैन के अनुसार, यह योजना चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के सामने एक बड़ी प्रतिक्रिया का प्रतिनिधित्व कर सकती है. कुगलमैन ने ट्विटर पर लिखा, “अगर ये डील हो जाती है तो ये डील गेम चेंजर साबित होगी क्योंकि ये भारत को मध्य पूर्व से जोड़ेगी और बेल्ट एवं रोड इनिशिएटिव को चुनौती देगी.”
इस बीच, स्वतंत्र विश्लेषक राधा कुमार ने अल जजीरा से बात की और इसे एक "अद्भुत पहल" बताया जो BRI का विकल्प पेश करेगी. कुमार ने कहा, ''चीन की शक्तियां इतनी तेजी से बढ़ रही हैं कि कई देशों को विकल्प की जरूरत महसूस होती है.'' लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि चीन की वैश्विक बुनियादी ढांचा परियोजना का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है, इसलिए जरूरी नहीं कि नई परियोजना BRI को कमजोर करेगी. साथ ही उन्होंने कहा कि भारत बेल्ट एंड रोड पहल का हिस्सा नहीं था, इसलिए यह पहल भारत को कनेक्टिविटी देती है.
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