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हमास Vs इजरायल: US, भारत की नीति में AIPAC,राइट विंग का कितना असर?

फॉरेन पॉलिसी का आधार व्यावहारिक हित होने के बावजूद स्थानीय समूह भी नीति निर्माताओं पर डालते है बाहरी दबाव

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दुनिया
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<div class="paragraphs"><p>अमेरिका-भारत दोनों जगह फिलिस्तीन मुद्दे पर है आंतरिक दबाव</p></div>
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अमेरिका-भारत दोनों जगह फिलिस्तीन मुद्दे पर है आंतरिक दबाव

(फोटो-अलटर्ड बाई द क्विंट)

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इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष में इजरायल द्वारा गाजा पर किए गए एयर स्ट्राइक में अब तक 219 फिलिस्तीनी मारे गए हैं, जिसमें 63 बच्चे थे. दूसरी तरफ इजराइल में भी 12 लोगों की मौत हुई है ,जिसमें 2 बच्चे शामिल थे. भारी पब्लिक प्रेशर के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने इजरायली प्रधानमंत्री नेतनयाहू को गाजा पर हमले को कम करने को कहा था जिसे नेतन्याहू ने यह कहकर ठुकरा दिया कि ऑपरेशन तब तक चलता रहेगा, जब तक कि वह लक्ष्य नहीं पा लेता.

लेकिन अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद(UNSC) में इजराइल के पक्ष में वीटो करने की अपनी पुरानी रणनीति में बदलाव नहीं किया है. जबकि भारत के द्वारा फिलिस्तीन मुद्दे पर अपने दशकों पुराने स्टैंड पर कायम रहते हुए UNSC में इजरायल के खिलाफ वोट करने के बाद भी भारत में उसे राइटविंग की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है.

एक ट्विटर यूजर ने लिखा “शर्मनाक डिप्लोमेसी, सरकार के द्वारा स्पाइनलेश एक्ट है यह”

हालांकि किसी भी देश की फॉरेन पॉलिसी लोगों की भावनाओं के आधार पर नहीं देश के व्यवहारिक हितों के आधार पर चलती है. बावजूद इसके अमेरिका को इजरायल-फिलिस्तीन पॉलिसी को बनाते समय मजबूत प्रो-इजराइली लॉबी AIPAC का दबाव महसूस होता है तो भारत में दक्षिणपंथी सरकार को राइटविंग समर्थकों का.

भारत के ट्रेडिशनल स्टैंड से इतर राइट विंग की अलग चाल

ऐतिहासिक रूप से भारत ने आजादी के बाद से अपने गैर औपनिवेशिक रणनीति के अंतर्गत फिलिस्तीनियों के स्व निर्णय के अधिकार का समर्थन किया है. भारत पहला गैर अरब देश था जिसने पेलेस्टाइन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन(PLO) को फिलिस्तीनी नागरिकों का अकेला वैधानिक प्रतिनिधि माना था.

1938 में महात्मा गांधी ने कहा था “फिलिस्तीन अरब वासियों का उतना ही है जितना इंग्लैंड अंग्रेजों का और फ्रांस फ्रैंचो का”. लेकिन आज के ‘ट्विटर भक्तों’ के दौर में क्या महात्मा गांधी और क्या भारत का ट्रेडिशनल स्टैंड.

प्रधानमंत्री मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह द्वारा फॉलो किए जाने का दावा करने वाले एक ट्विटर यूज़र ने इजराइली बमबारी में तबाह मीडिया टावरों का वीडियो शेयर करते हुए लिखा -"दिवाली मुबारक हो लिबरल्स #IndiaStandWithIsrael"

भारत में #ISupportIsrael, #IndiaWithIsrael, #IndiaStandsWithIsrael and #IsrealUnderFire ट्रेंड करता रहा. 12 मई को बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या, जो अपने मुस्लिम विरोधी तेवर के लिए जाने जाते हैं, ने ट्विटर पर लिखा "इजरायल हम तुम्हारे साथ हैं,डटे रहो."

भारतीय राइट विंग ने शनिवार की रात #PalestineTerrorist ट्विटर पर ट्रेंड करवा दिया. सुरक्षा परिषद में भारत के स्थाई प्रतिनिधि टी.एस त्रिमूर्ति ने वर्चुअल मीटिंग में जब फिलिस्तीनी मुद्दे का साथ देते हुए 'टू स्टेट सॉल्यूशन' पर भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया तो कई भारतीय राइट विंग समर्थकों ने इसका विरोध किया.

इसके अलावा जब इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने समर्थक देशों के झंडे के साथ धन्यवाद कहते हुए ट्वीट किया तो उसमें भारत का झंडा ना पाकर कई राइट विंग समर्थक मायूस भी हो गयें.

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अमेरिका में मजबूत प्रो-इजरायल लॉबी

अमेरिका का ट्रेडिशनल स्टैंड इजरायल के पक्ष में रहा है. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सबसे ज्यादा अमेरिकी विदेशी सहायता पाने वाला देश इजराइल है. 2016 में तब के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इजरायल के साथ रक्षा समझौता करते हुए अगले 10 वर्षों में 38 बिलियन डॉलर अमेरिकी मिलिट्री सपोर्ट का वादा किया जिसमें आयरन डोम' डिफेंस सिस्टम का फंडिंग भी शामिल था.

Gallup द्वारा कराए गए वार्षिक सर्वे के अनुसार 58% अमेरिकी इजराइल के प्रति ज्यादा सहानुभूति रखते है, जबकि 75% अमेरिकी इजराइल को सहायक देश मानते हैं. इसके अलावा अमेरिका में कई ऐसे संगठन है जो अमेरिकी पॉलिसी में इजराइली हित की बात करते हैं .इसमें सबसे बड़ा और राजनैतिक रूप से सबसे मजबूत संगठन है -अमेरिकन इजरायल पब्लिक अफेयर कमिटी(AIPAC).

यह हर साल सालाना कांफ्रेंस आयोजित करता है जिसमें लगभग 20,000 लोग शामिल होते हैं. इसमें टॉप अमेरिकी नेता भी शिरकत करते हैं .राष्ट्रपति बाइडेन तथा पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप इसमें शामिल हो चुके हैं. साथ ही इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतनयाहू इसमें नियमित अंतराल पर शिरकत करते रहते हैं.

तब के उप राष्ट्रपति बाइडेन AIPAC ,2016 में शामिल होते हुए (फोटो-AP/क्लिफ ओवेन )

इजराइल समर्थक समूहों ने अमेरिकी फेडरल उम्मीदवारों को चंदे के रूप में मिलियनों डॉलर दिए हैं. 2020 चुनाव कैंपेन में इस समूह ने 30.95 मिलीयन डॉलर चंदे के रूप में उम्मीदवारों को दियें, जिसमें 63% डेमोक्रेटिक उम्मीदवार को जबकि 36% रिपब्लिकन उम्मीदवार को गया .Opensecrete.org के मुताबिक यह राशि 2016 चुनाव के अपेक्षा दोगुनी थी.

इजराइल-फिलिस्तीन पॉलिसी पर व्यवहारिक हितों का महत्व ज्यादा

स्थानीय समूहों के लॉबिंग और दबाव के बावजूद विदेश नीति में व्यवहारिकता सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर होता है. भारत ने अपने राइट विंग के उम्मीदों के विपरीत UNSC में फिलिस्तीन की तरफ से वोट किया है.

लेकिन हाल के वर्षों में इजराइल से बढ़ते सामरिक संबंधों के कारण भारत इजरायल के खिलाफ कठोर स्टैंड भी नहीं ले सकता. राइट विंग की भावनाओं की जगह यहां भारत अपने सामरिक हितों को ही प्राथमिकता देगा. इसी तरह अमेरिका का इजरायल को बिना शर्त सपोर्ट करना उसके अपने आर्थिक-सामरिक हितों के अनुकूल है. यह इजरायल द्वारा अमेरिका को मिलने वाले बिना शर्त सपोर्ट का ही जवाब है.

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